कुबेर की भूमिका निभाने वालों को वेतन भत्ते के नहीं पड़ेंगे लाले, सेवा शर्त तय
राज्य वित्त आयोग के अध्यक्ष और सदस्यों को खुद के वेतन-भत्ते और सेवा शर्तें के लिए सरकार के दर पर एड़ियां नहीं घिसनी पड़ेंगी। सरकार ने वेतन-भत्ते योग्यता और सेवा शर्तें तय कर दीं।
देहरादून, रविंद्र बड़थ्वाल। प्रदेश की 7797 ग्राम पंचायतों और 93 नगर निकायों के लिए कुबेर सरीखी भूमिका निभाने वाले राज्य वित्त आयोग के अध्यक्ष और सदस्यों को खुद के वेतन-भत्ते और सेवा शर्तें तय करने को सरकार के दर पर एड़ियां घिसनी पड़ रही थीं। अब ऐसा नहीं होगा। आयोग अध्यक्ष व सदस्यों के वेतन-भत्ते, योग्यता और सेवा शर्तें सरकार ने तय कर दीं।
इसके लिए उत्तराखंड पंचायतीराज एक्ट-2016 की नियमावली को मंत्रिमंडल ने मंजूरी दी है। इस नियमावली लागू होने के बाद आयोग को अपने कार्यक्षेत्र के अंतर्गत किसी भी सरकारी अधिकारी या कार्मिक और पंचायत व निकाय प्रतिनिधियों को समन करने का अधिकार होगा।
उत्तराखंड में सरकार ने अपना पंचायतीराज एक्ट तो लागू कर दिया, लेकिन एक्ट के अंतर्गत अहम हिस्से के रूप में राज्य वित्त आयोग की नियमावली बनाने की जहमत नहीं उठाई थी। इस वजह से पंचायतों व निकायों के लिए धन आवंटन में अहम भूमिका निभाने वाले राज्य वित्त आयोग के अध्यक्ष व सदस्यों की नियुक्ति, वेतन-भत्ते समेत तमाम सेवा-शर्तें तय करने के लिए उत्तरप्रदेश की नियमावली का सहारा लिया जा रहा था।
इस वजह से सरकार को आयोग के अध्यक्ष व सदस्यों के वेतन-भत्तों के लिए अलग से आदेश जारी करने को मजबूर थी। इस समस्या से निजात पाते हुए मंत्रिमंडल ने उत्तराखंड पंचायतीराज एक्ट की नियमावली पर मुहर लगा दी।
इस नियमावली के मुताबिक आयोग के अध्यक्ष व सदस्यों के वित्तीय मामलों का विशेषज्ञ, प्रशासनिक अनुभव और पंचायतों व शहरी निकायों का जानकार होना आवश्यक है। अध्यक्ष के वेतन-भत्ते मुख्य सचिव और सदस्यों के वेतन-भत्ते प्रमुख सचिव के समान होंगे। सरकारी मकान अथवा श्रेणी-क अधिकारी के बराबर मकान किराया भत्ता उन्हें देय होगा।
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सेवानिवृत्त अधिकारी के लिए वेतन उनके सेवा में रहते हुए अंतिम आहरित वेतन के हिसाब से देय होगा। इसमें से पेंशन राशि काटी जाएगी। सरकार अगर चाहेगी तो राज्यपाल की अनुमति से किसी गैर प्रशासनिक अधिकारी को भी बतौर अध्यक्ष अथवा सदस्य नियुक्त कर सकेगी। इनके लिए वेतन-भत्ते सरकार तय करेगी।