गर्मी के साथ बढ़ गया मिट्टी के बर्तनों का व्यापार, कुम्हारों के चेहरे खिले
कारोबार खत्म होने की चिंता में डूबे कुम्हारों के चेहरे एकबार फिर खिल उठे। अब मिट्टी के बर्तनों का व्यापार पटरी में आ गया। एक हफ्ते में दून के कुम्हारों ने दो लाख के बर्तन बेच दिए।
देहरादून, जेएनएन। कारोबार खत्म होने की चिंता में डूबे कुम्हारों के चेहरे एकबार फिर खिल उठे हैं। इसकी वजह मिट्टी के बर्तनों का व्यापार पटरी में आना है। पिछले एक हफ्ते में दून के कुम्हारों ने तकरीबन दो लाख रुपये के बर्तनों की बिक्री की है। अब उन्हें जून में भी अच्छे कारोबार की उम्मीद है।
देहरादून के चकराता रोड पर कुम्हार मंडी में कुम्हारों के 12 परिवार रहते हैं। कुम्हारों की आस दिवाली, एकादशी, बूढ़ी दिवाली, करवाचौथ आदि पर्वों पर टिकी रहती है। इसके अलावा मार्च से जून तक पड़ने वाली गर्मी में भी मिट्टी के बर्तन बिकने की आस रहती है।
इस बार मार्च में शुरू हुए लॉकडाउन से कुम्हार निराश हो गए थे। पूर्व में 10 परिवारों ने मेहूंवाला से पांच-पांच हजार रुपये देकर 20 पिकअप वाहन से मिट्टी मंगवाई। इससे अप्रैल और मई में उन्होंने घरों पर रहकर मिट्टी के बर्तन बनाए। लॉकडाउन में ढील मिली तो बाजार खुले और कुम्हारों ने भी मिट्टी के बर्तनों की दुकानें सजा दीं।
चकराता रोड पर बिंदाल पुल के पास सड़क किनारे बीते 25 मई से चार से पांच कुम्हारों ने दुकानें सजाई हैं। शुरू के तीन दिन तक तो सिर्फ मटके ही बिके। मगर इसके बाद आए गंगा दशहरा और निर्जला एकादशी पर उन्होंने खूब कमाई की। पिछले एक हफ्ते में इन कुम्हारों ने एक लाख की लागत से बने 90 फीसद बर्तन बेच दिए। सबसे ज्यादा मिट्टी के घड़े, सुराही, कलश, कुल्हड़, दीये, पक्षियों के लिए दाना पानी का पात्र, गुल्लक आदि बिके।
डिजाइन के अनुसार दाम
नई डिजाइन के आठ लीटर वाले कैंपर 150 रुपये से शुरू हैं। सुराही 30 से 80 रुपये, कुल्हड़ 100 रुपये के आठ दर्जन हैं। इसके अलावा रंगीन और आकर्षक डिजाइन वाले मिट्टी के बर्तनों के दाम अलग-अलग हैं।
क्या कहते हैं कुम्हार
कुम्हार रमेश कुमार बताते हैं कि गर्मी शुरू होते ही लोग फ्रिज खरीदते थे। महामारी के चलते लोग फ्रिज का पानी पीने से परहेज कर रहे हैं। इसलिए आम लोगों के अलावा बड़ी-बड़ी कारों से आने वाले लोग भी मटका, सुराही खरीद रहे हैं।
आनंद ने बताया कि वे पिछले 10 सालों से बिंदाल पुल के पास मिट्टी के बर्तन बेच रहे हैं, लेकिन इस बार लोगों ने निर्जला एकादशी पर मटके और सुराही दान कीं। कुम्हार कांता ने बताया कि एक समय था, जब लोग निर्जला एकादशी पर सुराही खरीदते थे। बीच में कुछ सालों तक सुराही काफी कम बिकीं, मगर इस बार काम ठीक चल रहा है।
बोले पंडित
पंडित आदित्य शर्मा, राकेश पांडेय बताते हैं कि गॢमयों में पक्षियों के लिए मिट्टी के पात्र में पानी व खाना रखने से पुण्य मिलता है। इसके अलावा गॢमयों में कोई भी प्यासा न रहे, इसके लिए जगह-जगह मिट्टी घड़े, सुराही में पानी रखा जाता है। इससे सेवा भी हो जाती है और पुण्य भी मिलता है। वहीं मिट्टी के बर्तन बनाने वालों को काम भी मिल जाता है।
यह भी पढ़ें: साइकिल से की दोस्ती तो घूमने लगा सेहत का पहिया, पढ़िए खबर