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पिछले दो साल से दून में उम्मीद हो रही धुआं-धुआं

बिगड़ते पर्यावरण को लेकर समूचा विश्व चिंतित है और ध्वनि, वायु व जल प्रदूषण पर अंकुश लगाने के लिए विभिन्न स्तर पर पहल भी हो रही हैं।

By BhanuEdited By: Published: Sun, 30 Oct 2016 10:24 AM (IST)Updated: Sun, 30 Oct 2016 10:29 AM (IST)
पिछले दो साल से दून में उम्मीद हो रही धुआं-धुआं

देहरादून, [जेएनएन]: बिगड़ते पर्यावरण को लेकर समूचा विश्व चिंतित है और ध्वनि, वायु व जल प्रदूषण पर अंकुश लगाने के लिए विभिन्न स्तर पर पहल भी हो रही हैं। केंद्र से लेकर राज्य सरकारें और विभिन्न संस्थाएं व संगठन प्रदूषण नियंत्रण की कोशिशों में जुटे हैं। दून भी इससे अछूता नहीं है। मौका दीपावली का है तो फिजां में सवाल तैर रहा कि क्या दूनवासी इस उम्मीद पर खरा उतरेंगे। प्रश्न इसलिए भी उठ रहा कि पिछले दो सालों से ये उम्मीदें धुआं-धुआं हो रही हैं।
दीपावली के लिए आतिशबाजी का धुआं दून की फिजां में ऐसा घुला कि इनके आगे मानक फीके पड़ गए। उत्तराखंड पर्यावरण संरक्षण एवं प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (पीसीबी) के आंकड़ों पर गौर करें तो इस दरम्यान वायु प्रदूषण मानक से तीन गुना अधिक तक जा पहुंचा था, जबकि पटाखों के कानफोड़ू शोर ने भी सताए रखा। हालांकि, इस मर्तबा पटाखों का शोर कुछ कम नजर आ रहा, सो उम्मीद भी है कि शायद दीपावली पर यह कम रहे।
बेहतरीन आबोहवा वाले देहरादून में पर्यावरण का सवाल इसलिए भी अहम है, क्योंकि सर्वाधिक साक्षरता दर वाले दून की पहचान जागरूकता के मामले में अव्वल है। लेकिन, दीपावली के मौके पर पिछले दो सालों के प्रदूषण के आंकड़े सोचने पर विवश करते हैं। अंदाजा इसी से लगा सकते हैं कि आरएसपीएम (हवा में धूल के कण) का अधिकतम स्तर 100 माइक्रो ग्राम प्रति घन मीटर होना चाहिए।
मगर, दीपावली पर यह तीन गुना तक पहुंचा है। इसी प्रकार ध्वनि प्रदूषण की बात करें तो औद्योगिक क्षेत्रों को छोड़कर अन्य स्थानों में ध्वनि प्रदूषण का उच्चतम स्तर दिन में 50 से 65 और रात में 40 से 55 डेसीबल के बीच होना चाहिए। पिछली दो दीपावलियों में यह मानक से काफी अधिक रहा है।
पदमश्री डॉ. अनिल प्रकाश जोशी के मुताबिक प्रकाश पर्व का यह मतलब कतई नहीं कि खुशी के मौके पर हम प्रदूषण के संवाहक बनें। पटाखों से परहेज करें और सादगीपूर्ण ढंग से दीपोत्सव मनाते हुए पर्यावरण की रक्षा का संकल्प लें।
उत्तराखंड पर्यावरण संरक्षण एवं प्रदूषण नियत्रण बोर्ड के सदस्य सचिव विनोद सिंघल के मुताबिक आतिशबाजी से वायु और ध्वनि प्रदूषण अधिक बढ़ता है। सभी को चाहिए कि वे दीपोत्सव पर खुशियां बांटें, मगर यह भी ध्यान रखें कि पर्यावरण महफूज रहे।

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