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जैव विविधता से जुड़े अनछुए पहलु आएंगे सामने, सहेजेंगे कीटभक्षी पौधे, उड़न गिलहरी को भी संरक्षण

जैव विविधता से जुड़े अनछुए पहलुओं पर वन विभाग की अनुसंधान शाखा पहली बार अनुसंधान करेगी। कीटभक्षी पौधे सहेजे जाएंगे तो उड़ने वाली गिलहरी को भी संरक्षण मिलेगा।

By Edited By: Published: Sun, 14 Jul 2019 08:21 PM (IST)Updated: Tue, 16 Jul 2019 03:33 PM (IST)
जैव विविधता से जुड़े अनछुए पहलु आएंगे सामने, सहेजेंगे कीटभक्षी पौधे, उड़न गिलहरी को भी संरक्षण
जैव विविधता से जुड़े अनछुए पहलु आएंगे सामने, सहेजेंगे कीटभक्षी पौधे, उड़न गिलहरी को भी संरक्षण

देहरादून, राज्य ब्यूरो। जैव विविधता के लिए मशहूर उत्तराखंड में जैव विविधता से जुड़े अनछुए पहलुओं पर वन विभाग की अनुसंधान शाखा पहली बार अनुसंधान करेगी। इसके तहत हिमालयी क्षेत्र में मिलने वाले कीटभक्षी पौधे सहेजे जाएंगे तो उड़ने वाली गिलहरी को भी संरक्षण मिलेगा। यही नहीं, लाइकेन, बांस, जंगली मशरूम, बेंत, बुरांश, आर्किड के अलावा जलीय पौधों की प्रजातियों पर भी शोध कर इनके संरक्षण-संवद्र्धन को कदम उठाए जाएंगे। गढ़वाल हिमालय क्षेत्र में सलेक्स प्रजाति के वृक्षों की संभावनाएं भी तलाशी जाएंगी। सेलेक्स की लकड़ी का उपयोग क्रिकेट के बल्ले बनाने में होता है। वन विभाग की अनुसंधान सलाहकार समिति की बैठक में रखे गए अनुसंधान से जुड़े प्रस्तावों को मंजूरी दे दी गई।

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अनुसंधान सलाहकार समिति (आरएसी) की वन मुख्यालय में हुई बैठक में इस वर्ष के अनुसंधान कार्यों के मद्देनजर अनुसंधान शाखा ने कई प्रस्ताव रखे थे। गहन मंथन के बाद इनमें से अधिकांश को हरी झंडी दे दी गई। वन संरक्षक अनुसंधान वृत्त संजीव चतुर्वेदी के अनुसार आरएसी की अनुमति मिलने के साथ ही अब वन विभाग की अनुसंधान शाखा राज्य में पहली बार जैव विविधता से जुड़े अनछुए पहलुओं पर अनुसंधान करेगी। इसके लिए तैयारियां भी शुरू कर दी गई हैं।

कीटभक्षी पौधों का मंडल में संरक्षण

आइएफएस चतुर्वेदी के अनुसार आरएसी ने राज्य में कीटभक्षी पौधों के संरक्षण-संवद्र्धन के लिए अनुसंधान को मंजूरी दी है। कीटभक्षी पौधों की कुछ प्रजातियां राज्य में रालाम घाटी, थलकेदार, मंडल और नंदादेवी राष्ट्रीय पार्क में पाई जाती हैं। इन सभी का गोपेश्वर के मंडल में प्राकृतिक वास में संरक्षण किया जाएगा।

पता चलेगा कहां-कहां है उड़ने वाली गिलहरी

प्रदेश में देवलसारी समेत एकाध अन्य स्थलों में उड़ने वाली गिलहरी (फ्लाइंग स्क्वैरल) देखी गई हैं। अब आरएसी की हरी झंडी के बाद अनुसंधान शाखा ये पता लगाएगी कि यह राज्य में कहां-कहां और किन क्षेत्रों में हैं। यह भी देखा जाएगा कि कहीं इनके वासस्थल खतरे में तो नहीं हैं। रिपोर्ट तैयार इनके संरक्षण को कदम उठाए जाएंगे।

हिमाचल के सहयोग से तलाशेंगे सेलेक्स की संभावनाएं

पड़ोसी राज्य हिमाचल में सेलेक्स के पेड़ों की कई प्रजातियों को बढ़ावा देने में सफलता मिली है। अब हिमाचल की डॉ. वाइएस परमार बागवानी एवं वानिकी विवि सोलन के सहयोग से उत्तराखंड के गढ़वाल हिमालय में सेलेक्स की संभावनाएं तलाशी जाएंगी। अनुसंधान शाखा इसके लिए गहन अध्ययन कर कुछ स्थानों पर सेलेक्स के पौधे लगाएगी। यदि यह प्रयोग सफल रहा तो कृषि वानिकी के क्षेत्र में यह एक अहम कदम साबित होगा।

मुनस्यारी में बुरांस, मंडल में आर्किड

आरएसी ने कुमाऊं के मुनस्यारी क्षेत्र में राज्य में पाई जाने वाली बुरांस की सभी छह प्रजातियों के साथ ही अन्य राज्यों से भी इसकी प्रजातियां यहां लाकर संरक्षण प्रदर्शन स्थल को मंजूरी दी है। इसके अलावा गढ़वाल मंडल में गोपेश्वर के नजदीक मंडल में आर्किड प्रजातियों को प्राकृतिक वासस्थल में संरक्षित करने और इसे ईको टूरिज्म के तौर पर विकसित करने को भी अनुमति दी है। यही नहीं, राज्य में पाई जाने वाली जलीय पौधों की प्रजातियों पर भी शोध की मंजूरी दी गई है।

इनमें भी अनुसंधान को मंजूरी

  • लाइकेन :- मास यानी लाइकेन की मुख्य प्रजातियों में झूला घास समेत अन्य प्रजातियों का संरक्षण मुनस्यारी में होगा।
  • बांस :- उत्तराखंड में मिलने वाली बांस की विभिन्न प्रजातियों के संरक्षण व विपणन के लिए नैनीताल क्षेत्र में विकसित होगा प्रदर्शन स्थल
  • जंगली मशरूम :- राज्य के जंगलों में कई प्रकार की मशरूम भी निकलती है। खासकर गुच्छी मशरूम का बड़े पैमाने पर अनियंत्रित दोहन हो रहा है। मशरूम की प्रजातियों का देववन में प्राकृतिक वासस्थल में संरक्षण किया जाएगा।
  • बेंत :- बेंत प्रजाति की संभावनाओं को देखते हुए इसके लिए तैयार होगा प्रदर्शन स्थल
  • प्राकृतिक वन :- आरएसी ने राज्य में जापान की मियावाकी तकनीक से प्राकृतिक रूप से वनों को पनपाने के प्रस्ताव को भी प्रयोग के तौर पर चलाने की मंजूरी दी है।

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