स्वयं सहायता समूहों से होगा गरीबी उन्मूलन, पलायन पर भी लगेगा अंकुश
पलायन का दंश झेल रहे उत्तराखंड के गांवों में यदि आजीविका विकास को तवज्जों दी जाए तो इससे लोगों को गांव में रोके रखने में काफी हद तक मदद मिल सकती है।
देहरादून, राज्य ब्यूरो। पलायन का दंश झेल रहे उत्तराखंड के गांवों में यदि आजीविका विकास को तवज्जों दी जाए तो इससे लोगों को गांव में रोके रखने में काफी हद तक मदद मिल सकती है। पलायन आयोग के इस सुझाव के दृष्टिगत सरकार ने गांवों में रोजगार-स्वरोजगार को बढ़ावा देने पर फोकस किया है और इसमें संबल दिया केंद्र पोषित राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन ने। इसके तहत चालू वित्तीय वर्ष में 7009 स्वयं सहायता समूहों (एसएचजी) को एक से पांच लाख रुपए के ऋण बैंकों से दिए जा चुके हैं।
गरीबी उन्मूलन के मकसद से चल रहे एनआरएलएम के संचालन के लिए उत्तराखंड में राज्य ग्रामीण आजीविका प्रकोष्ठ गठित है। इसमें ग्रामीण क्षेत्रों में स्वरोजगार को बढ़ावा देने और गरीबों को संगठित करने पर जोर दिया गया है। गरीब परिवारों को एसएचजी से जोड़कर उन्हें स्वरोजगार के लिए सक्षम बनाया जा रहा है, ताकि वे स्थायी रूप से गरीबी से बाहर आ सकें। इस कड़ी में राज्य में आजीविका मिशन के तहत गठित 28949 एसएचजी में से 28368 सक्रिय हैं। सक्रिय समूहों को रोजगार-स्वरोजगार को आगे बढ़ाने में दिक्कत न हो, उन्हें बैंकों से क्रेडिट लिंकेज दिया जा रहा है।
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चालू वित्तीय में इसके लिए 40.96 करोड़ की वार्षिक कार्ययोजना तय की गई और 7610 एसएचजी को इससे जोड़ना प्रस्तावित किया गया। इसके लिए 10022 एसएचजी ने आवेदन किए थे, जिनमें 8083 बैंकों ने स्वीकृत किए। हालांकि, दिसंबर 2019 तक इसकी रफ्तार धीमी थी और 2575 समूहों को ऋण वितरित किए, लेकिन इसके बाद इस मुहिम में तेजी आई । अपर सचिव ग्राम्य विकास रामविलास यादव के अनुसार नए वित्तीय वर्ष में भी आजीविका मिशन पर खास फोकस रहेगा। वह भी विशेषकर पर्वतीय क्षेत्रों में।
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