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खरीद-फरोख्त मामले में मां को लौटाया बच्चा, जानिए बच्चा गोद लेने की प्रक्रिया

पुलिस ने बच्चे की खरीद-फरोख्त प्रकरण का पटाक्षेप कर दिया। एंटी ह्यूमन ट्रैफिकिंग सेल की टीम ने बाल कल्याण समिति के सामने संबंधित पक्षों को पेश किया।

By Raksha PanthariEdited By: Published: Tue, 08 Jan 2019 04:29 PM (IST)Updated: Tue, 08 Jan 2019 04:29 PM (IST)
खरीद-फरोख्त मामले में मां को लौटाया बच्चा, जानिए बच्चा गोद लेने की प्रक्रिया
खरीद-फरोख्त मामले में मां को लौटाया बच्चा, जानिए बच्चा गोद लेने की प्रक्रिया

विकासनगर, जेएनएन। चौबीस घंटे की उधेड़बुन के बाद आखिरकार पुलिस ने बच्चे की खरीद-फरोख्त प्रकरण का पटाक्षेप कर दिया। एंटी ह्यूमन ट्रैफिकिंग सेल की टीम ने बाल कल्याण समिति के सामने संबंधित पक्षों को पेश किया। इसके बाद प्रकरण से जुड़े सभी लोगों को क्लीन चिट दे दी गई। साथ ही बच्चा मां को सौंप दिया गया है। 

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समिति के समक्ष बच्चे के माता-पिता, बिचौलिये की भूमिका निभाने वाली नर्स और बच्चे को खरीदने वाली युवती ने गोद लेने की कानूनी प्रक्रिया का ज्ञान न होने की बात कहते हुए अपनी गलती मानी। इस पर चाइल्ड वेलफेयर कमेटी चेयरपर्सन डॉ. सुधा देवरानी ने बच्चे को उसकी मां को लौटा दिया। साथ ही बच्चे को गोद लेने वाली महिला को कानूनी प्रक्रिया अपनाने की सलाह दी। 

उल्लेखनीय है कि बाबूगढ़ क्षेत्र के एक दंपती ने एक निजी अस्पताल की नर्स के माध्यम से देहरादून की एक युवती को अपना डेढ़ साल का बेटा पचास हजार रुपये में बेच दिया था। तीन दिसंबर को हुआ यह सौदा रविवार को विकासनगर बाजार चौकी पहुंचा था। कोतवाल महेश जोशी ने पूरा मामला एंटी ह्यूमन ट्रैफिकिंग सेल को सौंप दिया। 

एंटी ह्यूमन ट्रैफिकिंग सेल की जांच में मामला प्रथमदृष्टया मानव तस्करी का सामने आया। जिसपर इस संबंध में बाजार चौकी में तहरीर दी गई थी। इस बीच बच्चे के मां-पिता, बिचौलिया नर्स और खरीददार युवती को पुलिस ने हिरासत में ले लिया था। लेकिन, शाम होते-होते मामला ने नया रूप ले लिया। पुलिस ने मामले को जांच में डाल दिया था और हिरासत में लिए चारों लोगों को पूछताछ के बाद छोड़ दिया। जिस बच्चे का सौदा किया गया था, उसे भी मां-पिता को सौंप दिया। 

एंटी ह्यूमन ट्रैफिकिंग सेल दारोगा तुलसीराम ने प्रकरण से जुड़े चारों लोगों को बाल कल्याण समिति के समक्ष पेश किया। जहां पर उन्होंने बच्चा गोद लेने की प्रक्रिया का ज्ञान न होने की बात कही और अज्ञानतावश यह कदम उठाए जाने की बात कहते हुए गलती मानी। एंटी ह्यूमन ट्रैफिकिंग सेल के दारोगा तुलसीराम के अनुसार चाइल्ड वेलफेयर कमेटी चेयरपर्सन डॉ. सुधा देवरानी ने बच्चे को उसकी मां को लौटाने के आदेश दिए, साथ ही बच्चे को गोद लेने वाली युवती को कानूनी प्रक्रिया अपनाने की सलाह दी। बच्चा खरीदने वाली देहरादून की युवती से पचास हजार रुपये देने के सवाल पर दंपती ने कहा कि यह रकम उधार ली थी। समिति ने दंपती को यह रकम युवती को लौटाने के निर्देश भी दिए। 

बच्चा प्रकरण का पटाक्षेप पर कई सवाल अनुत्तरित 

विकासनगर के बच्चा खरीद-फरोख्त प्रकरण का चाइल्ड वेलफेयर कमेटी की रिपोर्ट आने के बाद पटाक्षेप भले ही हो गया, पर यह वाकया अपने पीछे कई सवाल छोड़ गया। जिनका जवाब अब शायद ही तलाशा जा सके। चिंता की बात यह कि मामले को रफा-दफा कराने के पीछे दबी जुबान सियासी दलों के कद्दावर नेताओं के नामों की चर्चा रही। यही वजह रही कि पुलिस और प्रशासन के आला अधिकारी ऐसे कृत्य पर कड़ी कार्रवाई का संदेश देने में भी नाकाम रहे। 

आपको बता दें कि रविवार को विकासनगर कोतवाली में डेढ़ साल के मासूम को चंद रुपये की खातिर बेच देने का मामला प्रकाश में आया। मामला सीधा ह्यूमन ट्रैफिकिंग से जुड़ा होने के चलते के चलते पुलिस भी कार्रवाई का मन बना चुकी थी, यहां तक कि तहरीर भी हो चुकी थी। मगर इस बीच इलाके के एक जनप्रतिनिधि समेत भाजपा-कांग्रेस के कई नेता सक्रिय हो गए, जो इस मामले में किसी कीमत पर पुलिस कार्रवाई नहीं होने देना चाहते थे। आगे की कार्रवाई का पूरा दारोमदार चाइल्ड वेलफेयर कमेटी की रिपोर्ट पर था, जिसमें फिलहाल कोई ऐसी बात नहीं की गई, जिससे कानूनी कार्रवाई का आधार बनता हो। 

सीडब्ल्यूसी ने सोमवार को दोनों पक्षों के बयान दर्ज किए, जिसके बाद उनसे यह शपथ पत्र लिया गया कि भविष्य में इस तरह का कोई काम नहीं करेंगे। इसके साथ ही बच्चे को उसकी मां के सुपुर्द कर दिया गया और दोनों पक्षों को छोड़ भी दिया गया। ऐसे में सवाल यह है कि बच्चे की खरीद-फरोख्त में रुपये का लेनदेन कोई अपराध नहीं है, अगर है तो इस पर कार्रवाई न होना अपने आप में सवाल खड़े करता है। 

चाइल्ड वेलफेयर कमेटी की प्रभारी अध्यक्ष सुधा देवरानी ने बताया कि दोनों पक्षों के बयान दर्ज किए गए। उन्होंने अपनी गलती स्वीकारी और यह भी कहा कि बच्चा गोद लेने की प्रक्रिया के बारे में जानकारी होने के चलते उन्होंने ऐसा किया। दोनों पक्षों ने शपथ पत्र भी दिया है कि भविष्य में दोबारा यह कृत्य नहीं करेंगे। इसके बाद बच्चे को उसकी मां के सुपुर्द कर दिया गया।  

एससपी निवेदिता कुकरेती का कहना है कि चाइल्ड वेलफेयर कमेटी की रिपोर्ट के बाद प्रकरण में कानूनी कार्रवाई का आधार नहीं बनता है। संबंधित पक्ष को कहा गया है कि यदि उन्हें बच्चा गोद लेना है तो विधिक प्रक्रिया अपनाएं, भविष्य में ऐसा किया तो कड़ी कार्रवाई की जाएगी। 

बेहद पेचीदा और लंबी है बच्चा गोद लेने की प्रक्रिया 

कानूनी तौर पर बच्चा गोद लेने की प्रक्रिया पेचीदा होने के साथ लंबी भी है। सेंट्रल अडॉप्शन रिसोर्स अथॉरिटी (कारा) नाम की संस्था इसके लिए नोडल बनाई गई है। बच्चा गोद लेने की प्रक्रिया लंबी जरूर है, लेकिन इसमें कहीं भी पैसे का लेन-देन नहीं होता। यहां तक कि गोद लेने वाले माता-पिता से नियमानुसार यह भी नहीं कहा जा सकता कि वह बच्चे के नाम पर कोई बांड लें या इनवेस्टमेंट करें। 

गोद लेने की प्रक्रिया 

- गोद लेने वाले दंपती को शारीरिक, मानसिक, भावनात्मक व आर्थिक रूप से सक्षम होना आवश्यक है। यह बात प्रमाणित होनी चाहिए कि दोनों को कोई जानलेवा बीमारी तो नहीं है। 

- कोई भी दंपती, स्त्री या पुरुष जिनकी अपनी कोई जैविक संतान हो या न हो, वह बच्चा गोद ले सकते हैं। बशर्ते अभिभावक शादीशुदा हैं तो उन दोनों की आपसी सहमति होना जरूरी है। 

- अकेली महिला किसी भी लिंग के बच्चे को गोद ले सकती है, जबकि अकेला पुरुष केवल लड़के को गोद ले सकता है। 

- संभावित माता-पिता अगर दो साल से अधिक समय से शादीशुदा है तो ही वह बच्चा गोद ले सकते हैं। 

- जिस बच्चे को गोद ले रहे हैं, उनमें और संभावित माता-पिता के उम्र के बीच कम से कम 25 साल का अंतर होना चाहिए। 

- जिन लोगों के पहले से तीन या इससे अधिक बच्चे हैं वह गोद नहीं ले सकते। लेकिन विशेष परिस्थितियों में उनके लिए भी प्रावधान है। 

यह औपचारिकता करनी होती है पूरी 

- बच्चे को गोद लेने के इच्छुक लोग या दंपति की मौजूदा तस्वीर। गोद लेने वाले का पैन कार्ड। जन्म प्रमाण पत्र। निवास प्रमाण पत्र। संबंधित साल का आयकर रिटर्न। सरकारी अस्पताल से जारी किया गया मेडिकल प्रमाण पत्र। शादी का प्रमाण पत्र ( यदि शादीशुदा हैं तो)। तलाकशुदा है तो तलाक के पेपर। गोद लेने के इच्छुक व्यक्ति के पक्ष में दो गवाह। यदि गोद लेने वाले को पहले से कोई बच्चा है और उसकी उम्र पांच साल से अधिक है तो उसकी सहमति। 

महाराष्ट्र में ऐसे ही प्रकरण में दर्ज हुआ था केस 

कोतवाली अंतर्गत डेढ़ साल के बच्चे को बेचने के मामले में एक आरोपित को बचाने के लिए चंद घंटों में ही पुलिस का रवैया बदल गया। सीडब्ल्यूसी का हवाला देकर दोनों पक्षों को क्लीन चिट दे दी गई। जबकि इस तरह के महाराष्ट्र में एक मामले में सीडब्ल्यूसी ने मुकदमे के आदेश दिए थे। 

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