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कैंसर के कारक इलेक्ट्रॉनिक कचरे पर साधी चुप्पी, पढ़िए पूरी खबर

ई-वेस्ट से कैंसर का कारण बनने वाले कैडमियम क्रोमियम मरकरी जैसे हानिकारक रसायन निकलते हैं उनकी स्थिति पर सिस्टम कुछ भी सटीक कहने की स्थिति में नहीं है।

By Sunil NegiEdited By: Published: Sun, 18 Aug 2019 03:58 PM (IST)Updated: Sun, 18 Aug 2019 03:58 PM (IST)
कैंसर के कारक इलेक्ट्रॉनिक कचरे पर साधी चुप्पी, पढ़िए पूरी खबर
कैंसर के कारक इलेक्ट्रॉनिक कचरे पर साधी चुप्पी, पढ़िए पूरी खबर

देहरादून, जेएनएन। जिस इलेक्ट्रॉनिक कचरे (ई-वेस्ट) से कैंसर का कारण बनने वाले कैडमियम, क्रोमियम, मरकरी जैसे हानिकारक रसायन निकलते हैं, उनकी स्थिति पर सिस्टम कुछ भी सटीक कहने की स्थिति में नहीं है। बेशक यह कचरा जैविक कूड़े की जगह सड़कर सड़ांध नहीं छोड़ता है, मगर यह जैविक कूड़े से कहीं अधिक खतरनाक है। जिस तरह से इलेक्ट्रॉनिक उत्पादों का चलन बढ़ रहा है, उसे देखते हुए यह भविष्य की बेहद बड़ी समस्या बनता दिख रहा है। इस बात का आभास गति फाउंडेशन के ताजा सर्वे रिपोर्ट में भी होता है। दून के विभिन्न वर्ग के लोगों पर आधारित सर्वे में 70 फीसद लोगों ने स्वीकार किया कि वह साल में एक से चार बार इलेक्ट्रॉनिक कचरा पैदा करते हैं।

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गति फाउंडेशन के संस्थापक अध्यक्ष अनूप नौटियाल ने शनिवार को रिपोर्ट जारी करते हुए कहा कि उन्होंने दून के 500 से अधिक लोगों पर यह सर्वे किया। 72 फीसद लोगों ने कहा कि वह मोबाइल फोन, उनकी एक्सेसरीज, एलईडी बल्ब, बैटरी, पेंसिल सेल आदि के रूप में ई-कचरा पैदा करते हैं। इनमें 51 फीसद ऐसे लोग ऐसे थे, जिन्होंने कहा कि उत्पाद खराब होने पर व ठीक न होने की दशा में वह उसे कबाड़ी को बेच देते हैं। शेष लोग ऐसे कचरे को सामान्य कूड़े में फेंक रहे हैं।

ई-वेस्ट मैनेजमेंट रूल्स-2016 की जानकारी नहीं

सर्वे में शामिल 92 फीसद लोगों को ई-वेस्ट मैनेजमेंट रूल्स-2016 की जानकारी ही नहीं थी। उन्हें यह भी पता नहीं है कि ऐसा कूड़ा रजिस्टर्ड ई-वेस्ट रिसाइकलर को देना होता है। यहां तक कि इस बारे में इलेक्ट्रॉनिक उत्पादों के शोरूम चलाने वाले व उसे रिपेयर करने वाले ज्यादातर लोगों को भी जानकारी नहीं थी।

दून में महज चार रिसाइकलर रजिस्टर्ड

पर्यावरण संरक्षण एवं प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के ई-वेस्ट के नोडल अधिकारी एसपी सिंह के अनुसार दून में करीब चार रजिस्टर्ड रिसाइकलर हैं। हालांकि, उन्हें भी यह पता नहीं है कि उन्हें कितना कूड़ा जा रहा है और कितने कूड़े का निस्तारण किया जा रहा है।

इस बात को स्वीकार करते हुए ई-वेस्ट के नोडल अधिकारी एसपी सिंह कहते हैं कि आइटीटीए (इंफॉर्मेशन टेक्नोलॉजी डेवलपमेंट एजेंसी) इसके लिए अधिकृत है। इस बाबत आइटीडीए को पत्र भी लिखा गया है। उनसे पूछा गया है कि कितना इलेक्ट्रॉनिक कचरा उनके पास जा रहा है। इसके बाद भी स्थिति स्पष्ट हो पाएगी कि ई-कचरे का उचित निस्तारण हो पा रहा है या नहीं। इसके अलावा नोडल अधिकारी ने कहा कि नियमों के अनुसार नगर निगम की यह जिम्मेदारी है कि वह अपने कचरे से ई-वेस्ट को अलग करे और उसे रिसाइकलर को उपलब्ध कराए।

एसपी सुबुद्धि (सदस्य सचिव, उत्तराखंड पर्यावरण संरक्षण एवं प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड) का कहना है कि दून समेत पूरे प्रदेश में इलेक्ट्रॉनिक कचरे के निस्तारण की प्रक्रिया अभी शुरुआती अवस्था में है। बेशक यह भविष्य के लिए बड़ी समस्या बन सकता है, लिहाजा जल्द इसके पुख्ता निस्तारण के प्रयास किए जाएंगे। ई-वेस्ट मैनेजमेंट रूल्स-2016 का सख्ती से पालन कराया जाएगा।

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