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तीन वर्ष में तीन गुना बढ़ी सुरक्षा एजेंसियां

राज्य ब्यूरो, देहरादून: प्रदेश में निजी सुरक्षा एजेंसियों की संख्या तेजी से बढ़ रही है। बीते तीन

By JagranEdited By: Published: Mon, 26 Feb 2018 03:00 AM (IST)Updated: Mon, 26 Feb 2018 03:00 AM (IST)
तीन वर्ष में तीन गुना बढ़ी सुरक्षा एजेंसियां
तीन वर्ष में तीन गुना बढ़ी सुरक्षा एजेंसियां

राज्य ब्यूरो, देहरादून: प्रदेश में निजी सुरक्षा एजेंसियों की संख्या तेजी से बढ़ रही है। बीते तीन वर्षो में इनकी कुल संख्या में तीन गुना बढ़ोत्तरी देखी गई है। वर्ष 2015 में जहां प्रदेश में कुल 55 सुरक्षा एजेंसियां पंजीकृत थी, वहीं अब यह संख्या बढ़कर 153 पहुंच चुकी है। यानी बीते तीन वर्षो में 98 से अधिक नई सुरक्षा एजेंसियों ने प्रदेश में पंजीकरण कराया है। माना जा रहा है कि प्रदेश में बढ़ते उद्योगों के कारण सुरक्षा एजेंसियों का कारोबार भी बढ़ा है। इस कारण इनकी संख्या में यह वृद्धि देखी गई है।

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उत्तराखंड में सुरक्षा एजेंसियों के लिए वर्ष 2010 में नियमावली बनी। इस वर्ष केवल एक ही सुरक्षा एजेंसी पंजीकृत थी। आठ वर्षो में यह आंकड़ा अब बढ़ कर 150 से अधिक हो गया है। दरअसल, पहले सुरक्षा एजेंसियों का पहले बहुत अधिक काम नहीं था। समय के साथ प्रदेश में तेजी से उद्योग बढ़े और इसके साथ ही सुरक्षा कर्मियों की मांग भी बढ़ने लगी। मौजूदा कंपनियां इस मांग को पूरा नहीं कर पा रही थी। इसे देखते हुए प्रदेश में सुरक्षा एजेंसियों का काम तेजी से चल निकला। सुरक्षा एजेंसियों को शासन स्तर से लाइसेंस जारी किए जाते हैं। इनका कार्य क्षेत्र एक जनपद से लेकर पूरे उत्तराखंड तक का है। अभी प्रदेश में 63 सुरक्षा एजेंसियां ऐसी हैं जिनका कार्यक्षेत्र संपूर्ण उत्तराखंड है। शेष अन्य एक जनपद अथवा दो से पांच जनपदों के लिए पंजीकृत हैं। इन एजेंसियों के जरिए तकरीबन पांच हजार से अधिक लोग रोजगार पा रहे हैं।

प्रशिक्षित कर्मियों को लेकर उठे हैं सवाल

प्रदेश में भले ही सुरक्षा एजेंसियां लोगों को रोजगार दे रही हैं, लेकिन यह विवादों से अछूती नहीं है। नियमानुसार इन एजेंसियों के जरिए कार्यरत सुरक्षा कर्मी प्रशिक्षित होने चाहिए और उन्हें अंग्रेजी व ¨हदी का भी अक्षर ज्ञान होना चाहिए। प्रदेश के अधिकांश एटीएम में तैनात सुरक्षा कर्मी कम पढ़े लिखे होने के साथ ही प्रशिक्षित भी नहीं हैं। पूर्व में एटीएम चोरी की घटनाओं में भी यह बात सामने आ चुकी हैं। इससे सुरक्षा एजेंसियों को लाइसेंस देने की पूरी प्रक्रिया पर भी सवाल उठते रहे हैं।


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