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वोट बैंक की खातिर नदी-नालों में 'उगाई' बस्तियां, यह है राजधानी का सूरतेहाल

दून में वोट बैंक की खातिर नेताओं ने नदी-नालों के किनारे जो मलिन बस्तियां शहर में उगाई हैं उन पर जवाब देने के लिए कोई नहीं है। शहर में चौतरफा मलिन बस्तियां ही पसरी हुई हैं।

By Raksha PanthariEdited By: Published: Tue, 18 Aug 2020 08:36 PM (IST)Updated: Tue, 18 Aug 2020 08:36 PM (IST)
वोट बैंक की खातिर नदी-नालों में 'उगाई' बस्तियां, यह है राजधानी का सूरतेहाल
वोट बैंक की खातिर नदी-नालों में 'उगाई' बस्तियां, यह है राजधानी का सूरतेहाल

देहरादून, अंकुर अग्रवाल। दून शहर को उत्तराखंड की अस्थायी राजधानी बने 19 साल बीत चुके हैं, लेकिन इस दरमियान जिम्मेदारों ने राजधानी की बदरंग तस्वीर बदलने का राग अलापने के अलावा कुछ नहीं किया। सत्ता में भाजपा रही हो या कांग्रेस, दोनों ने यही दोहराया। पहले मेट्रो सिटी बनाने के जुमले को हवा दी गई तो गुजरे पांच साल से स्मार्ट सिटी का शिगूफा छोड़ा हुआ है। लेकिन, वोट बैंक की खातिर नेताओं ने नदी-नालों के किनारे जो मलिन बस्तियां शहर में 'उगाई' हैं, उन पर जवाब कौन देगा। शहर में चौतरफा मलिन बस्तियां पसरी हुई हैं और दोनों ही दलों (भाजपा-कांग्रेस) के नेता वोट बैंक की खातिर इन पर राजनीति की रोटियां सेंकने का काम करते आए हैं। मौजूदा वक्त में वैध कॉलोनी में भले पेयजल या बिजली की लाइन न पहुंचे, मगर इन अवैध बस्तियों में नेताओं ने तमाम सुविधाएं पहुंचाई हैं। सरकारी मशीनरी ने जब कभी यह अवैध बसावत हटाने की कोशिश की तो राजनेता ही रोड़ा बनकर सामने आए।

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दून की सूरत अब बदरंग हो चुकी है। यहां न तो पहले जैसा सुकून रहा और न ताजगी ही। अब लीची के बाग और बासमती के खेत भी दून की पहचान नहीं रहे। उनकी जगह कंक्रीट के घने जंगल ने ले ली है। हर तरफ गंदगी बिखरी है और दुर्गंध जीना दुश्वार कर रही है। कहीं सीवर लाइन के लिए सड़कें खुदी पड़ी हैं, तो कहीं पानी की लाइन बिछाने के लिए नई सड़कों की ही बलि चढ़ा दी गई। रही-सही कसर नदी और नालों के किनारे 'उगाई' अवैध मलिन बस्तियों ने पूरी कर दी। दरअसल, 'उगाई' बस्तियां ही चुनाव में नेताजी को 'संजीवनी' प्रदान करती हैं।

दून शहर का यह हाल तब है, जब यहां सरकार के साथ नीति-नियंताओं की फौज बैठती है। मगर, दून की बदरंग होती सूरत से किसी को कोई सरोकार नहीं। राज्य की पिछली कांग्रेस सरकार ने तो बस्तियों को नियमित करने का फैसला कर बस्तियों के चिह्नीकरण और नियमितीकरण के लिए कमेटी भी गठित कर दी थी। इसके बाद 2017 में आई भाजपा की सरकार भी मलिन बस्तियों को बचाने का विधेयक ले आई। ऐसे में यह सवाल उठना लाजिमी है कि जब सरकार खुद अतिक्रमणकारियों के साथ खड़ी रहेगी तो विकास कैसे होगा। बस्तियों में रहने वालों के उद्धार के लिए केंद्र सरकार आवास की एक योजना लाई थी, लेकिन इसमें नेताओं ने रोड़ा अटका दिया। इसी तरह नेताओं ने ब्रह्मावाला खाला में हुए अतिक्रमण को भी तोड़ने से रोक दिया। रिस्पना और बिंदाल नदी के किनारे हुई अवैध बसावत पर भी इन्हीं नेताओं की कृपा दृष्टि है। जबकि, बरसात में नदी-नालों के उफान पर आने से ये बस्तियां तो जलमग्न हो ही जाती हैं, पुस्ता आदि टूटने से तमाम जिंदगियों पर खतरा बना रहता है, सो अलग।

129 मलिन बस्तियां हुई थीं चिह्नित

राज्य बनने से पहले नगर पालिका रहते हुए दून में 75 मलिन बस्तियां चिह्नित की गई थीं। राज्य गठन के बाद दून नगर निगम के दायरे में आ गया। वर्ष 2002 में मलिन बस्तियों की संख्या 102 चिह्नित हुई और वर्ष 2008-09 में हुए सर्वे में यह आंकड़ा 129 तक जा पहुंचा। तब से बस्तियों का चिह्नीकरण नहीं हुआ, लेकिन अगर गुजरे आठ साल का फौरी तौर पर आकलन करें तो यह आंकड़ा 150 तक पहुंच चुका है।

यहां हैं मलिन बस्तियां

रिस्पना और बिंदाल नदी के किनारे, रेसकोर्स रोड, चंदर रोड, नेमी रोड, प्रीतम रोड, मोहिनी रोड, पार्क रोड, इंदर रोड, परसोली वाला, बद्रीनाथ कॉलोनी, रिस्पना नदी, पथरियापीर, अधोईवाला, बृजलोक कॉलोनी, आर्यनगर, मद्रासी कॉलोनी, जवाहर कॉलोनी, श्रीदेव सुमननगर, संजय कॉलोनी, ब्रह्मपुरी, लक्खीबाग, नई बस्ती चुक्खूवाला, नालापानी रोड, काठबंगला, घास मंडी, भगत सिंह कॉलोनी, आर्यनगर बस्ती, राजीवनगर, दीपनगर, बॉडीगार्ड, ब्राह्मणवाला व ब्रह्मावाला खाला, राजपुर सोनिया बस्ती।  

यह है राजधानी का सूरतेहाल

-50 फीसद घट गई हरियाली, एक दशक में आबादी घनत्व 40 फीसद बढ़ा।

-चारों ओर फैली हैं अवैध मलिन बस्तियां।

-सड़कों और फुटपाथ पर अतिक्रमण।

-नहरों का शहर अब है नहर विहीन।

-डे्रनेज सिस्टम की योजनाएं वर्षों से नहीं चढ़ीं परवान।

-हर जगह लगे हैं कूड़े और गंदगी के ढेर, ट्रेंचिंग ग्राउंड योजना अधर में।

-जेएनएनयूआरएम के तहत सीवर लाइन व पेयजल लाइनें बिछाने का काम अधूरा।

-महायोजना तो बनी, मगर मूर्त रूप देने का काम अब तक अधूरा।

-वाहनों के बढ़ते दबाव के बावजूद नहीं हो रहीं सड़कें चौड़ी, हर वक्त जाम।

बैकडोर से वैध कर रहे 40 हजार भवन

नगर निगम बोर्ड ने जनवरी में इन बस्तियों पर भवन कर लगाने के साथ बस्ती वालों को मालिकाना हक देने का फैसला लिया था। इससे इन बस्तियों के सभी 40 हजार भवन बैकडोर से वैध हो जाएंगे। पिछली सरकार की ओर से गठित मलिन बस्ती सुधार समिति ने जो रिपोर्ट तैयार की थी उसमें चौंकाने वाले तथ्य थे। रिपोर्ट में जिक्र था कि प्रदेश में 36 फीसद बस्तियां निकायों और 10 फीसद राज्य सरकार, केंद्र सरकार, रेलवे व वन विभाग की भूमि पर हैं। 44 फीसद बस्तियां ही निजी भूमि पर बताई गई थीं। वहीं, दून नगर निगम क्षेत्र में पहले 129 बस्तियां मानी जा रही थीं, लेकिन सरकारी आंकड़ों में संख्या 128 बताई गई। इनमें केवल दो बस्तियां लोहारावाला व मच्छी का तालाब ही श्रेणी एक में आती हैं। इनमें भी महज 34 भवन नियमितीकरण के लिए उपयुक्त बताए गए थे। शहर में 56 बस्तियां नदी, खाला व जलमग्न श्रेणी की भूमि में हैं, जबकि 62 बस्तियां सरकारी भूमि, निजी भूमि या केंद्र सरकार के संस्थानों की भूमि पर बनी हुई हैं। आठ बस्तियां वन भूमि पर बसी हैं।

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ये थे मलिन बस्ती सुधार समिति की रिपोर्ट के निष्कर्ष

-37 फीसद बस्तियां नदी-नालों के किनारे बसी हुई हैं।

-बस्तियों में 55 फीसद मकान पक्के, 29 फीसद आधे पक्के व 16 फीसद कच्चे मकान हैं।

-24 फीसद बस्तियों में शौचालय नहीं।

-41 फीसद जनसंख्या की मासिक आय तीन हजार रुपये व बाकी की इससे कम।

-38 फीसद लोग मजदूरी, 21 फीसद स्वरोजगार, 20 फीसद नौकरी करते हैं।

-प्रतिव्यक्ति मासिक आय 4311 रुपये, जबकि खर्च 3907 रुपये है।

-छह फीसद लोग साक्षर नहीं हैं। 

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