शुरुआती दौर में ही ढीला पड़ने लगा रेरा का फेरा, जानिए कैसे
रेरा की भूमिका सिर्फ आदेश जारी करने वाली एजेंसी तक सिमटती दिख रही है। अब तक अथॉरिटी ने जितने आदेश जारी किए हैं, उनमें से महज आठ फीसद का ही अनुपालन हो पाया है।
देहरादून, सुमन सेमवाल। रेरा (रियल एस्टेट रेगुलेटरी अथॉरिटी) का फेरा शुरुआती दौर में ही ढीला पड़ने लगा है। रेरा अध्यक्ष और सदस्य बिल्डरों व कोलोनाइजरों की मनमानी के खिलाफ आदेश पर आदेश जारी कर रहे हैं और बिल्डर हैं कि उसका अनुपालन करने में दिलचस्पी ही नहीं दिखा रहे हैं। सीधे शब्दों में कहें तो रेरा को लेकर जो भय मनमानी करने वालें बिल्डरों में इसके गठन के दौरान नजर आ रहा था, वह अब गायब हो चुका है। ऐसे में रेरा की भूमिका सिर्फ आदेश जारी करने वाली एजेंसी तक सिमटती दिख रही है। अब तक अथॉरिटी ने जितने आदेश जारी किए हैं, उनमें से महज आठ फीसद का ही अनुपालन हो पाया है।
केंद्र की भाजपा सरकार बड़ी शिद्दत के साथ रियल एस्टेट (रेगुलेशन एंड डेवलपमेंट) एक्ट-2016 लेकर आई थी। मंशा साफ थी कि खून-पसीने की कमाई लगाकर आशियाने का ख्वाब देख रहे लोगों को बिल्डर छल न पाएं। केंद्रीय एक्ट के अनुरूप राज्य सरकार ने भी इस दिशा में झटपट नियम बनाए और रेरा (रियल एस्टेट रेगुलेटरी अथॉरिटी) का गठन भी किया। लोग बिल्डरों के रवैये से इस कदर परेशान थे कि रेरा के गठन से पहले ही दो दर्जन से अधिक शिकायतें दर्ज कर दी गई थीं। शुरुआत में उत्तराखंड आवास एवं नगर विकास प्राधिकरण (उडा) ने रेरा के सचिवालय की भूमिका निभाते हुए शिकायतों पर सुनवाई शुरू की थी और तभी से शिकायतों की संख्या तेजी से बढऩे लगी थी। अधिकतर शिकायतें बिल्डरों के समय पर कब्जा न देने संबंधी थीं। मार्च 2018 में अथॉरिटी के गठन के बाद शिकायतों की संख्या और तेजी से बढऩे लगी। अब तक रेरा में बिल्डरों व कोलोनाइजरों के खिलाफ 246 शिकायतें दर्ज की जा चुकी हैं, जिनमें से 122 शिकायतों का निस्तारण कर दिया गया है। अधिकतर में बिल्डर को राशि लौटाने के आदेश दिए गए हैं। हालांकि इसके बाद भी 10 से कम मामलों में बिल्डरों ने आदेश का पालन किया है।
रेरा ट्रिब्यूनल से बैरंग लौट रहे बिल्डर
ऐसा नहीं है कि रेरा का आदेश न मानने वाले बिल्डर रेरा अपीलेट ट्रिब्यूनल में वाद दायर कर रहे हैं और प्रकरण वहां लंबित हैं। आंकड़े बताते हैं कि करीब एक दर्जन मामलों में ही बिल्डरों ने ट्रिब्यूनल में अपील की है। हालांकि यहां से भी बिल्डरों के खिलाफ आदेश दिए गए हैं। इसकी बड़ी वजह यह भी कि अधिकतर प्रकरणों में बिल्डर के स्तर से ही खामियां पाई जा रही हैं। बड़ा सवाल यह भी कि जब बिल्डर अपील भी नहीं कर रहे हैं तो फिर किस कारण रेरा के आदेश का अनुपालन नहीं कराया जा रहा।
निवेशकों की यह शिकायतें अधिक
- करीब 65 फीसद शिकायतें कब्जे संबंधी हैं। एग्रीमेंट में बिल्डर जिस तिथि तक कब्जा देने की बात कर रहे हैं, उससे मुकर जा रहे हैं।
- 25 फीसद शिकायतें ऐसी हैं, जिनमें कहा गया है कि अभी तक परियोजना का अधिकांश काम होना शेष है। जबकि निर्माण पूरा करने की अवधि बीत चुकी है।
- 10 फीसद शिकायतें ऐसी हैं, जिसमें बिल्डर बुकिंग के बाद भी अतिरिक्त धनराशि की मांग कर रहे हैं।
नीसू कंस्ट्रक्शन की रेरा को खुली चुनौती
रेरा के आदेश की सबसे अधिक नाफरमानी रुड़की स्थित नीसू कंस्ट्रक्शन की दो परियोजनाओं को लेकर मिल रही है। इनका निर्माण कायदे से करीब डेढ़ साल पहले हो जाना चाहिए था, जबकि अब तक ये अधर में लटकी हैं। धनराशि लेने के बाद भी कब्जा न देने को लेकर नीसू कंस्ट्रक्शन के खिलाफ रेरा अध्यक्ष विष्णु कुमार करीब 60 आदेश जारी कर चुके हैं। इसके बाद भी न तो आदेश का पालन किया जा रहा है और न ही साइट पर काम चल रहा है। कुछ दिन पहले रेरा ने परियोजना के संचालकों से परियोजना की तमाम जानकारी मांगी थी, मगर इसका भी अनुपालन नहीं किया गया। रेरा अध्यक्ष विष्णु कुमार का कहना है कि नीसू कंस्ट्रक्शन को लेकर हरिद्वार के जिलाधिकारी समेत एसएसपी को भी पत्र लिखा जा चुका है, फिर भी कुछ नहीं किया जा रहा। संबंधित बिल्डरों का साफ कहना है कि उनके पास पैसा ही नहीं है। इस स्थिति के बाद यह तो संपत्ति को नीलाम किया जाएगा या कि निवेशकों की समिति बनाकर उनके माध्यम से काम को पूरा कराया जाएगा।
देहरादून के बिल्डरों के खिलाफ 50 शिकायतें
रेरा में दर्ज 246 शिकायतों में से 50 शिकायतें देहरादून के बिल्डरों के खिलाफ दर्ज की गई हैं। यहां भी आदेश के अनुपालन की स्थिति वही है, जो अन्य जिलों की है। जिन प्रकरणों में आदेश का पालन हुआ भी है, उनमें निवेशकों के समझौतों का बड़ा हाथ है। क्योंकि जिन मामलों में निवेशक धनराशि वापस लौटाने पर अड़े हैं, उनमें बिल्डर पल्ला झाड़ते नजर आ रहे हैं।
बिल्डरों के पक्ष में उतरी थी सरकार, निवेशकों से मुहं मोड़ा
रियल एस्टेट (रेगुलेशन एंड डेवलपमेंट) एक्ट में स्पष्ट किया गया था कि जिन परियोजनाओं में मई 2017 तक कंप्लीशन सर्टिफिकेट नहीं लिया गया है, उन्हें अनिवार्य रूप में रजिस्ट्रेशन कराना है। 31 जुलाई 2017 इसकी अंतिम तिथि रखी गई थी और इसके बाद पेनल्टी का प्रावधान किया गया था। कई बिल्डर रजिस्ट्रेशन को लेकर सुस्त बने रहे और उन पर पेनल्टी लगाई जाने लगी। कई बिल्डर कुल परियोजना लागत की 10 फीसद पेनल्टी के भी दायरे में आ गए।
रियल एस्टेट सेक्टर में आई मंदी को देखते हुए सरकार ने रजिस्ट्रेशन की अवधि बढ़ाते कहा था कि 28 फरवरी 2018 तक रजिस्ट्रेशन कराने कोई पेनल्टी नहीं लगाई जाएगी। हालांकि तब तक 49 बिल्डर देरी से पंजीकरण पर 2.10 करोड़ रुपये की पेनल्टी जमा भी करा चुके थे। यह राशि सरकार ने बाद भी वापस लौटा दी थी। गंभीर यह कि बिल्डरों की स्थिति को समझते हुए सरकार ने उन्हें राहत दी, जबकि अब निवेशकों को न्याय दिलाने के मामले में सरकार की तरफ से अब तक कोई कदम नहीं उठाए गए हैं। रेरा इस मोर्चे पर अकेला पड़ता दिख रहा है। यही कारण है कि आदेश के बाद भी बिल्डरों का ढर्रा पहले की तरह बरकरार है।
रियल एस्टेट एक्ट के इन प्रावधानों का अनुपालन सुनिश्चित नहीं
- 60 दिन के भीतर शिकायतों पर निपटारा।
- पंजीकरण के दौरा परियोजना को पूरा करने की अवधि के भीतर कब्जा देना।
- समय सीमा के बाद कब्जा देना या निर्माण में हीलाहवाली पर निवेशक को ब्याज समेत उसकी राशि वापस लौटाना।
- रियल एस्टेट रेगुलेटरी अथॉरिटी के आदेश की अवहेलना पर संबंधित बिल्डर के लिए तीन वर्ष की सजा का प्रावधान।
- निवेशकों से ली गई 70 फीसद धनराशि को अलग बैंक खाते में रखना व उसका प्रयोग सिर्फ निर्माण के लिए करना।
- मनमाने तरीके से खरीदारों पर नई-नई शर्तें थोपना।
- स्ट्रक्चर बदलने पर 66 फीसद खरीदारों की अनुमति पर ध्यान नहीं।
खुद भी हांफने लगा रेरा
प्रकरणों की सुनवाई के लिए अध्यक्ष के अलावा तीन सदस्यों की तैनाती के बाद भी अभी 124 केस लंबित चल रहे हैं। रेरा के काम की गति बढ़ाने और आदेशों का अनुपालन कराने को अध्यक्ष विष्णु कुमार सचिव आवास को पत्र भी लिख चुके हैं। इसमें अथॉरिटी की कार्यक्षमता बढ़ाने का हवाला देते हुए 28 अतिरिक्त पदों को स्वीकृत करने की मांग की गई थी। रेरा अध्यक्ष विष्णु कुमार ने बताया कि पूर्व में रेरा सचिवालय के रूप में काम कर रहे उत्तराखंड आवास एवं नगर विकास प्राधिकरण(उडा) ने 50 पदों का प्रस्ताव शासन को भेजा था। तत्कालीन सचिव आवास ने इस पर अपना अनुमोदन भी दिया था। हालांकि 11 मई 2018 को महज 17 पद ही स्वीकृत किए गए। वर्तमान में रेरा में चार प्रमुख अनुभाग हैं और सभी में विभिन्न कार्मिकों की जरूरत है। पत्र में उन्होंने हर अनुभाग की उपयोगिता का उल्लेख करते हुए विभिन्न पदों की मांग भी की है। कार्मिकों की कमी के चलते जो आदेश रेरा की पीठ कर रही हैं, उनका भी ढंग से अपडेट नहीं लिया जा रहा है।
इन अनुभागों में कार्मिकों की जरूरत
- प्रशासनिक अनुभाग, अनुश्रवण एवं मूल्यांकन अनुभाग, वित्त अनुभाग, विधि अनुभाग।
ये काम हो रहे प्रभावित
बिल्डरों/प्रमोटरों के रजिस्ट्रेशन के साथ ही उनके अभिलेखों की जांच, नियमावली के अनुरूप विभिन्न कार्यों में सहयोग, आदेशों का अनुपालन, रजिस्ट्रेशन संबंधी तकनीकी कार्यों में सहयोग, लेखा संबंधी कार्य, लंबित वादों के निस्तारण व सहयोग।
इन पदों पर भर्ती की मांग
आइटी एक्सपर्ट, तकनीकी अधिकारी, कनिष्ठ तकनीकी अधिकारी, मुख्य सहायक, विधि सहायक, वरिष्ठ कार्यालय सहायक, कार्यालय सहायक, लेखाकार, कनिष्ठ लिपिक, डाटा एंट्री आपरेटर, आशुलिपिक, बहुद्देशीय कार्मिक आदि।
मदन कौशिक (आवास एवं शहरी विकास मंत्री) का कहना है कि रेरा का गठन लोगों के लिए बड़ी उम्मीद लेकर आया था। इस उम्मीद को धूमिल नहीं पड़ने दिया जाएगा। देखा जाएगा कि रेरा के आदेश के अनुपालन में किस स्तर पर अनदेखी की जा रही है। आवास सचिव व रेरा अध्यक्ष से बात कर समाधान निकाला जाएगा। निवेशकों के हितों की किसी भी कीमत पर रक्षा की जाएगी। जो बिल्डर लापरवाह बने हैं, उनके खिलाफ सख्त कार्रवाई अमल में लाई जाएगी।
विष्णु कुमार, अध्यक्ष (उत्तराखंड रियल एस्टेट रेगुलेटरी अथॉरिटी) का कहना है कि इस बात को कहने में गुरेज नहीं है कि रेरा जो आदेश जारी कर रहा है, बिल्डर उसके अनुपालन में अपेक्षित दिलचस्पी नहीं दिखा रहे हैं। हालांकि, रेरा अपनी तरफ से पूरे प्रयास कर रहा है। जब तक रेरा को पूरी तरह संसाधन संपन्न नहीं बना दिया जाता, तब तक निगरानी संबंधी कार्य में गति ला पाना संभव नहीं है।
रेरा पैकेज के साथ
जिलावार पंजीकृत परियोजनाएं/बिल्डर
देहरादून---------------119
ऊधमसिंहनगर-------- 43
हरिद्वार---------------25
नैनीताल---------------12
टिहरी------------------- 01
पंजीकरण की प्रक्रियाधीन
देहरादून---------------19
हरिद्वार---------------15
ऊधमसिंहनगर-------- 05
नैनीताल--------------- 04
पौड़ी-------------------- 01
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