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हिंदी सिनेमा में शॉर्ट फिल्मों मजबूत दस्तक

शॉर्ट फिल्मों का बढ़ता प्रचलन इसी की बानगी पेश करता है। वैसे भी जब पांच से 60 मिनट की शॉर्ट फिल्म में दो से तीन घंटे की फिल्म का मकसद पूरा हो रहा हो तो और क्या चाहिए।

By Sunil NegiEdited By: Published: Mon, 30 Jul 2018 06:39 PM (IST)Updated: Tue, 31 Jul 2018 07:39 AM (IST)
हिंदी सिनेमा में शॉर्ट फिल्मों मजबूत दस्तक
हिंदी सिनेमा में शॉर्ट फिल्मों मजबूत दस्तक

देहरादून, [गौरव ममगाईं]: टेक्नोलॉजी के दौर में चीजें तेजी से बदल रही हैं। ऐसे में हिंदी सिनेमा स्वयं को इससे कैसे अलग रख सकता है। शॉर्ट फिल्मों का बढ़ता प्रचलन इसी की बानगी पेश करता है। वैसे भी जब पांच से 60 मिनट की शॉर्ट फिल्म में दो से तीन घंटे की फिल्म का मकसद पूरा हो रहा हो तो और क्या चाहिए। ऐसा भी नहीं कि शॉर्ट फिल्में सिर्फ सामाजिक दायरे तक ही सीमित हैं, बल्कि इसमें वो तमाम खूबियां शामिल हैं, जो एक फुल मूवी में होती हैं।

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बात हॉलीवुड, पर्शियन, फ्रेंच, चाइनीज व अन्य विदेशी सिनेमा की करें तो वहां शॉर्ट फिल्मों का ट्रेंड दशकों पहले शुरू हो गया था। वहां शॉर्ट फिल्मों को भी उतनी ही अहमियत दी जाती है, जितनी फुल मूवी को। देर से ही सही, लेकिन अब ङ्क्षहदी सिनेमा में भी इस राह पर तेजी से आगे बढ़ रहा है।

खास बात यह कि सीमित बजट में बनने वाली शॉर्ट फिल्में निर्माताओं के लिए भी फायदेमंद साबित होती हैं। कारण, इनमें बड़े अभिनेता व लोकेशन जरूरी नहीं हैं। वहीं शॉर्ट फिल्में उन लोगों के लिए भी मुफीद हैं, जिनके पास समय की कमी है। यही वजह है कि इम्तियाज अली, राम गोपाल वर्मा जैसे बड़े फिल्म निर्देशक शॉर्ट फिल्मों में रुचि ले रहे हैं। 

शॉर्ट फिल्मों में वेब सीरीज का दौर

शार्ट फिल्मों में वेब सीरीज का प्रचलन देखने को मिल रहा है। इसके तहत एक फिल्म की पूरी सीरीज तैयार की जा रही है। ये फिल्में यू-ट्यूब पर चैनल बनाकर रिलीज की जा रही हैं। 

जेएफएफ में भी शॉर्ट फिल्में आई पसंद

जागरण फिल्म फेस्टिवल में देश-विदेशी सिनेमा की चुनिंदा फिल्मों के साथ शॉर्ट फिल्मों को शामिल करना समय की मांग थी। यहां लुका-छिपी, माया, बिस्मार घर जैसी हिंदी शॉर्ट फिल्मों के साथ ही ऑन द वेटलिस्ट, द ऑड मैन जॉब, हेमेट जैसी पर्शियन, ताइवानी, इजरायली व फ्रेंच शॉर्ट फिल्में दिखाई गईं। पांच से 15 मिनट की अवधि वाली इन फिल्मों ने न सिर्फ दर्शकों का मनोरंजन किया, बल्कि सामाजिक संदेश के साथ महिला संघर्ष को भी बयां किया। लोगों ने शॉर्ट फिल्मों को खूब सराहा भी।

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