फिर उठा राजस्व क्षेत्रों में सिविल पुलिस का मसला
उत्तरकाशी के राजस्व क्षेत्र डुंडा में बीते रोज 12 वर्षीय किशोरी के साथ दुष्कर्म और हत्या के जघन्य प्रकरण के बाद राजस्व क्षेत्रों में सिविल पुलिस की तैनाती का मसला फिर उठने लगा है।
By Edited By: Published: Sun, 19 Aug 2018 09:53 PM (IST)Updated: Mon, 20 Aug 2018 12:19 PM (IST)
राज्य ब्यूरो, देहरादून: उत्तरकाशी के राजस्व क्षेत्र डुंडा में बीते रोज 12 वर्षीय किशोरी के साथ दुष्कर्म और हत्या के जघन्य प्रकरण के बाद राजस्व क्षेत्रों में सिविल पुलिस की तैनाती का मसला फिर उठने लगा है। यह बात अलग है कि अब राजस्व क्षेत्रों के गंभीर अपराध तुरंत पुलिस को हस्तांतरित कर दिए जाते हैं लेकिन कानून-व्यवस्था को दुरुस्त करने और अपराधियों में कानून के प्रति भय पैदा करने के लिए तेजी से आबाद होते कस्बों में यह कदम जरूरी माना जा रहा है। उत्तराखंड देश में एक मात्र ऐसा प्रदेश है जहां पटवारी पुलिस यानी राजस्व पुलिस व्यवस्था अभी तक प्रभावी है। यह व्यवस्था आजादी से पहले से ही चली आ रही है। इस व्यवस्था में अधिकतर पटवारी ही पुलिस की भूमिका में रहता है और उसके नियंत्रण में कई गांव रहते हैं। मुकदमा दर्ज करने से लेकर जांच करने का जिम्मा इन्हीं के पास रहता है। बदलते समय के साथ इस व्यवस्था को बदलने की बात उठती रही है। दरअसल, अब राजस्व क्षेत्रों का तेजी से शहरीकरण हो रहा है। यहां तेजी से आबादी बढ़ रही है। यहां बाहर से लोग आने लगे हैं जिसके साथ अपराध की प्रवृति भी बदल रही है। इसलिए इन इलाकों को पुलिस को दिए जाने पर जोर दिया जा रहा है। हालांकि, प्रदेश की सरकारें गांव की शांत फिजाओं व कम आपराधिक घटनाओं के साथ ही राजस्व पुलिस को एक धरोहर मानते हुए इसे रखने के पक्ष में रही हैं। वैसे, विधायकों, जनप्रतिनिधियों और पुलिस के प्रस्तावों पर कुछ स्थानों में थाने भी खोले गए हैं लेकिन अब इनकी संख्या बढ़ाने की जरूरत महसूस हो रही है। इसी वर्ष हाईकोर्ट भी राजस्व पुलिस व्यवस्था को समाप्त करने के निर्देश दे चुकी है, जिसके खिलाफ प्रदेश सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में गई है। इस संबंध में प्रमुख सचिव गृह आनंद वर्द्धन का कहना है कि बीते वर्षो में राजस्व क्षेत्रों में पुलिस थाने खोले गए हैं और जरूरत के हिसाब से इनकी संख्या बढ़ाई भी गई है।
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