पड़ने लगी बाजार से बिजली खरीद की जरूरत
जागरण संवाददाता, देहरादून: जल विद्युत परियोजनाओं से उत्पादन घटने और केंद्रीय पूल से मिलने वाल
जागरण संवाददाता, देहरादून: जल विद्युत परियोजनाओं से उत्पादन घटने और केंद्रीय पूल से मिलने वाली बिजली में उतार-चढ़ाव आने से बाजार पर निर्भर होना पड़ रहा है। पिछले एक महीने से नदियों में जलप्रवाह करीब-करीब एक समान बना है, लेकिन जिस तरह पहाड़ों पर बर्फबारी का क्रम जारी है, उससे अगले दिनों में जलप्रवाह का स्तर निश्चित रूप से कम होगा। इससे बिजली संकट गहरा सकता है। क्योंकि, वर्तमान के सापेक्ष ठंड बढ़ने के साथ ही बिजली की खपत बढ़ेगी। हालांकि, ऊर्जा निगम की मानें तो कोई संकट नहीं होगा।
12 दिसंबर की बात करें तो किन्हीं कारणों से केंद्रीय पूल से सिर्फ साढ़े सात मिलियन यूनिट (एमयू) बिजली मिली। जबकि, औसतन 12 से 13 एमयू मिलती रहती है। इस स्थिति में सूबे की मांग पूरी करने के लिए करीब तीन एमयू बिजली बाजार से खरीदनी पड़ी। इससे अगले दिन भी केंद्रीय पूल से दस एमयू बिजली ही मिली तो बाजार से डेढ़ एमयू बिजली का इंतजाम करना पड़ा। उत्तराखंड पावर कार्पोरेशन लिमिटेड (यूपीसीएल) के मुख्य अभियंता एवं प्रवक्ता एके सिंह ने बताया कि केंद्रीय पूल से मिलने वाली बिजली कमी ग्रिड पर लोड बढ़ने के कारण हो जाती है। इस बिजली में कटौती नार्दन रीजन लोड डिस्पैच सेंटर के स्तर से होती है। हालांकि, बिजली की एक दिन भी कमी नहीं हुई और न होनी दी जाएगी। तीन गैस आधारित परियोजनाओं से लंबी अवधि का करार किया गया था, उनसे प्रतिदिन करीब छह से सात एमयू बिजली मिल रही है।
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बैंकिंग से मिल रही राहत
गर्मियों में सभी स्रोतों से मिलने वाली बिजली से सरप्लस स्थिति थी। उत्तराखंड विद्युत नियामक आयोग (यूईआइसी) के निर्देश पर पंजाब को एडवांस बैंकिंग के तहत बिजली दी गई। इससे अब उत्तराखंड को 11 फीसद अधिक बिजली मिल रही है। यूपीसीएल ने 731 एमयू बिजली दी और वापस कुल 802 एमयू बिजली मिलेगी। वर्तमान में प्रतिदिन चार से पांच एमयू बिजली मिल रही है।
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नौ एमयू मिल रही बिजली
उत्तराखंड जलविद्युत निगम लिमिटेड (यूजेवीएनएल) की राज्य में 1284.85 मेगावाट क्षमता की कुल 13 परियोजनाएं हैं। इनसे वर्तमान में करीब दस एमयू बिजली उत्पादन हो रहा है। हिमाचल का हिस्सा काटकर उत्तराखंड को करीब नौ एमयू बिजली मिलती है।