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उड़ीसा की तर्ज पर हो उत्तराखंड में हाथियों का संरक्षण

वन महानिदेशक सिद्धांत दास ने कहा कि उत्तराखंड में हाथियों की सुरक्षा एवं संरक्षण उड़ीसा की तर्ज पर करने की जरूरत है। ऐसे में रेल हादसों से हाथियों को बचाया जा सकता है।

By Sunil NegiEdited By: Published: Tue, 13 Mar 2018 11:14 AM (IST)Updated: Thu, 15 Mar 2018 11:13 AM (IST)
उड़ीसा की तर्ज पर हो उत्तराखंड में हाथियों का संरक्षण
उड़ीसा की तर्ज पर हो उत्तराखंड में हाथियों का संरक्षण

देहरादून, [जेएनएन]: वन महानिदेशक सिद्धांत दास ने कहा कि उत्तराखंड में हाथियों की सुरक्षा एवं संरक्षण उड़ीसा की तर्ज पर करने की जरूरत है। ऐसे में रेल हादसों से हाथियों को बचाया जा सकता है।

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सोमवार को वन अनुसंधान संस्थान के दीक्षांत समारोह में बतौर मुख्य अतिथि सिद्धांत दास ने कहा कि उड़ीसा में हाथियों की सुरक्षा के लिए वन ट्रैकर्स की नियुक्ति की गई है, जो हाथियों की हर गतिविधि पर नजर रखते हैं। ट्रैकर्स के पास समीप के रेलवे स्टेशन मास्टर का मोबाइल नंबर होता है। जैसे ही कोई हाथी अकेला या झुंड में रेल ट्रैक पार करता है, वैसे ही ट्रैकर्स इसकी सूचना स्टेशन अधिकारी को दे देता है, ताकि आने-जाने वाली रेल धीमी गति से चले या फिर हाथियों के झुंड को पहले गुजरने दे। यदि योजना का प्रयोग उत्तराखंड में भी होता है तो हाथियों को हादसों से काफी हद तक बचाया जा सकता है। हाथी बाहुल्य क्षेत्रों में रेल एवं नेशनल हाईवे के लिए अंडरपास एवं ओवरहेड ब्रिज जैसी योजनाएं भी कारगर साबित हो रही हैं। कहा कि देश में बाघों के संरक्षण के चलते आज देश में उनकी संख्या 2220 तक पहुंच गई है। इस मौके पर डॉ. शशि कुमार निदेशक इंदिरा गांधी राष्ट्रीय वन अकादमी, डॉ. वीबी माथुर निदेशक भारतीय वन्यजीव संस्थान, डॉ. सविता निदेशक वन अनुसंधान संस्थान, मीरा अय्यर प्रधानाचार्य केंद्रीय अकादमी राज्य वन सेवा सहित कई गणमान्य लोग मौजूद रहे।

ग्लोबल वार्मिंग दुनिया में बड़ा खतरा

सिद्धांत दास ने कहा कि आज विश्व में सबसे बड़ा खतरा ग्लोबल वार्मिंग का है। वर्ष 2030 तक दुनिया में कार्बन उत्सर्जन 2.5 बिलियन टन तक पहुंच जाएगा, जो चिंता का विषय है। ग्लोबल वार्मिंग के प्रभाव को यदि कम करना है तो इसका एकमात्र समाधान पेड़-पौधे लगाना ही है। 

वन देश की सबसे बड़ी धरोहर

सिद्धांत दास ने कहा कि वन देश की सबसे बड़ी धरोहर है। लेकिन, इसकी सुरक्षा एवं संरक्षण का जिम्मा राज्य सरकारों के पास होता है। इसलिए एफआरआइ से पासआउट हुए प्रशिक्षणार्थी अधिकारियों की जिम्मेदारी बढ़ गई है कि वे अपने-अपने राज्यों में न केवल वनों की सुरक्षा, बल्कि वनों के संरक्षण के लिए भी काम करें।

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