सियासी दंगल को नए रणक्षेत्र की तलाश
उत्तराखंड के सियासी गलियारों में चर्चा इस बात को लेकर भी होने लगी है कि दोनों पार्टियों के दिग्गज क्या उसी सीट से ताल ठोकेंगे जिस पर पिछली बार उतरे थे या फिर नई सीट की ओर रुख करेंगे।
राज्य ब्यूरो, देहरादून। उत्तराखंड में व्यापक जनाधार रखने वाली दो राष्ट्रीय पार्टियां, भाजपा और कांग्रेस अब पूरी तरह सवा साल बाद होने वाले विधानसभा चुनाव की तैयारी में सब कुछ झोंकने को तैयार दिख रही हैं। अब 2022 के दंगल में कौन, किस पर भारी पड़ेगा, यह अलग बात है, लेकिन अब सियासी गलियारों में चर्चा इस बात को लेकर भी होने लगी है कि दोनों पार्टियों के दिग्गज क्या उसी सीट से ताल ठोकेंगे, जिस पर पिछली बार उतरे थे या फिर नई सीट की ओर रुख करेंगे। खासकर मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत और पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत को लेकर सबसे ज्यादा उत्सुकता नजर आ रही है।
दिग्गजों के लिए तलाशी जाती है सुरक्षित सीट
विधानसभा चुनाव में दिग्गजों का सीटों की अदली-बदली करना कोई नई बात नहीं है। सियासी पार्टियों के वरिष्ठ नेता काफी सोच विचार कर अपनी सीट चुनते हैं। अकसर सीट को लेकर तमाम पैमानों के लिहाज से सुरक्षित आंक कर ही कदम उठाया जाता है। मसलन, जातीय गणित या क्षेत्रीय संतुलन के लिहाज से मन मफिक विधानसभा सीट का चयन किया जाता है। ज्यादातर मौकों पर इस तरह सीट का चयनसही ही साबित होता है, लेकिन कुछ अपवाद उत्तराखंड में ऐसे भी रहे हैं, जब दिग्गजों का यह दांव अप्रत्याशित रूप से उल्टा पड़ गया और झेलनी पड़ी करारी शिकस्त।
क्या पहाड़ का रुख कर सकते हैं मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र
शुरुआत करते हैं मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत से। त्रिवेंद्र वर्तमान में देहरादून जिले की डोईवाला विधानसभा सीट के नुमाइंदे हैं। पिछले पौने चार साल में लाजिमी तौर पर सीएम सीट होने के नाते डोईवाला विधानसभा क्षेत्र में विकास कार्यों ने रिकार्ड बनाए हैं। इस सबके बावजूद सियासी गलियारों में यह भी चर्चा है कि त्रिवेंद्र किसी पर्वतीय जिले की सीट से अगला चुनाव लड़ सकते हैं। खासकर, गैरसैंण को ग्रीष्मकालीन राजधानी बनाने के उनके फैसले के बाद इस तरह की चर्चाओं को बल मिला है। कहा जा रहा है कि वह चमोली जिले की किसी सीट से मैदान में उतर सकते हैं। हालांकि स्वयं त्रिवेंद्र का इस संबंध में कहना है कि जो भी पार्टी नेतृत्व का आदेश होगा, उसका पालन किया जाएगा।
पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत को लेकर खासी उत्सुकता
हरीश रावत, पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव। हालांकि इन दिनों ये चर्चा बटोर रहे हैं अगले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के संभावित चुनावी चेहरे के रूप में। देखा जाए तो हरीश रावत गढ़वाल और कुमाऊं, दोनों मंडलों में अपनी सियासी चतुराई का लोहा मनवा चुके हैं। साल 2014 में अपने करीबी हरीश धामी की सीट खाली कराकर मुख्यमंत्री बनने के बाद विधायक बने। यह बात दीगर है कि वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव में हरिद्वार जिले की लालढांग और ऊधमसिंह नगर जिले की किच्छा सीट पर ताल ठोकने के बाद दोनों जगह चारों खाने चित हो गए। सुना है वह अब फिर पहाड़ का रुख कर सकते हैं। वैसे, हरीश रावत ने भी इस मामले में आलाकमान पर ही फैसला छोड़ा है।
हरक सिंह रावत सौंप सकते हैं सियासी विरासत
त्रिवेंद्र सरकार में कैबिनेट मंत्री हरक सिंह रावत अपनी सीट बदलने के लिए चर्चा में रहते आए हैं। वह लैंसडौन, रुद्रप्रयाग के बाद 2017 के विधानसभा चुनाव में पौड़ी गढ़वाल जिले की कोटद्वार सीट से मैदान में उतरे और जीत दर्ज की। पिछले दिनों अगला विधानसभा चुनाव न लड़ने के एलान कर उन्होंने सबको चौंका दिया था। माना जा रहा है कि वह अपनी पुत्रवधू को अपनी सियासी विरासत सौंप सकते हैं। इसके अलावा राज्य मंत्री धनसिंह रावत के भी सीट बदलने की चर्चा रही है, लेकिन फिलहाल इस बारे में स्थिति साफ नहीं है। रावत अभी श्रीनगर सीट से विधायक हैं।
सुरक्षित सीट का आकलन कभी-कभी साबित होता है गलत
सुरक्षित सीट का लेकर कभी कभी तमाम पूर्वानुमान गलत भी साबित हो जाते हैं। उत्तराखंड के दो मुख्यमंत्रियों पर तो यह बात बिल्कुल सटीक बैठती है। वर्ष 2012 के विधानसभा चुनाव में तत्कालीन मुख्यमंत्री भुवन चंद्र खंडूड़ी नेकोटद्वार सीट से मैदान में उतरने का फैसला किया। खंडूड़ी के ही चेहरे पर तबभाजपा चुनाव लड़ रही थी, मगर विधानसभा क्षेत्र बदलने के बावजूद खंडूड़ी चुनाव हार गए। ऐसा ही कुछ पिछले विधानसभा चुनाव में तत्कालीन मुख्यमंत्री हरीश रावत के साथ भी हुआ। पिथौरागढ़ की धारचूला सीट की बजाए रावत हरिद्वार व ऊधमसिंह नगर जैसे मैदानी जिलों की दो सीटों से चुनाव लड़े, लेकिन पराजित हो गए।
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