24 घंटे में ही निरस्त कर दिए तैनाती आदेश
राजाजी टाइगर रिजर्व की हरिद्वार रेंज के दूधिया ब्लाक में हुई गुलदार की खाल और बाघ के मांस की बरामदगी का बहुचर्चित प्रकरण एक बार फिर चर्चा में है।
राज्य ब्यूरो, देहरादून
राजाजी टाइगर रिजर्व की हरिद्वार रेंज के दूधिया ब्लाक में हुई गुलदार की खाल और बाघ के मांस की बरामदगी का बहुचर्चित प्रकरण एक बार फिर चर्चा में है। इस मामले में वन विभाग के विभिन्न कार्यालयों में संबद्ध किए गए रेंजर समेत तीन कार्मिकों की तैनाती के आदेश किए गए, लेकिन वन मुख्यालय ने 24 घंटे के भीतर ही अपने इस आदेश को निरस्त भी कर दिया गया। ऐसे में विभाग की कार्यशैली पर भी सवाल उठने लगे हैं।
दूधिया ब्लाक में इस वर्ष 22 मार्च को वन मुख्यालय की टीम ने गुलदार की खाल के साथ ही कुछ मांस बरामद किया था। मांस की भारतीय वन्यजीव संस्थान से कराई गई जांच में इसके बाघ का होने की पुष्टि हुई। इस बीच प्रकरण को लेकर टाइगर रिजर्व प्रशासन और वन मुख्यालय के बीच भृकुटियां तनी रहीं। इस जिद्दोजहद के बीच तीन बार जांच अधिकारी बदले गए। वर्तमान में आइएफएस मनोज चंद्रन मामले की जांच कर रहे हैं।
जांच अधिकारी चंद्रन की ओर से उठाए गए सवालों के बाद इस प्रकरण में हरिद्वार रेंज के तत्कालीन रेंजर अनूप सिंह गुसाई को वन संरक्षक यमुना वृत्त और वन दारोगा अशोक सिंह व वन आरक्षी प्रवेश कुमार को मुख्य वन संरक्षक अनुश्रवण मूल्यांकन एवं आडिट के कार्यालय से संबद्ध कर दिया गया था।
इस बीच 10 दिसंबर को मुख्य वन संरक्षक (प्रशासन) वीके गांगटे ने तीनों कार्मिकों की तैनाती के आदेश निर्गत कर दिए। आदेश में जांच अधिकारी से मिली जानकारी का हवाला देते हुए कहा गया कि प्रकरण की जांच कार्यवाही से संबंधित कार्मिकों के बयान आदि लिए जा चुके हैं। लिहाजा, इनकी तैनाती की जाती है। रेंजर अनूप सिंह गुसाई व वन दरोगा अशोक सिंह को देहरादून वन प्रभाग और वन आरक्षी प्रवेश कुमार को हरिद्वार वन प्रभाग में तैनाती दी गई।
इसके ठीक अगले दिन 11 दिसंबर को मुख्य वन संरक्षक (प्रशासन) ने इन कार्मिकों की तैनाती से संबंधित अपने आदेश को निरस्त कर दिया। उधर, मुख्य वन संरक्षक प्रशासन गांगटे ने इस संबंध में पूछे जाने पर कहा कि रेंजर की तैनाती का अधिकार विभाग प्रमुख को है। विभाग प्रमुख वर्तमान में बाहर हैं। इसे देखते हुए तीनों के तैनाती के आदेश निरस्त किए गए हैं।
वहीं, इस मसले को विभाग की कार्यशैली भी सवालों के घेरे में है। प्रश्न उठ रहा कि जब तैनाती का अधिकार विभाग प्रमुख को है तो उनकी अनुपस्थिति में तैनाती के आदेश क्यों किए गए। ये भी सवाल कि आखिर किसके आदेश पर पहले तैनाती और फिर निरस्तीकरण किया गया। इन सवालों पर विभागीय अधिकारी चुप्पी साधे हुए हैं।