उत्तराखंड विधानसभा में दिखेगी श्रीनंदा राजजात की झलक, विधानसभा अध्यक्ष करेंगे इसका लोकार्पण
प्रसिद्ध श्रीनंदा राजजात की झलक से लोग अब विधानसभा में भी रूबरू हो सकेंगे। विधानसभा अध्यक्ष प्रेमचंद अग्रवाल 29 जून को इसका विधिवत लोकार्पण करेंगे।
देहरादून, राज्य ब्यूरो। प्रसिद्ध श्रीनंदा राजजात की झलक से लोग अब विधानसभा में भी रूबरू हो सकेंगे। उत्तराखंड की लोकसंस्कृति को बढ़ावा देने के मकसद से विस परिसर की चहारदीवारी पर राजजात के भित्तिचित्र (म्यूरल) अब बनकर तैयार हो गए हैं। विधानसभा अध्यक्ष प्रेमचंद अग्रवाल 29 जून को इसका विधिवत लोकार्पण करेंगे।
विधानसभा भवन को लोक संस्कृति के रंग में रंगने की दृष्टि से विस अध्यक्ष अग्रवाल की पहल पर विस की चहारदीवारी पर श्रीनंदा राजजात के म्यूरल बनाए गए हैं। ये इतने आकर्षक और सजीव बने हैं कि लोगों का ध्यान अपनी ओर खीचेंगे।
विधानसभा अध्यक्ष अग्रवाल ने कहा कि विस में आने वाले आगंतुकों और सड़क पर आवागमन करने वाले लोगों को यह म्यूरल अपनी ओर आकर्षित करेंगे। साथ ही राज्य की समृद्ध लोक विरासत से भी रूबरू कराएंगे। इसके जरिये आमजन और भावी पीढ़ी को नंदा राजजात की जानकारी हासिल हो सकेगी।
बनाएंगे सेल्फी प्वाइंट
विधानसभा अध्यक्ष ने श्रीनंदा राजजात के इन म्यूरल के साथ सेल्फी प्वाइंट बनाने की बात भी कही। उन्होंने कहा कि इस पहल से लोग अपनी सेल्फी खींचकर संस्कृति के साथ जुड़ाव महसूस करेंगे।
यह है नंदा राजजात यात्रा
गौरतलब है कि श्रीनंदा देवी राजजात हर बारह साल में आयोजित की जाती है। यह एशिया की सबसे लंबी पैदल धार्मिक यात्रा है। यह हिमालयी क्षेत्र की आराध्य देवी मां नंदा को उनके ससुराल भेजने की यात्रा है। चमोली जिले में पट्टी चांदपुर क्षेत्र में मां नंदा का मायका और बधाण को उनका ससुराल माना जाता है।
यह 280 किलोमीटर लंबी यात्रा है। कांसुवा से होमकुंड तक भक्त नंदा देवी की डोली और छतोलियों के साथ पैदल यात्रा करते हैं। यह पैदल यात्रा चमोली जिले के कांसुवा से शुरू होकर, नौटी, कांसुवा, सेम, कोटी, भगवती, कुलसारी, चैपड़ों, लोहाजंग, बाण, बेदनी, पातरनचौणिया, रूपकुंड, शिला समुद्र होते हुए होमकुंड तक जाती है। इसके बाद होमकुंड से चंदनिया घाट, सुतोल, घाट, होते हुए नंदप्रयाग फिर नौटी आकर यात्रा का समापन होता है।
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यात्रा का मुख्य आकर्षण
यात्रा का मुख्य आकर्षण चौसिंगिया खाडू (भेड़) है। यह हर बारह साल में क्षेत्र के किसी गांव में जन्म लेता है। फिर उसे यात्रा में शामिल किया जाता है। वही यात्रा की अगुआई करता है। मान्यता है कि चौसिंगिया खाडू विकट हिमालय क्षेत्र में जाकर लुप्त हो जाता है और नंदा देवी के क्षेत्र कैलाश में प्रवेश करता है। अंतिम पड़ाव में श्रद्धालु चौसिंगिया खाडू को वहीं छोड़कर लौट जाते हैं।
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