थर्ड एसी में यात्रा नहीं करने पर रेलवे को तीस दिन में देना होगा रिफंड Dehradun News
टिकट कन्फर्म न होने पर थर्ड एसी में यात्रा न करने के मामले में जिला उपभोक्ता फोरम ने तीस दिन के भीतर रिफंड का आदेश दिया है। इसके अलावा मानसिक क्षतिपूर्ति का भी आदेश दिया है।
देहरादून, जेएनएन। टिकट कन्फर्म न होने पर थर्ड एसी में यात्रा न करने के मामले में जिला उपभोक्ता फोरम ने तीस दिन के भीतर रिफंड का आदेश दिया है। इसके अलावा मानसिक क्षतिपूर्ति का भी आदेश दिया है।
दरअसल, डिफेंस कॉलोनी निवासी श्याम कुमार मलेठा ने मुख्य क्षेत्रीय प्रबंधक पूर्वी रेलवे (आइआरसीटीसी)व प्रबंधक उत्तर रेलवे को पक्षकार बना जिला उपभोक्ता फोरम में वाद दायर किया। शिकायतकर्ता के अनुसार उन्होंने देहरादून से इलाहाबाद व मुगलसराय से न्यू जलपाईगुड़ी थर्ड एसी के छह टिकट बुक कराए थे। इसके 4,075 रुपये उन्होंने जमा कराए।
बताया गया कि इनमें से एकमात्र उनके पिता का ही टिकट कन्फर्म हुआ। थर्ड एसी के अलावा उन्होंने नौ स्लीपर भी बुक कराए थे। ऐसे में उनके पिता को छोड़ बाकी सभी ने स्लीपर से सफर किया। उन्होंने थर्ड एसी के रिफंड को आवेदन किया। कई रिमाइंडर के बाद भी उन्हें पैसा नहीं लौटाया गया है।
इसके जवाब में रेलवे ने तर्क दिया कि भारतीय रेल व आइआरसीटीसी दो भिन्न संस्थाएं हैं। आइआरसीटीसी यात्रियों को ऑनलाइन बुकिंग की सुविधा देता है। इसका रेलवे से संबंध नहीं है। न रेलवे से उपभोक्ता ने पत्राचार किया। वहीं, आइआरसीटीसी की तरफ से कहा गया कि टिकट कन्फर्म करने का काम उनका नहीं, बल्कि रेलवे का है। वह केवल टिकट आरक्षण के सेवा प्रदाता हैं और धनराशि वापसी का दायित्व रेलवे का है।
सिस्टम के तहत रिफंड पंजीकृत किया गया और इसे कमर्शियल मैनेजर रिफंड को भेज गया था। फोरम के अध्यक्ष भूपेंद्र सिंह दुग्ताल व सदस्य विमल प्रकाश नैथानी ने इन तर्कों को सुनने के बाद यह माना कि विपक्षीगण देय राशि से बचने के लिए जिम्मेदारी एक दूसरे पर डाल रहे हैं। यह आदेश दिया कि वे उपभोक्ता को 3,475 रुपये के रिफंड के साथ ही 4 हजार रुपये मानसिक क्षतिपूर्ति भी अदा करें। इसके अलावा दो हजार रुपये वाद व्यय के भी उन्हें देने होंगे।
कंपनी को वित्तीय नुकसान की करनी होगी भरपाई
फ्रैन्चाइजी के नाम पर संस्थान को वित्तीय नुकसान देने वाली कंपनी को इसकी भरपाई करनी होगी। जिला उपभोक्ता फोरम ने उसे दो लाख चार हजार रुपये अदा करने का आदेश दिया है। इसके अलावा 25 हजार रुपये मानसिक क्षतिपूर्ति व पांच हजार रुपये वाद व्यय भी कंपनी को देने होंगे।
ग्राम नत्थुवावाला स्थित इंस्टीट्यूट ऑफ इन्फॉरमेशन इन कम्प्यूटर एप्लीकेशन एंड टेक्नोलॉजी (आइआइसीएटी) के प्रॉपराइटर प्रदीप सिंह चौहान ने आइएल एंड एफएस एजुकेशन एंड टेक्नोलॉजी सर्विसेज लिमिटेड को पक्षकार बना उपभोक्ता फोरम में वाद दायर किया।
शिकायकर्ता के अनुसार वह आइआइसीएटी के नाम से संस्थान चलाते हैं। आइएल एंड एफएस एजुकेशन एंड टेक्नोलॉजी सर्विसेज लिमिटेड से उनका अनुबंध हुआ था, जिसकी अवधि तीन साल थी। इस अनुबंध के तहत उनके संस्थान को फ्रैन्चाइजी दी गई थी। जिसमें विभिन्न कोर्स का संचालन, प्रशिक्षण व सर्टिफिकेट उपलब्ध कराना शामिल था।
इसके अलावा सरकारी प्रोजेक्ट दिलाने का भी वायदा उन्हें किया गया था। इसके लिए 54 हजार रुपये फ्रैन्चाइजी फीस जमा कराई गई। फ्रैन्चाइजी देने के साथ ही उनके सामने यह शर्त रखी गई कि उन्हें नया सेंटर खोलना होगा। जिस पर उन्हें एक लाख रुपये का निवेश करना पड़ा और चार हजार रुपये मासिक किराये पर संस्थान के लिए जगह ली।
पर अनुबंध के करीब छह माह बाद उक्त कंपनी ने ट्रेनिंग किट व सर्टिफिकेट उपलब्ध कराने बंद कर दिए। उनसे पूछने पर कहा गया कि उक्त कोर्स के लिए जगह-जगह सेमीनार कराने होंगे, तभी ट्रेनिंग किट व सर्टिफिकेट उपलब्ध कराए जा सकेंगे। विभिन्न स्कूल व कॉलेजों में सेमीनार कराने पर उनके करीब एक लाख रुपये खर्च हुए।
इस वजह से कई बच्चे उनके संस्थान में दाखिले के लिए आए पर ट्रेनिंग किट व सर्टिफिकेट उपलब्ध न होने पर उन्हें प्रवेश नहीं दिया जा सका। बाद में कंपनी ने बताया कि उक्त कोर्स बंद कर दिए गए हैं। इस स्थिति में न केवल उनके संस्थान की साख खराब हुई, बल्कि वित्तीय नुकसान भी हुआ। कंपनी ने उन्हें धोखे में रखकर फ्रैन्चाइजी के नाम पर उनसे धन हड़पा है।
विपक्षी की तरफ से अनुबंध की शर्तों को आधार बना यह कहा गया कि किसी भी तरह का विवाद उत्पन्न होने पर इसमें आपसी समझौते और उसके बाद आरबीट्रेशन के माध्यम से हल करने का प्रावधान है। उपभोक्ता ने यह तथ्य छिपाया है। उपभोक्ता फोरम ने तमाम तर्क सुनने के बाद यह माना कि विपक्षी जिस प्रकार का व्यवहार उपभोक्ता से साथ कर रहे हैं, वह दूषित व्यापार पद्धति है।
अध्यक्ष भूपेंद्र सिंह दुग्ताल व सदस्य विमल प्रकाश नैथानी ने आदेश दिया कि विपक्षीगण 54 हजार रुपये फ्रैन्चाइजी फीस, 50 हजार रुपये प्रचार-प्रसार के मद में और आर्थिक नुकसान की एवज में एक लाख रुपये उपभोक्ता को अदा करे।
बीमा कंपनी को देनी होगी क्लेम की रकम
बीमा कंपनी को क्लेम की रकम उपभोक्ता को अदा करनी होगी। जिला उपभोक्ता फोरम ने 30 दिन के भीतर रकम अदायगी के आदेश दिए हैं।
ग्राम सुखोली निवासी कल्याण सिंह ने एसबीआइ जनरल इंश्योरेंस कंपनी, नई दिल्ली व देहरादून ब्रांच को पक्षकार बनाते हुए उपभोक्ता फोरम में वाद दायर किया। शिकायतकर्ता के अनुसार उन्होंने अपने वाहन का बीमा विपक्षी कंपनी से करवाया था।
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वाहन दुर्घटनाग्रस्त हो गया और कंपनी ने बिना किसी वैध कारण के क्लेम निरस्त कर दिया। इस मामले में फोरम ने आदेश दिया कि बीमा कंपनी क्लेम के रूप में 2,11,756 रुपये उपभोक्ता को अदा करे। इसके अलावा मानसिक क्षतिपूर्ति के रूप में 15 हजार रुपये और वाद व्यय के रूप में 3 हजार रुपये भी उसे देने होंगे। यह रकम उसे 30 दिन के भीतर अदा करनी होगी। अन्यथा परिवाद प्रस्तुत करने की तिथि से भुगतान की तिथि तक 9 प्रतिशत सालाना ब्याज भी देना होगा।
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