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तो सिर्फ टेलीकॉम कंपनियां खोद रहीं हैं देहरादून में सड़कें

दून की सड़कों पर सिर्फ टेलीकॉम कंपनियां ही सड़कों को खोद रही हैं। इसकी वजह यह कि लोनिवि के रोड कटिंग में प्राप्त धनराशि में सिर्फ टेलीकॉम कंपनियों का ही ब्योरा है।

By Edited By: Published: Fri, 22 Feb 2019 03:00 AM (IST)Updated: Fri, 22 Feb 2019 02:22 PM (IST)
तो सिर्फ टेलीकॉम कंपनियां खोद रहीं हैं देहरादून में सड़कें
तो सिर्फ टेलीकॉम कंपनियां खोद रहीं हैं देहरादून में सड़कें

देहरादून, सुमन सेमवाल। लोनिवि प्रांतीय खंड के आंकड़े बताते हैं कि दून की सड़कों पर सिर्फ टेलीकॉम कंपनियां ही सड़कों को खोद रही हैं। इसकी वजह यह कि लोनिवि के रोड कटिंग में प्राप्त धनराशि में सिर्फ टेलीकॉम कंपनियों का ही ब्योरा है। हकीकत में ऐसा नहीं है। तमाम सड़कों पर पेयजल लाइन और सीवर लाइन आदि के कार्यों के लिए भी लोग खोद डालते हैं। इनमें से बड़ी संख्या में लोग लोनिवि से स्वीकृति लेकर भी रोड कटिंग करते हैं। मगर, ऐसे कार्यों का खंड के पास किसी तरह का ब्योरा ही नहीं है और इसी कारण खुदाई के बाद लंबे समय तक सड़कों की मरम्मत ही नहीं हो पाती है। ऐसे में इस आशंका से भी इन्कार नहीं किया जा सकता कि रोड कटिंग से प्राप्त धनराशि को खर्च करने में बड़ी अनियमितता बरती जा रही है।

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लोनिवि प्रांतीय खंड की इस हीलाहवाली का खुलासा आरटीआइ में मांगी गई ताजा जानकारी में हुआ। आरटीआइ से प्राप्त रिकॉर्ड के मुताबिक, वर्ष 2013-14 से लेकर वर्ष 2018-19 में अब तक महज 48 बार ही सड़कों की खुदाई की गई। रोड कटिंग के इन आंकड़ों में भी सिर्फ विभिन्न टेलीकॉम कंपनियों का ही जिक्र किया गया है। इस रोड कटिंग से प्रांतीय खंड को करीब 13.72 करोड़ रुपये प्राप्त हुए हैं। हालांकि एक मोटा अनुमान भी लगाया जाए तो वर्तमान में भी दून में कम से कम 200 स्थानों पर रोड कटिंग की गई है। स्वयं लोनिवि अधिकारी स्वीकार कर रहे हैं कि निजी स्तर पर रोड कटिंग की स्वीकृति दी जाती है और उसके सापेक्ष धनराशि प्राप्त की जाती है।

हालांकि, इस राशि के ब्योरे को लेकर अधिकारियों के पास कोई ठोस जवाब नहीं है। ऐसे में स्पष्ट है कि जितनी राशि लोनिवि को टेलीकॉम कंपनियों से प्राप्त हुई है, उससे कहीं अधिक राशि का कोई हिसाब उनके पास नहीं है। हिसाब नहीं तो सड़कों की मरम्मत भी नहीं रोड कटिंग के जिन मामलों में धनराशि का हिसाब रखा जाता है, उसकी समय के भीतर मरम्मत की बाध्यता रहती है। वहीं, अन्य मामलों में हिसाब-किताब न रखे जाने के चलते इन सड़कों को इसी तरह छोड़ दिया जाता है। कई दफा जानकर भी अधिकारी इन सड़कों से अनजान बने रहते हैं और प्राप्त धनराशि मनमर्जी से खर्च कर दी जाती है। जिसका खामियाजा लोगों को उठाना पड़ता है और ऐसी सड़कों पर आए दिन हादसे होते रहते हैं।

रोड कटिंग की इसी राशि का विवरण (रु. में) 

  • वर्ष------------राशि 
  • 2013-14------------4.61 करोड़ 
  • 2014-15------------3.04 करोड़ 
  • 2015-16------------2.62 करोड़ 
  • 2016-17------------48.18 लाख 
  • 2017-18------------2.61 करोड़ 
  • 2018-19------------34.74 लाख 

बोले अधिकारी

जगमोहन सिंह चौहान (अधिशासी अभियंता, प्रांतीय खंड, देहरादून) का कहना है कि रोड कटिंग की अनुमति अन्य स्तर पर भी प्राप्त की जाती है। तमाम लोग भी निजी कार्यों के लिए अनुमति लेते हैं। पता किया जाएगा कि अब तक सिर्फ टेलीकॉम कंपनियों से प्राप्त धनराशि के अलावा अन्य का हिसाब क्यों नहीं रखा जा रहा।

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