Move to Jagran APP

उत्तराखंड को वैज्ञानिकों की चेतावनी, अनदेखी पड़ सकती है भारी

उत्तराखंड सरकार को वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि प्राकृतिक आपदा की दृष्टि से संवेदनशील राज्य में किसी भी प्रकार की अनदेखी भारी पड़ सकती है।

By Raksha PanthariEdited By: Published: Wed, 14 Mar 2018 02:14 PM (IST)Updated: Thu, 15 Mar 2018 11:35 AM (IST)
उत्तराखंड को वैज्ञानिकों की चेतावनी, अनदेखी पड़ सकती है भारी
उत्तराखंड को वैज्ञानिकों की चेतावनी, अनदेखी पड़ सकती है भारी

देहरादून, [जेएनएन]: केदारनाथ जैसी त्रासदी झेलने के बावजूद उत्तराखंड की सरकारें सबक लेने को तैयार नहीं हैं। वैज्ञानिक संस्थानों की रिपोर्ट को या तो दरकिनार किया जा रहा है अथवा सवालों के साथ वापस भेजा जा रहा है। वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी कि प्राकृतिक आपदा की दृष्टि से संवेदनशील राज्य में यह अनदेखी भारी पड़ सकती है। 

loksabha election banner

वाडिया हिमालय भू-विज्ञान संस्थान में उत्तराखंड अंतरिक्ष उपयोग केंद्र (यूसैक) के सेमिनार में सरकार की उपेक्षा से आहत वैज्ञानिकों की पीड़ा छलक उठी। उन्होंने कहा कि वर्ष 2013 में केदारनाथ आपदा के ठीक बाद वाडिया, केंद्रीय भवन अनुसंधान संस्थान और राष्ट्रीय जल विज्ञान संस्थान के वैज्ञानिकों की संयुक्त टीम ने जान जोखिम में डाल केदारनाथ के आसपास के क्षेत्र के साथ ही चौराबाड़ी झील का सर्वेक्षण किया था। 

यह चौराबाड़ी झील ही थी, जिसके फटने से इतनी बड़ी तबाही हुई। अध्ययन के लिए वैज्ञानिकों ने यहां उपकरण भी स्थापित किए और कई माह क्षेत्र में बिताए। बताया गया कि इस अध्ययन पर दो करोड़ रुपये खर्च हुए। इसके बाद केदारनाथ धाम की सुरक्षा को लेकर बिंदुवार रिपोर्ट तैयार शासन को भेजी गई, लेकिन विडंबना यह कि रिपोर्ट सवालों के साथ लौटा दी गई। 

सेमिनार में मेगसेसे और गांधी शांति पुरस्कार से सम्मानित प्रसिद्ध पर्यावरणविद् चंडी प्रसाद भट्ट ने भी वैज्ञानिकों की पीड़ा से खुद को जोड़ते हुए कहा कि भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने वर्ष 1999 से 2000 तक उत्तराखंड के भूस्खलन संभावित इलाकों का अध्ययन किया था। अध्ययन में ऋषिकेश से लेकर गंगोत्री के अलावा यमुनोत्री, बदरीनाथ और केदारनाथ को भी शामिल किया गया था। वर्ष 2001 में इसकी रिपोर्ट राज्य सरकार को सौंपी गई। रिपोर्ट में आपदा से होने वाले संभावित नुकसान भी आकलन किया गया था। उन्होंने कहा कि यह रिपोर्ट भी अफसरों ने दबाए रखी। 

उन्होंने कहा कि वैज्ञानिकों की रिपोर्ट की अनदेखी का नतीजा यह रहा कि पिथौरागढ के मालपा, रुद्रप्रयाग के ऊखीमठ और उत्तरकाशी के वरुणावत में आई आपदाओं में व्यापक पैमाने पर नुकसान हुआ। भट्ट ने कहा कि आपदा रोकना मुमकिन नहीं है, लेकिन इससे होने वाले जान-माल के नुकसान को कम किया जा सकता है। उन्होंने उम्मीद जताई कि  अब ऐसी रिपोर्टों की अनदेखी नहीं की जाएगी। सेमिनार में उपस्थित उत्तराखंड के पर्यटन मंत्री सतपाल महाराज ने वैज्ञानिक रिपोर्ट की अनदेखी गंभीर मसला है। उन्होंने भरोसा दिलाया कि ऐसी रिपोर्टों का सरकार संज्ञान लेगी। 

कम बर्फबारी से ग्लेशियरों पर संकट 

प्रसिद्ध पर्यावरणविद चंडी प्रसाद भट्ट ने कहा कि इस साल बारिश और बर्फबारी न होने से ग्लेशियरों पर संकट मंडरा रहा है। तापमान बढऩे के साथ ही ग्लेशियरों पर जमा पुरानी बर्फ पिघलने लगेगी। इससे भविष्य में जल संकट और गहराएगा। उन्होंने कहा कि इस बदलाव का असर हिमालय के साथ ही समुद्री तटीय इलाकों पर भी पड़ेगा।

यह भी पढ़ें: रोबोटिक सर्जरी से मरीज में संक्रमण का खतरा टला

यह भी पढ़ें: मैथमेटिकल मॉडल के प्रयोग से कई तकनीकों का अविष्कार

यह भी पढ़ें: बैंकों ने अपना सर्वर किया अपग्रेड, तकनीकी दिक्कतों से उपभोक्ता परेशान 


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.