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उत्तराखंड में सूचना न देने में राजस्व विभाग सबसे आगे

सूचना का अधिकार अधिनियम (आरटीआइ एक्ट) की 11वीं वर्षगांठ पर पारदर्शिता का सवाल मुंह बाए खड़ा है और आज भी अधिकारियों के पल्ले से सूचना निकालना टेढ़ी खीर से कम नहीं।

By BhanuEdited By: Published: Sat, 15 Oct 2016 01:30 PM (IST)Updated: Sun, 16 Oct 2016 05:00 AM (IST)
उत्तराखंड में सूचना न देने में राजस्व विभाग सबसे आगे

देहरादून, [सुमन सेमवाल]: सूचना का अधिकार अधिनियम (आरटीआइ एक्ट) की 11वीं वर्षगांठ पर पारदर्शिता का सवाल मुंह बाए खड़ा है और आज भी अधिकारियों के पल्ले से सूचना निकालना टेढ़ी खीर से कम नहीं।
वैसे तो आरटीआइ एक्ट में सूचना देने के लिए लोक सूचनाधिकारियों को अधिकतम 30 दिन का पर्याप्त समय दिया गया है, लेकिन तय समय पर सूचना न देने के चलते ही वर्ष 2005-06 से अब तक 53 हजार 506 आवेदकों को प्रथम विभागीय अपीलीय अधिकारी का दरवाजा खटखटाना पड़ा। गंभीर यह कि 31 हजार 131 लोगों को अपील के पहले पायदान पर भी सूचना नहीं मिल पाई और उन्हें सूचना आयोग में अपील व शिकायत करने को विवश होना पड़ा।

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स्पष्ट कानून होने के बावजूद सूचना देने में आनाकानी करने में राजस्व विभाग टॉप पर है। इससे पहले यह 'खिताब' विद्यालयी शिक्षा विभाग के पास था। हालांकि जिस तरह से प्रदेश में खासकर दून व अन्य मैदानी क्षेत्रों में जमीनों की खरीद-फरोख्त में फर्जीवाड़ा बढ़ा है, उससे अपना अधिकार पाने के लिए लोगों को आरटीआइ का सहारा लेना पड़ रहा है।

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हालांकि तीन हजार से अधिक सूचना आवेदनों में लोगों को आयोग तक की दौड़ करवाने से पता चलता है कि राजस्व विभाग कितनी पारदर्शी व्यवस्था पर काम कर रहा है। इस मामले में विद्यालयी शिक्षा विभाग पहले पायदान से खिसककर दूसरे नंबर पर जरूर आया है, लेकिन स्थिति लगभग राजस्व विभाग जैसी ही है। वहीं, ग्रामीण विकास विभाग, शहरी विकास विभाग, गृह, ऊर्जा निगम, वन व स्वास्थ्य विभाग भी आसानी से सूचना न देने वाले टॉप टेन विभागों में शामिल हैं।

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सूचना आयोग पहुंचे केस
राजस्व विभाग---------------3489
विद्यालयी शिक्षा-------------3483
ग्रामीण विकास---------------1702
शहरी विकास-----------------1353
गृह विभाग-------------------1099
ऊर्जा निगम------------------1085
वन विभाग------------------- 660
स्वास्थ्य विभाग---------------657
लोनिवि-------------------------598
पेयजल-------------------------556

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95 से 48 फीसद पर खिसका निपटारा
मुख्य सूचना आयुक्त समेत छह आयुक्तों की संख्या घटकर दो रह जाने का असर अपीलों के निस्तारण पर भी पड़ने लगा है। मार्च 2016 तक अपीलों व शिकायतों के निस्तारण की स्थिति 95.89 फीसद थी। अब यह घटकर 48.41 रह गई है। समझा जा सकता है कि आयोग पर काम का बोझ हावी है।
गंभीर स्थिति यह कि जिन लोगों को लोक सूचनाधिकारियों व विभागीय अपीलीय अधिकारियों से भी न्याय नहीं मिल पा रहा, उन्हें अब सूचना आयोग से भी मायूसी हाथ लग रही है।

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लोक सूचनाधिकारियों को प्रशिक्षण की जरूरत
सूचना का अधिकार अधिनियम-2005 जब लागू हुआ तो बंद फाइलों से सूचनाएं सार्वजनिक करने की राह इतनी आसान न थी। वक्त के साथ सूचना मिलने में सुगमता बढ़ी, मगर अभी भी हालात इतने संतोषजनक नहीं है। यह बात अधिनियम की 11वीं वर्षगांठ पर सूचना आयोग की आयोग विचार गोष्ठी में निकलकर सामने आई।
स्थापना दिवस समारोह में गोष्ठी को संबोधित करते हुए प्रभारी मुख्य सूचना आयुक्त राजेंद्र कोटियाल ने कहा कि सूचना का अधिकार अधिनियम की अवधारणा को साकार करने के लिए अभी विभिन्न स्तर पर काफी प्रयास करने की जरूरत है।
उन्होंने शासन से भी अपेक्षा की कि सूचना आयोग की राह सुगम बनाने के लिए अपेक्षित सहयोग जरूरी यह। हालांकि इस बात को सुनने के लिए सूचना आयोग के नोडल विभाग सामान्य प्रशासन से कोई प्रतिनिधि गोष्ठी में उपस्थित नहीं था।

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सूचना आयुक्त सुरेंद्र रावत ने लोक सूचनाधिकारियों की जिम्मेदारी पर प्रकाश डालते हुए कहा कि उन्हें बेहतर प्रशिक्षण की जरूरत है। कई बार लोक सूचनाधिकारी का स्थानांतरण हो जाने पर नई तैनाती वाले कार्मिक को जानकारी नहीं होती। ऐसे में आवेदकों को सूचना मिलने में अनावश्यक फजीहत झेलनी पड़ जाती है।
गोष्ठी में भाग लेने आए अधिकारियों ने इस बात पर बल दिया कि लोक सूचनाधिकारियों का अलग से पद सृजित किया जाना चाहिए। इस अवसर पर सचिव सूचना प्रौद्योगिकी दीपक कुमार, सेवा का अधिकार सचिव पंकज नैथानी, अपर सचिव गन्ना विकास पीएस रावत, मुख्य विकास अधिकारी बंशीधर तिवारी, डॉ. लालता प्रसाद, झरना कमठान, डीपी देवराड़ी आदि उपस्थित रहे।
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