उत्तराखंड के पर्वतीय जिलों में नए थानों को अभी इंतजार
पर्वतीय जिलों में नए थाने खोलने को अभी और इंतजार करना होगा। सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में सीमित आर्थिक संसाधनों का हवाला देते हुए हाईकोर्ट के निर्णय के खिलाफ एसएलपी लगाई हुई है।
देहरादून, राज्य ब्यूरो। प्रदेश के पर्वतीय जिलों में नए थाने खोलने को अभी और इंतजार करना होगा। सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में सीमित आर्थिक संसाधनों का हवाला देते हुए हाईकोर्ट के निर्णय के खिलाफ एसएलपी लगाई हुई है। हालांकि, इस दौरान राजस्व क्षेत्रों के गंभीर अपराधों पर जरूर जांच सिविल पुलिस को ही सौंपी जा रही है।
उत्तराखंड की भौगोलिक परिस्थितियों के अनुसार यहां का तकरीबन 60 फीसद हिस्सा राजस्व पुलिस यानी पटवारी व्यवस्था के अंतर्गत आता है। शेष 40 प्रतिशत हिस्से पर ही सिविल पुलिस तैनात है। यह बात अलग है कि इसी 40 फीसद हिस्से में सभी प्रमुख जिले और अधिकांश जनसंख्या रहती है। उत्तराखंड की राजस्व पुलिस व्यवस्था पूरे देश में अनोखी है। यहां पटवारियों को ही पुलिस के समान अधिकार हैं और राजस्व क्षेत्रों में होने वाले अपराधों की जांच भी वही करते हैं। प्रदेश में एक हजार से अधिक पटवारी सर्किल हैं, लेकिन इनमें 30 प्रतिशत खाली चल रहे हैं। 70 फीसद में ही पटवारी तैनात हैं।
बीते कुछ वर्षों में पर्वतीय क्षेत्रों में अपराध का ग्राफ बढ़ा है। ऐसे में राजस्व क्षेत्रों को सिविल पुलिस को सौंपे जाने की मांग उठती रही है। इसी संबंध में हाईकोर्ट ने वर्ष 2018 में एक याचिका की सुनवाई करते हुए राजस्व कर्मियों से पुलिस का काम न लेने का निर्णय दिया था और यहां सिविल पुलिस की तैनाती करने को कहा था।
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इस पर सरकार ने इसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी। इसी वर्ष सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में एक और हलफनामा दाखिल किया जिसमें प्रदेश के सीमित संसाधनों का हवाला देते हुए राजस्व क्षेत्रों में थाने खोलने में असमर्थता जाहिर की गई। इस मामले में जल्द निर्णय होने की उम्मीद थी। इस बीच कोरोना संक्रमण का दौर शुरू हो गया। ऐसे में अब इसकी सुनवाई टल गई है। माना जा रहा है कि अब क्योंकि सुप्रीम कोर्ट में कार्य शुरू हो गया है, ऐसे में इस पर जल्द ही निर्णय आ सकता है।
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