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रात में निकलने वाली तितलियों की प्रजातियों के रहस्य से उठेगा पर्दा

मौथ यानी रात में निकलने वाला तितलियों का समूह। पर्यावरण संरक्षण के साथ ही वाणिज्यिक लिहाज से भी बेहद महत्वपूर्ण। अब इस रहस्य से जल्द पर्दा उठेगा।

By Sunil NegiEdited By: Published: Tue, 25 Jul 2017 10:01 AM (IST)Updated: Tue, 25 Jul 2017 08:02 PM (IST)
रात में निकलने वाली तितलियों की प्रजातियों के रहस्य से उठेगा पर्दा
रात में निकलने वाली तितलियों की प्रजातियों के रहस्य से उठेगा पर्दा

देहरादून, [केदार दत्त]: मौथ यानी रात में निकलने वाला तितलियों का समूह। पर्यावरण संरक्षण के साथ ही वाणिज्यिक लिहाज से भी बेहद महत्वपूर्ण। बावजूद इसके जैव विविधता के लिए मशहूर उत्तराखंड में यह आंकड़ा ही उपलब्ध नहीं कि आखिर यहां मौथ की कितनी प्रजातियां हैं। अब इस रहस्य से न सिर्फ जल्द पर्दा उठेगा, बल्कि इसका भी अध्ययन हो सकेगा कि ग्लोबल वार्मिंग के इस दौर में इन रात्रिचरों के व्यवहार में क्या बदलाव आ रहे हैं। 

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राज्य में पहली मर्तबा इस बार दूनघाटी से इसकी शुरूआत की गई है। 'नेशनल मौथ सप्ताह' के तहत इन दिनों यहां भी मौथ की प्रजातियों की गणना चल रही है। वन्यजीव महकमे के मुताबिक अब प्रतिवर्ष मौथ की प्रजातियों की गणना होगी, ताकि इनके संरक्षण को दीर्घकालिक योजना पर कार्य किया जा सके।

रात्रि में तेज रोशनी पर मंडराते तितलीनुमा पतंगों को आपने भी देखा होगा। असल में यह तितलियों के रात्रिचर समूह (मौथ) हैं, जो अंधेरा घिरने पर निकलते हैं और तेज रोशनी की तरफ आकर्षित होते हैं। अपर प्रमुख मुख्य वन संरक्षक डॉ. धनंजय मोहन के अनुसार भले ही दिखने में ये साधारण कीट-पतंगों जैसे लगें, लेकिन पर्यावरण के संरक्षण के लिहाज से ये बेहद अहम हैं। रात्रिचरों की खाद्य श्रृंखला का भी ये हिस्सा हैं। यही नहीं, इनका वाणिज्यिक महत्व भी कम नहीं। रेशम का कीड़ा भी मौथ है, जो रेशम उद्योग की जान है। लिहाजा, इनका संरक्षण समय की जरूरत है।

डॉ. धनंजय बताते हैं कि 22 जुलाई से राज्य में भी शुरू किए गए नेशनल मौथ सप्ताह के तहत दूनघाटी में इनकी गणना की जा रही है। इससे न सिर्फ जनसामान्य को इनके महत्व से अवगत कराया जा सकेगा, बल्कि संरक्षण के लिहाज से दीर्घकालिक योजना पर कार्य किया जा सकेगा। वह बताते हैं कि डेटा बेस तैयार होने पर इनके व्यवहार में आ रहे परिवर्तन पर भी नजर रखी जा सकेगी।

मौथ से जुड़े कुछ तथ्य

-70 हजार के करीब प्रजातियां विश्वभर में पाई जाती हैं

-10 हजार से ज्यादा प्रजातियां मिलती हैं भारत में

-04 हजार प्रजातियां उत्तराखंड, हिमाचल और जम्मू-कश्मीर में होने का अनुमान

इसलिए हैं खास

-रात्रि में खिलने वाले फूलों के परागण में सहायक है मौथ

-चमगादड़, नाइटजार, उल्लू जैसे परिंदों का मुख्य भोजन

-वाणिज्यिक महत्व के लिहाज से रेशम उद्योग की है जान

नामी संस्थानों का भी सहयोग

वन विभाग और तितली ट्रस्ट के संयुक्त तत्वावधान में दूनघाटी में चल रहे 'नेशनल मौथ सप्ताह' में अन्य कई संस्थान व संगठन भी सहयोग दे रहे हैं। इनमें भारतीय वन्यजीव संस्थान, वन अनुसंधान संस्थान, नेचर साइंस इनिशिएटिव, दून नेचर वॉक शामिल हैं।

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