सड़कों पर पैदल यात्रियों के अधिकार सुरक्षित नहीं, जानिए
अंतरराष्ट्रीय सड़क महासंघ के जनसंपर्क अधिकारी वीरेंद्र अरोड़ा का कहना है कि सड़कों पर पैदल यात्रियों के अधिकार सुरक्षित नहीं है।
देहरादून, जेएनएन। देहरादून ही नहीं समूचे देश की सड़कों की स्थिति को देखकर कहा जा सकता है कि पैदल यात्रियों के अधिकार सुरक्षित ही नहीं हैं। आंकड़े इस बात की गवाही देने के लिए काफी हैं। वर्ष 2014 से 2017 के बीच 62 हजार से अधिक पैदल यात्रियों की मौत सड़क दुर्घटनाओं में हुई हैं।
अंतरराष्ट्रीय सड़क महासंघ के जनसंपर्क अधिकारी वीरेंद्र अरोड़ा का कहना है कि देश में सड़क परियोजनाओं के निर्माण में पैदल यात्रियों के लिए समुचित बजटीय प्रावधान रखा ही नहीं जाता है। बात चाहे फुटओवर ब्रिज या अंडरपास की करें तो उनका निर्माण सहूलियत के लिहाज से नहीं होता है। इसके चलते पैदल यात्री इनका प्रयोग करने से कतराते हैं। मजबूरी में उन्हीं सड़कों का प्रयोग करते हैं, जिन पर वाहनों की रेलपेल रहती है। ऐसे में हादसों का खतरा बढ़ जाता है। दून में तहसील चौक स्थित फुटओवर ब्रिज की ही बात करें तो यह सात-आठ मीटर चौड़ी सड़क पर बनाया गया है और इसकी ऊंचाई व लंबाई कम से कम 70 मीटर है। ऐसे में एक भी यात्री इस चढ़कर सड़क पार नहीं करता है। वहीं, जहां सब-वे (भूमिगत मार्ग) का निर्माण किया गया है, वहां उनकी गहराई बेहद अधिक रखी गई है। जबकि होना यह चाहिए कि सब-वे वाले हिस्से पर सड़क को उठा देना चाहिए और उसकी गहराई कम से कम रखी जानी चाहिए। ताकि पैदल यात्रियों को लंबा सफर न तय करना पड़े।
हर साल पैदल यात्रियों की कितनी अकाल मौत
- वर्ष 2014, 12330
- वर्ष 2015, 13894
- वर्ष 2016, 15746
- वर्ष 2017, 20457
पैदल यात्रियों की सुरक्षा पर ध्यान नहीं
- दून की अधिकतर सड़कों पर फुटपाथ नहीं है।
- कई चौराहों पर जेब्रा क्रासिंग का अभाव है।
- दिव्यांगों की सुविधा के लिए इंतजाम नहीं हैं।
14 वर्ष तक की उम्र के बच्चों का रखें ख्याल
सड़क पार करते समय 14 वर्ष तक की उम्र के बच्चों का विशेष ध्यान रखने की जरूरत होती है। क्योंकि इस उम्र तक बच्चे वाहनों की भागमभाग के बीच यह तय कर पाने में उतने सक्षम नहीं होते हैं कि कहां पर रुकना या है कब सड़क पार करनी है। कई बार कम उम्र के बच्चे बिना दाएं या बाएं देखे सीधे चलते रहते हैं, ऐसा करना बेहद खतरनाक साबित हो सकता है।
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