Coronavirus: दो गज की दूरी को घंटों परेड, ट्रेन में दो फीट भी नहीं स्पेस
जिस शारीरिक दूरी के पालन के लिए प्रवासियों को ट्रेन में बैठने से पहले घंटों पैदल परेड करनी पड़ रही है। ट्रेन में सवार होते ही वह दूरी हवा हो जा रही है और नियम-कायदे गुम हो रहे।
देहरादून, जेएनएन। खाता न बही, जो हम करें वही सही। सरकारी सिस्टम इसी सूत्रवाक्य पर चलता है। यकीन न आए तो रेलवे स्टेशन जाकर प्रवासियों को घर ले जा रही ट्रेनों का हाल देख लीजिए। हकीकत सामने आ जाएगी। जिस शारीरिक दूरी के पालन के लिए प्रवासियों को ट्रेन में बैठने से पहले घंटों पैदल परेड करनी पड़ रही है। ट्रेन में सवार होते ही वह दूरी हवा हो जा रही है और नियम-कायदे भीड़ में गुम हो रहे हैं।
वजह है कोच में उसकी क्षमता के बराबर सवार यात्री। ट्रेन में कोई यह देखने वाला भी नहीं कि लोग शारीरिक दूरी का पालन और मास्क का इस्तेमाल कर भी रहे हैं या नहीं। ऐसा लग रहा है कि ट्रेन में सोशल डिस्टेंसिंग का पालन कराने में शायद किसी को भी दिलचस्पी नहीं रही।
खुद स्वास्थ्य मंत्रालय का कहना है कि कोरोना वायरस से बचाव के लिए शारीरिक दूरी का पालन बेहद जरूरी है। इसके चलते सार्वजनिक से लेकर निजी वाहनों तक में क्षमता से कम सवारी बैठाने का ही निर्देश है। खुद सरकारी व्यवस्था इसके उलट चल रही है।
ट्रेन के एक कोच में 72 लोगों के बैठने की व्यवस्था होती है और श्रमिक स्पेशल ट्रेनों के हर कोच में पूरे 72 यात्री बिठाए जा रहे हैं। आम दिनों में भी एक कोच में 72 सीट ही बुक होती हैं। देहरादून से रवाना हो रही ट्रेनों का तो यही हाल है।
ऐसे में सवाल यह उठता है कि क्या ट्रेन कोरोना से सुरक्षित है? अगर नहीं तो 72 सीटर कोच में यात्रियों की संख्या क्षमता से कम क्यों नहीं की जा रही। जब ट्रेन में शारीरिक दूरी का पालन नहीं हो रहा तो प्लेटफार्म और स्टेशन परिसर में इतनी कवायद के क्या मायने। यह व्यवस्था देखकर तो यही प्रतीत होता है कि सिस्टम की सिर्फ एक मंशा है किसी तरह प्रवासियों को वापस भेजना।
प्लेटफार्म पर दो गज की दूरी
सभी प्लेटफार्मों के साथ ही देहरादून रेलवे स्टेशन के पूरे परिसर में दो-दो गज की दूरी पर गोले बनाए गए हैं। इस मंशा से कि यात्री इन गोलों की मदद से शारीरिक दूरी का पालन कर सकें। लेकिन, हर कोच में उसकी क्षमता के बराबर यात्री बैठाए जाने से ट्रेन में प्रवासियों के बीच दो फीट की दूरी भी नहीं रह जाती।
सुबह से परेड और ट्रेन में भगवान भरोसे
ट्रेन के रवाना होने से चार घंटे पहले ही स्टेशन में एंट्री। फिर सबको तय फासले में क्रमबद्ध खड़ा करना ताकि शारीरिक दूरी बरकरार रहे। व्यवस्था की निगरानी के लिए प्रशासन के साथ रेलवे के कई अधिकारी भी मौजूद। उससे पहले बन्नू स्कूल में थर्मल स्क्रीनिंग समेत अन्य प्रक्रियाएं। वहां से छोटे-छोटे समूहों में रेलवे स्टेशन तक लाना।
रेल टिकट के साथ सेनिटाइजर और मास्क भी अनिवार्य। इतनी कवायद इसलिए कि दून से अपने घर जा रहे प्रवासी कोरोना संक्रमण से सुरक्षित रहें। लेकिन, ट्रेन में सवार होने के बाद प्रवासियों को भगवान भरोसे छोड़ दिया जा रहा है। न शारीरिक दूरी का पालन और न कोई यह देखने वाला ही कि लोग मास्क का इस्तेमाल कर भी रहे हैं या नहीं। ट्रेन के अंदर शारीरिक दूरी का कितना पालन हो रहा है, इसकी निगरानी करने के लिए जिला प्रशासन या रेलवे ने कोई कदम नहीं उठाया।
यात्री खुद भी नहीं रख रहे ध्यान
ट्रेनों से घर वापस जा रहे प्रवासी खुद भी शारीरिक दूरी का ध्यान नहीं रख रहे हैं। घर जाने की खुशी में लोग यह भूल जा रहे हैं कि जिस महामारी की वजह से कामकाज और शहर छूटा, यात्रा के दौरान शारीरिक दूरी का उल्लंघन करने पर वह बीमारी घर तक पहुंच सकती है।
11 श्रमिक स्पेशल हो चुकीं रवाना
देहरादून रेलवे स्टेशन से अब तक 11 श्रमिक स्पेशल ट्रेन रवाना हो चुकी हैं। इनमें सबसे ज्यादा छह ट्रेन बिहार, तीन उत्तर प्रदेश, एक छत्तीसगढ़ और एक मणिपुर के लिए रवाना हुई। बिहार जाने वाली अधिकांश ट्रेनों में 1152 यात्री रवाना हुए। छत्तीसगढ़ जाने वाली ट्रेन में 932 और मणिपुर जाने वाली ट्रेन में 402 यात्री गए। उत्तर प्रदेश जानी वाली ट्रेन में 1000 से 1100 के बीच यात्री थे।
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शारीरिक दूरी के कराए जा रहे अनाउंसेंट
देहरादून के स्टेशल निदेशक गणेश चंद्र ठाकुर के मुताबिक, रेलवे बोर्ड ने ट्रेन की बोगियों में यात्रियों के बैठने की जो क्षमता तय की है। उसी के अनुसार यात्रियों को भेजा जा रहा है। रेलवे स्टेशन पर लगातार शारीरिक दूरी व अन्य नियमों की जागरूकता के लिए अनाउंसमेंट कराए जा रहे हैं।
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