पहले अपात्रों को बांट दी पेंशन, अब रिकवरी को लेकर है टेंशन
विभाग ने अपात्र लोगों को पेंशन की बंदरबांट कर दी। ऑडिट में इसका खुलासा हो पाया। जिले में अपात्रों को बांटी गई राशि करीब 50 लाख बताई जा रही है।
देहरादून, जेएनएन। समाज कल्याण विभाग का एक और नया कारनामा सामने आया है। शासन ने तो वृद्ध पेंशन योजना में दंपती की पात्रता समाप्त कर दी थी, लेकिन देहरादून जिले में विभाग शासनादेश से अंजान बना रहा। नतीजा यह रहा कि विभाग ने अपात्र लोगों को पेंशन की बंदरबांट कर दी। ऑडिट में इसका खुलासा हो पाया। जिले में अपात्रों को बांटी गई राशि करीब 50 लाख बताई जा रही है और अब इसकी रिकवरी में विभाग के पसीने छूट रहे हैं।
पहले ही समाज कल्याण विभाग छात्रवृत्ति घोटाले में घिरा हुआ है और अब वृद्ध पेंशन में अपात्रों को तीन साल से पेंशन बांटने का मामला उजागर होने के बाद विभाग की परेशानी और बढ़ने लगी हैं। जिले में 200 से ज्यादा दंपतियों को वृद्ध पेंशन बांटी जा रही थी। लेकिन, विभाग को इसकी जानकारी नहीं थी या वह जान-बूझकर अंजान बना रहा। गलत बांटी गई पेंशन में करीब 15 से ज्यादा अपात्र ऐसे हैं जिन्हें 55 हजार रुपये का गलत भुगतान हो चुका है। जबकि करीब 180 से ज्यादा लोगों को दस हजार से 30 हजार रुपये तक का भुगतान हुआ है। अभी भी यह गड़बड़झाला बदस्तूर चल रहा था।
लेकिन, तीन महीने पूर्व समाज कल्याण में किए गए ऑडिट रिपोर्ट में यह पकड़ में आ गया। ऑडिट मे पेंशन आवंटन में कई अन्य अनियमितताएं भी मिली हैं। वहीं, हरिद्वार, ऊधमसिंहनगर, नैनीताल समेत कई अन्य जिलों में भी ऐसी गड़बड़ी की जानकारी है। प्रदेशभर में करीब 1200 से ज्यादा अपात्रों को पेंशन भुगतान का अनुमान है।
अब रिकवरी करने में छूट रहे पसीने
पहले तो विभाग अपात्रों को तीन साल से पेंशन की बंदरबाट करता रहा, लेकिन अब गलती का पता चलने के बाद विभाग अपात्र लोगों को नोटिस भेज चुका है और गलत भुगतान की राशि वापस लौटाने को कह रहा है। लेकिन, क्षेत्रीय प्रतिनिधि इसको लेकर लामबंद होते नजर आ रहे। उनका आरोप है कि विभाग ने वृद्धों को अंधेरे में रखा। असहाय वृद्धों का इतनी बड़ी राशि वापस करना संभव नहीं है।
जिला समाज कल्याण अधिकारी अनुराग शंखधर का कहना है कि जिले में कुछ अपात्र लोगों को गलती से भुगतान हुआ है। उन्हें नोटिस भेज दिए गए हैं। उनसे रिकवरी की जाएगी।
2008 का घपला, 2019 तक भी कार्रवाई का पता नहीं
यह घपला बेशक बहुत बड़ा न हो और शायद जांच-पड़ताल के बाद भी कुछ खास न निकले। मगर, सवाल यह है कि जब कार्रवाई की कोई फाइल आगे बढ़ी है तो वह अंजाम तक क्यों नहीं पहुंच सकी। वह भी 2008 से अब तक। जबकि जिलाधिकारी ने स्वयं कार्रवाई के लिए सरकार को पत्र लिखा था। शिकायत या अपील की शक्ल में जब यह मामला सूचना आयोग पहुंचा तो राज्य सूचना आयुक्त चंद्र सिंह नपलच्याल भी सकते में आ गए।
कार्रवाई के नाम पर तीन-तीन एजेंसियों और शासन के बीच पत्राचार होने के बाद भी जस के तस हालात देखते हुए आयोग ने अब मुख्य सचिव को कार्रवाई की जिम्मेदारी सौंपी है। मामला चमोली जिले में वर्ष 2007-08 में जनजाति रैनबसेरा और महिला कार्यशाला के करीब सात लाख रुपये के निर्माण कार्य की वित्तीय अनियमितता से जुड़ा है।
इस पर तत्कालीन जिलाधिकारी ने सरकार को पत्र भेजकर तत्कालीन जिला समाज कल्याण अधिकारी अनुराग शंखधर, सहायक समाज कल्याण अधिकारी बलवंत सिंह रावत के खिलाफ कार्रवाई की संस्तुति की थी। इस बारे में जब आरटीआइ में जानकारी मांगी गई और तय समय के भीतर वाजिब जवाब नहीं मिला, तब मामला सूचना आयोग पहुंचा।
प्रकरण पर सुनवाई करते हुए राज्य सूचना आयुक्त चंद्र सिंह नपलच्याल ने चमोली के जिला समाज कल्याण अधिकारी और प्रमुख सचिव समाज कल्याण के लोक सूचनाधिकारी को भी तलब किया। इसके बाद जो-जो बातें सामने आई, उस पर हैरत व्यक्त करते हुए सूचना आयुक्त ने कहा कि 10 साल से कार्रवाई के नाम पत्रावली को सिर्फ इधर से उधर दौड़ाया जा रहा है। क्योंकि बताया गया कि इस मामले में सात कार्मिकों में से पांच कार्यदायी संस्था ग्रामीण निर्माण विभाग के हैं, लिहाजा मामला प्रमुख सचिव ग्राम्य विकास को भी भेजा गया है।
वहीं, समाज कल्याण के दो अधिकारियों को लेकर शासन ने निदेशक को कार्रवाई के लिए कहा है। इसके बाद प्रकरण को फिर उलझा दिया गया कि निर्माण कार्य अनुसूचित जनजाति उपयोजना से जुड़ा होने के कारण जनजाति कल्याण निदेशक को पत्रावली भेजी गई है। जबकि हकीकत में किसी भी स्तर से कोई एक्शन लिया ही नहीं गया। इस हीलाहवाली के चलते कार्रवाई की सूचना प्राप्त करने में आ रही बाधा को देखते हुए आयुक्त नपलच्याल ने मुख्य सचिव से अपेक्षा की कि अब वह अपने स्तर पर दोषी अधिकारियों के खिलाफ उचित कदम उठाएं।
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