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कभी खुद करते थे नशा, अब युवाओं को दिखा रहे दिशा; जानिए इनकी कहानी

कोटद्वार के दो युवा आठ साल तक नशे की गिरफ्त में रहे। बाद में अपनी गलती का एहसास होने पर उन्होंने खुद तो नशा छोड़ा ही। साथ ही दूसरे युवाओं को भी इस दलदल से निकाल रहे हैं।

By Raksha PanthariEdited By: Published: Sat, 03 Nov 2018 01:56 PM (IST)Updated: Sat, 03 Nov 2018 08:45 PM (IST)
कभी खुद करते थे नशा, अब युवाओं को दिखा रहे दिशा; जानिए इनकी कहानी
कभी खुद करते थे नशा, अब युवाओं को दिखा रहे दिशा; जानिए इनकी कहानी

देहरादून, [रोहित लखेड़ा]: 'जीवन चलने का नाम है, लेकिन जीवन की किताब के पुराने पन्ने ही वर्तमान में सही-गलत को चुनने की सीख देते हैं। हमने गलत किया और इसका हमें बेहद अफसोस भी है। हम गुनाहगार हैं उन माता-पिता के, जिनकी आंखें हमारी वजह से नम हुईं। लेकिन, अब हम उस दिशा में कदम बढ़ा रहे हैं, जहां हमारा बीता हुआ कल है, जिसे हमें अपने आज में तब्दील करना है।' 

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यह कहना है पौड़ी जिले के कोटद्वार निवासी शुभांकुर और राहुल रावत का। ये दोनों युवक आठ वर्षों तक नशे की गिरफ्त में रहे और परिजनों को मजबूर होकर उन्हें नशा मुक्ति केंद्र भेजना पड़ा। आखिरकार दोनों को अपनी गलती का अहसास हुआ और आज वह न केवल खुशहाल जीवन व्यतीत कर रहे हैं, बल्कि नशे की गिरफ्त में आए अन्य युवाओं को भी नशा छोड़ने के लिए प्रेरित कर रहे हैं। इसके लिए उन्होंने कोटद्वार में 'आशा किरण' नाम से नशामुक्ति केंद्र की शुरुआत की है। 

कोई दूसरा नशे की गर्त में न गिरे 

शुभांकुर और राहुल कहते हैं, जब युवा स्वयं से हार जाता है, तब वह नशे की ओर बढ़ता है। ऐसे युवाओं को सही राह दिखाना ही अब उनके जीवन का मकसद है। दोनों का मानना है कि जिस गर्त से उन्होंने स्वयं को बाहर निकाला है, प्रयास होगा कि भविष्य में कोई दूसरा उस गर्त में न गिरे। बताया कि उनकी इस मुहिम में कोटद्वार के साथ ही देहरादून व रोहतक के ऐसे युवा भी शामिल हैं, जो पूर्व में उन्हीं की तरह नशे के आदी रह चुके हैं। 

नशे के सौदागरों ने लगाई लत 

दो दशक पूर्व तक कोटद्वार में स्मैक के नशे से शायद ही कोई वाकिफ रहा हो, लेकिन आज नशे के सौदागरों ने यहां युवक-युवतियों को स्मैक का आदी बना दिया है। शुभांकुर और राहुल ऐसे ही युवा हैं, जिन्हें शुरुआत में नशे के सौदागरों ने तनाव दूर करने की दवा के रूप में मुफ्त स्मैक बांटी और जब दोनों इसके आदी हो गए तो उन्हें भी इस धंधे में लगा दिया।

वे बताते हैं कि नशे की गर्त में वह इस कदर डूब चुके थे कि होश में आने के लिए भी नशा करना पड़ता था। इस दौरान उन्होंने ऐसे कार्य भी किए, अब जिनके बारे में सोचकर ही आंखें भर आती हैं। कहते हैं, ऐसी स्थिति में उन्हें नशा मुक्ति केंद्र भेजना परिजनों की मजबूरी बन गया। शुरुआत में तो कोई फायदा नहीं हुआ, लेकिन धीरे-धीरे उन्हें गलती का अहसास होने और उन्होंने स्वयं के साथ ही नशे के आदी अन्य युवाओं को भी इस दलदल से निकलने की ठान ली। 

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