गरीबी, बेबसी और सामाजिक हालात अब भी बच्चों और स्कूलों के बीच बड़ी बाधा
गरीबी बेबसी और सामाजिक हालात अब भी बच्चों और स्कूलों के बीच बड़ी बाधा हैं। साक्षरता के लिहाज से अग्रणी राज्यों में शामिल उत्तराखंड में शिक्षा संबंधी इस आंकड़े ने सरकार को सोचने पर मजबूर कर दिया है।
देहरादून, रविंद्र बड़थ्वाल। गरीबी, बेबसी और सामाजिक हालात अब भी बच्चों और स्कूलों के बीच बड़ी बाधा हैं। साक्षरता के लिहाज से अग्रणी राज्यों में शामिल उत्तराखंड में शिक्षा संबंधी इस आंकड़े ने सरकार को सोचने पर मजबूर कर दिया है। अच्छी साक्षरता दर यह तो बता रही है कि राज्य में आम आदमी के भीतर पढ़ने-लिखने की चाह है। प्राथमिक स्कूलों में नामांकन की दर भी यही बयां कर रही है। राज्य में प्राथमिक शिक्षा की पहुंच 97 फीसद से ज्यादा है। उच्च प्राथमिक शिक्षा यानी पांचवीं से आठवीं तक शिक्षा की पहुंच उससे कहीं अधिक है। यह 98 फीसद से भी ज्यादा है। इसके बाद हालात तेजी से बदल रहे हैं। सरकारी स्कूलों में ड्रॉप आउट तेजी से बढ़ रहा है। आठवीं तक जहां प्रति लाख में 3640 बच्चे पढ़ाई बीच में ही छोड़ देते हैं, नवीं कक्षा से आगे ड्रॉप आउट का आंकड़ा बढ़कर 11 हजार छात्र तक पहुंचता है।
लटका फीस निर्धारण
सरकार पलकें बिछाए इंतजार कर रही है कि हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस कब उसकी गुहार सुनें। ये गुहार सुनी जाएगी तो ही प्रदेश में करीब 200 निजी उच्च एवं व्यावसायिक शिक्षण संस्थाओं में विभिन्न पाठ्यक्रमों की फीस तय होने का रास्ता साफ होगा। अभी प्रदेश की दो अहम संस्थाएं प्रवेश एवं शुल्क नियामक समिति और अपीलीय प्राधिकरण मुखिया विहीन हैं। इन दोनों ही संस्थाओं में अध्यक्ष के रूप में हाईकोर्ट के सेवानिवृत्त जज की नियुक्ति की जानी है। नियुक्ति का जिम्मा चीफ जस्टिस के पास है। पिछले कई महीनों से दोनों संस्थाओं में अध्यक्ष की नियुक्ति नहीं हो पाई। चीफ जस्टिस को कई दफा पत्र भेजकर अनुरोध किया जा चुका है। पिछली सरकार ने नियामक समिति से संबंधित एक्ट में संशोधन कर उक्त नियुक्तियों का अधिकार अपने हाथ में लिया था। बाद में हाईकोर्ट ने एक्ट में हुए इस संशोधन को ही खारिज कर दिया। अब सिर्फ इंतजार शेष है।
शर्मसार शिक्षा जगत
गुरु का दर्जा ईश्वर से ऊपर माना गया है। अपने पाल्यों के मामले में भी अभिभावक अपने से ज्यादा भरोसा गुरुजनों पर करते हैं। ऐसी संस्कृति को कुछ व्यक्तियों की हरकत करारी चोट पहुंचा देती है। नैनीताल जिले के राजकीय महाविद्यालय कोटाबाग में प्राचार्य ने अपनी हरकतों से शिक्षा जगत को शर्मसार कर दिया। ऑनलाइन पढ़ाई के बहाने उन्होंने छात्राओं का ग्रुप बनाया। वहां से छात्राओं के साथ चैट का सिलसिला शुरू किया। बतियाने में लांघ दी गईं सीमाएं। वाट्सएप पर डीपी में भी चस्पा की गईं अनचाही फोटो। त्रस्त छात्राओं और स्थानीय व्यक्तियों ने शिकायत की। उच्च शिक्षा विभाग की जांच में प्राचार्य पर आरोपों की पुष्टि हुई। गुरु को गुरु घंटाल बनते देख सरकार भी स्तब्ध है। कोरोना संकट काल में पढ़ाई के नाम पर ये हरकत मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत को नागवार गुजरी। विभाग की फाइल पहुंचने पर उन्होंने प्राचार्य को निलंबित करने पर मुहर लगा दी।
एक अच्छा सुझाव
स्कूलों में राष्ट्रीय दिवसों पर अवकाश रहता है। राष्ट्रीय दिवसों पर स्कूलों में सांस्कृतिक कार्यक्रमों, विभिन्न प्रतियोगिताएं आयोजित करने की पुरानी परंपरा है। इस मौके पर स्कूलों में मिलने वाले मिष्ठान्न को लेकर छात्रों में अलग ही चाव देखने को मिलता है। इन दिवसों पर छात्रों को मिड डे मील का लाभ देने के बारे में केंद्र और राज्य की सरकारों के स्पष्ट निर्देश नहीं हैं। हालांकि स्कूलों में छात्रों की ज्यादा उपस्थिति पर जोर दिया जाता है। इसके पीछे मंशा राष्ट्रीय दिवसों के बहाने देश व प्रदेश के महापुरुषों के योगदान से छात्रों को परिचित कराना है। सार्वजनिक अवकाश की वजह से ज्यादातर छात्र स्कूल आने से कन्नी न काटें, इसके लिए प्राथमिक शिक्षक संगठन ने विभाग को बढिय़ा सुझाव दिया है। मिड डे मील के तहत हफ्ते में एक बार दिया जाने वाला गुड़ पापड़ी, चौलाई के लड्डू, अंडा और फल को राष्ट्रीय दिवसों पर वितरित किया जाए।