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Railway Encroachment: एक साल से ट्रैक किनारे बन रही झुग्गियां, नोटिस भेजकर भूल गए रेलवे के अधिकारी

दून की मद्रासी कॉलोनी में पिछले एक साल से रेल ट्रैक के किनारे रेलवे की जमीन पर झुग्गियों के रूप में अतिक्रमण किया जा रहा है।

By Raksha PanthariEdited By: Published: Sun, 13 Sep 2020 08:47 AM (IST)Updated: Sun, 13 Sep 2020 08:47 AM (IST)
Railway Encroachment: एक साल से ट्रैक किनारे बन रही झुग्गियां, नोटिस भेजकर भूल गए रेलवे के अधिकारी
Railway Encroachment: एक साल से ट्रैक किनारे बन रही झुग्गियां, नोटिस भेजकर भूल गए रेलवे के अधिकारी

देहरादून, जेएनएन। Railway Encroachment राजधानी दून की मद्रासी कॉलोनी में पिछले एक साल से रेल ट्रैक के किनारे रेलवे की जमीन पर झुग्गियों के रूप में अतिक्रमण किया जा रहा है। इससे भी गंभीर बात यह है कि दून के रेल अधिकारी इससे भली-भांति परिचित हैं। इसकी वह स्वीकारोक्ति भी करते हैं। लेकिन, हैरत देखिये कार्रवाई के नाम पर अभी सिर्फ नोटिस-नोटिस खेला जा रहा है।

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इन अतिक्रमणकारियों को रेलवे प्रशासन की ओर से इसी वर्ष फरवरी में नोटिस भेजा गया था। इसके बाद अधिकारी खामोशी की चादर ओढ़कर सो गए। अतिक्रमण हटाना तो दूर यह भी पता करने की कोशिश नहीं की गई कि धरातल पर स्थितियों में कितना बदलाव आया है। इस खामोशी को अतिक्रमणकारियों ने मूक सहमति मान लिया और धीरे-धीरे यहां झुग्गियों की संख्या बढ़ने लगी। नतीजा यह कि आज यहां रेलवे ट्रैक के किनारे 50 मीटर से ज्यादा दायरे में झुग्गियां बनाई जा चुकी हैं। 

अब भी रेल अफसर तत्काल चेत जाएं तो इस अवैध बसावत पर आसानी से अंकुश लगाया जा सकता है। अगर ऐसा नहीं किया गया तो यह अतिक्रमण आगे चलकर काफी घातक साबित हो सकता है। ठीक रिस्पना और बिंदाल के किनारे बसी अवैध बस्तियों की तरह। हालांकि, इन बस्तियों को बसाने का श्रेय नेताजी को भी जाता है। जिन्होंने अपना वोट बैंक बनाने के लिए दून में अवैध बस्तियों की यह फसल उगाई।

दून में नियमों का बन रहा मजाक

इंडियन रेलवे वर्क्‍स मैनुअल के तहत रेलवे की जमीन का हर तीन माह में सत्यापन होना चाहिए। वर्ष में कम से कम एक बार इसकी रिपोर्ट रेलवे के जोनल हेडक्वार्टर को भेजने का भी प्रविधान है। लेकिन, दून में इन नियमों का पालन नहीं किया जा रहा।

रेलवे के सहायक अभियंता गणेश चंद ठाकुर का कहना है कि देहरादून रेल सेक्शन में मद्रासी कॉलोनी के पास कुछ झुग्गियां हैं। जनवरी में रेलवे को इसकी जानकारी मिली तो जमीन खाली करने के लिए नोटिस भेजा गया। मगर, इसके बाद कोरोना महामारी फैल गई। इस कारण अतिक्रमण नहीं हट सका। हालात सामान्य होने पर इसे हटाया जाएगा।

नोटिस की कार्रवाई तक सीमित रेलवे प्रशासन 

रेलवे की करोड़ों रुपये की जमीन पर अवैध कब्जा होता रहा। वहीं रेलवे प्रशासन केवल नोटिस कार्रवाई तक ही सीमित रहा, जिससे आज यह बस्ती रेलवे के लिए नासूर बन गई है। दरअसल, जब भी अतिक्रमण हटाने के लिए रेल प्रशासन सक्रिय हुआ तो इसे लेकर राजनीति शुरू हो जाती है। कई सफेदपोश और कथित सामाजिक संगठन अवैध बस्ती के समर्थन में आकर रेलवे की कार्रवाई का विरोध करने लगते हैं। गरीब और बेसहारा लोगों का हवाला देकर अवैध अतिक्रमण को शह दी जाती है।

वहीं, बस्ती में अधिकांश मतदाता भी हैं। वोट के लालच में राजनैतिक दल इनको संरक्षण देते हैं। यही वजह है कि रेलवे इन पर कार्रवाई से हिचकिचता रहा है। रायवाला में बसी अवैध बस्ती कई वर्ष पुरानी है। बस्ती में 100 के लगभग परिवार हैं। रेलवे अधिकारियों का कहना है कि सुरक्षित रेल परिचालन के लिहाज से पटरियों के किनारे से अतिक्रमण हटाना जरूरी है।

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रेलवे के लिए नासूर बनीं बस्तियां

रेल पटरियों के दोनों ओर 15 मीटर का क्षेत्र सेफ्टी जोन कहलाता है। रेल के सुरक्षित परिचालन के लिए इस दायरे में कोई भी निर्माण कार्य नहीं होना चाहिए। दून में इस नियम का उल्लंघन करते हुए झुग्गियां बन गईं और रेलवे प्रशासन देखता रहा। झोपड़ियों से निकलने वाली गंदगी से रेल कर्मचारियों को पटरियों की मरम्मत करने में भी परेशानी होती है।

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