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'रैबार' के अमृत को आत्मसात करने की चुनौती

उत्तराखंड मूल के दिग्गजों को एक मंच पर लाकर सरकार प्रदेश के विकास के रोडमैप को साझा करने के प्रयास में कामयाब साबित हुई।

By Sunil NegiEdited By: Published: Mon, 06 Nov 2017 10:58 AM (IST)Updated: Mon, 06 Nov 2017 08:56 PM (IST)
'रैबार' के अमृत को आत्मसात करने की चुनौती
'रैबार' के अमृत को आत्मसात करने की चुनौती

देहरादून, [विकास धूलिया]: राज्य स्थापना दिवस समारोह के आगाज के मौके पर सूबे की राजधानी देहरादून में उत्तराखंड मूल के दिग्गजों को एक मंच पर लाकर सरकार प्रदेश के विकास के रोडमैप को साझा करने के प्रयास में कामयाब साबित हुई। पलायन पर अंकुश लगाकर पर्यावरण को संरक्षित रखते हुए किस तरह पर्यटन और कौशल विकास के जरिये उत्तराखंड देश के मानचित्र पर अपनी अहम उपस्थिति दर्ज करा सकता है, काफी कुछ 'रैबार' के मैराथन मंथन में निकल कर सामने आया। अब यह सरकार और उसके तंत्र पर निर्भर है कि वे मंथन के बाद निकले अमृत को कितना आत्मसात कर पाते हैं।

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त्रिवेंद्र सरकार ने अपनी इस पहल 'रैबार' (17 इयर्स: उत्तराखंड कॉलिंग) के जरिये प्रवासियों को उत्तराखंड को संवारने में  अपनी भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए आमंत्रित करने की दिशा में कदम बढ़ाया है। यही नहीं, देश में राष्ट्रीय स्तर पर प्रतिष्ठित पदों पर आसीन उत्तराखंड मूल की हस्तियों ने भी इसमें रुचि दिखाई। आर्मी चीफ जनरल बिपिन रावत, प्रधानमंत्री के सचिव भाष्कर खुल्बे, रेलवे बोर्ड के चेयरमैन अश्विनी लोहानी, डीजी कोस्टगार्ड राजेंद्र सिंह, इंडिया फाउंडेशन के शौर्य डोभाल, हंस फाउंडेशन के सह संस्थापक मनोज भार्गव समेत अन्य शख्सियतों की भागीदारी इसकी तस्दीक करती है।

इन शख्सियतों ने न सिर्फ उत्तराखंड के विकास के लिए तमाम सुझाव देते हुए राज्य के विकास के प्रति अपनी प्रतिबद्धता दिखाई, बल्कि इसमें भागीदारी तक की बात कही। रैबार कार्यक्रम के दौरान एक वक्ता ने यहां तक कहा कि राज्य के विकास की गाड़ी को आगे बढ़ाने के लिए दो पहिये सरकार चलाए और दो पहियों पर वे खुद चलने को तैयार हैं। साफ है कि सभी को अपने राज्य, गांव व घर की चिंता साल रही है, जो उनके जड़ों से जुड़ाव को जाहिर करती है।

यही नहीं, यह प्रवासियों के लिए भी संदेश है कि वे जड़ों से जुड़कर राज्य के विकास में अपनी भागीदारी सुनिश्चित करें। सूरतेहाल, राज्य से जुड़ी प्रमुख हस्तियों ने अपनी प्रतिबद्धता जाहिर कर दी है। अब यह सरकार पर निर्भर है कि वह नीति में उनके सुझावों को कैसे शामिल कर धरातल पर उतारती है। हालांकि, मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत गदगद भाव से कहते हैं कि रैबार के मंथन में सामने आई बातों पर सरकार पूरी गंभीरता से विचार कर निर्णय लेगी।

फिर मिला पीठ थपथपाने का मौका

पिछले सात महीनों के दौरान यह दूसरा मौका है, जब उत्तराखंड की भाजपा सरकार खुद की पीठ थपथपाने के साथ ही देशभर का ध्यान आकृष्ट करने में भी सफल रही है। उत्तराखंड में भाजपा को सत्ता में आए साढ़े सात महीने का समय हुआ है। इस छोटे से वक्फे में ही दो राष्ट्रपति और तीन बार प्रधानमंत्री उत्तराखंड आ चुके हैं। कार्यकाल पूर्ण होने से ठीक पहले गत जुलाई में तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी देहरादून दौरे पर आए। 

फिर निर्वाचित होने के बाद राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने हरिद्वार, देहरादून के भ्रमण के अलावा बदरी व केदार धाम के दर्शन किए। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी केदारनाथ के कपाट खुलने के मौके पर गत तीन मई और फिर दीपावली के अगले दिन 20 अक्टूबर को केदारनाथ धाम पहुंचे। 26 अक्टूबर को प्रधानमंत्री मसूरी आए। 

उत्तराखंड को इस तरह तवज्जो मिलने से प्रदेश सरकार का गदगद होना लाजिमी ही है। अब उत्तराखंड के 18 वें स्थापना दिवस समारोह के मौके पर प्रदेश सरकार उत्तराखंड मूल की नामचीन शख्सियतों को एक मंच पर लाने में सफल रही। इसने प्रदेश के साथ ही देशभर का ध्यान खींचा। इस लिहाज से देखा जाए तो उत्तराखंड के लिए 'रैबार' किसी उपलब्धि से कम नहीं रहा।

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