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उत्तराखंड में लिंगानुपात की तस्वीर धुंधली, एजेंसियों के सर्वे में अंतर

उत्तराखंड में लिंगानुपात की तस्वीर कुछ धुंधली है। अलग-अलग एजेंसियों के सर्वेक्षण में प्रदेश के लिंगानुपात में अंतर पाया गया है।

By Raksha PanthariEdited By: Published: Sat, 28 Sep 2019 07:02 PM (IST)Updated: Sat, 28 Sep 2019 07:02 PM (IST)
उत्तराखंड में लिंगानुपात की तस्वीर धुंधली, एजेंसियों के सर्वे में अंतर
उत्तराखंड में लिंगानुपात की तस्वीर धुंधली, एजेंसियों के सर्वे में अंतर

देहरादून, जेएनएन। उत्तराखंड में लिंगानुपात की तस्वीर कुछ धुंधली है। अलग-अलग एजेंसियों के सर्वेक्षण में प्रदेश के लिंगानुपात में अंतर पाया गया है। जिस कारण अब आशा कार्यकर्ताओं के माध्यम से घर-घर जाकर वास्तविक जानकारी एकत्रित की जा रही है। इसके अलावा विश्व बैंक सहायतित उत्तराखंड हेल्थ सिस्टम डेवलपमेंट परियोजना के तहत व्यक्तिगत इलेक्ट्रॉनिक हेल्थ प्रोफाइल तैयार किया जा रहा है। जिससे वर्तमान में उपलब्ध लिंगानुपात के आंकड़ों का सत्यापन हो पाएगा। 

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पीसी-पीएनडीटी एक्ट पर सात उत्तर भारतीय राज्यों की क्षेत्रीय कार्यशाला शुक्रवार को संपन्न हो गई। हरिद्वार बाईपास स्थित होटल में आयोजित कार्यशाला में दूसरे दिन दिल्ली, पश्चिम बंगाल एवं उत्तराखंड में एक्ट की प्रगति की समीक्षा की गई। राज्य के नोडल अधिकारी डॉ. डीके चक्रपाणी ने पीसी-पीएनडीटी एक्ट की प्रगति की जानकारी दी। भारत सरकार की एनएचएम निदेशक डॉ. विदुशी चतुर्वेदी ने उत्तराखंड में पीसी-पीएनडीटी एक्ट की प्रगति को संतोषजनक बताया और यह निर्देश दिए कि हरियाणा जैसे राज्य का दृष्टांत लिया जाना चाहिए जहां पर एक्ट का दुरुपयोग करने वाले चिकित्सकों एवं क्लीनिकों के खिलाफ 770 प्राथमिकी दर्ज कराई गई हैं। 

उन्होंने प्रदेश के सभी अस्पतालों में लिंगानुपात की स्थिति को दर्शाने वाले इलेक्ट्रॉनिक डिस्प्ले बोर्ड लगाए जाने की सराहना की और प्रसव उपरांत जन्म लेने वाली  बालिकाओं की संख्या को दर्शाने वाले गुड्डा-गुड्डी बोर्ड को भी एक नई पहल बताया। इस अवसर पर एनएचएम निदेशक डॉ. अंजलि नौटियाल, डॉ. अमित शुक्ल, महिला एवं बाल विकास विभाग और सभी सात राज्यों के अधिकारी उपस्थित रहे। 

बेटी नहीं बचाओगे तो बहू कहां से लाओगे 

कार्यशाला के समापन अवसर पर एनएचएम के मिशन निदेशक युगल किशोर पंत ने कहा कि घटते लिंगानुपात पर नियंत्रण के लिए पीसी-पीएनडीटी एक्ट के बाहर भी एक नई सोच पैदा करने की आवश्यकता है। क्योंकि एक्ट के तहत लिंग चयन करने या कराने वाले व्यक्ति को दंडित तो किया जा सकता है,लेकिन इस प्रवृति को समाप्त करने के लिए हमें समाज में लिंग भेद को समझने की परिस्थितियां उत्पन्न करनी होंगी। उन्होंने कहा कि वह मां-बाप खुशकिस्मत हैं जिनके परिवार में बेटी ने जन्म लिया है, लेकिन जिनके घर में केवल बेटा है उन्हें बेटी के रूप में बहू लाने का अवसर तभी मिलेगा जब समाज घटते लिंगानुपात की विषमताओं को जान पाएगा। 

एमबीबीएस को नहीं अधिकार 

निजी अल्ट्रसाउंड और सोनोग्राफी केंद्र पर तैनात कई चिकित्सक केवल एमबीबीएस डिग्री प्राप्त हैं। जबकि एक्ट के अनुसार यह गलत है। यह तथ्य कार्यशाला में रखा गया। जिस पर केंद्र के अधिकारियों ने निर्देश दिए कि यह जरूर सुनिश्चित किया जाए कि अल्ट्रासाउंड केंद्रों पर तैनात सोनोलॉजिस्ट के पास रेडियोलॉजी में डिग्री या भारत सरकार द्वारा निर्धारित सीबीटी या छह माह का प्रशिक्षण प्रमाण पत्र है या नहीं। 

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उत्तराखंड में एक्ट की स्थिति 

-निजी क्षेत्र में 393 अल्ट्रासाउंड केंद्र। 

-76 केंद्र सरकारी अस्पतालों में काम कर रहे हैं। 

-कुल 731 अल्ट्रासाउंड मशीन संचालित हो रही हैं। 

-गत वर्ष 453 निरीक्षण किए गए हैं। 

-एक्ट का दुरुपयोग करने पर 47 मामलों में अभियोग दर्ज किए गए। 

- चार मामलों में दोषी को दंडित किया जा चुका है। 

-राष्ट्रीय निगरानी समिति की सिफारिश पर एक केंद्र को नोटिस और एक के खिलाफ वाद दायर। 

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