सुर्खियों में सबसे ऊपर रहा पुलिस का नया यातायात प्लान
बीते 10 दिनों से शहर की सुर्खियों में सबसे ऊपर पुलिस का नया यातायात प्लान है। साहब ने मैराथन मंथन के बाद वन-वे सिस्टम का प्लान बनाया था तो ठीक ही होगा।
देहरादून, संतोष तिवारी। बीते 10 दिनों से शहर की सुर्खियों में सबसे ऊपर पुलिस का नया यातायात प्लान है। साहब ने मैराथन मंथन के बाद वन-वे सिस्टम का प्लान बनाया था तो 'ठीक' ही होगा। मगर कुछ बातें अभी तक न तो आम लोग समझ पाए हैं और न ही उनके मातहत। हालात 'रोको मत जाने दो' सरीखा था। जैसे इसके उच्चारण के तरीके से उसका भावार्थ बदल जाता है। ठीक उसी तरह पुलिस कर्मी भी साहब के आदेशों का पालन कर रहे थे। घंटाघर पर ट्रैफिक स्मूथ चलता रहे, इसलिए तहसील चौक पर बेवजह ट्रैफिक का लोड बढ़ा दिया गया। सिर्फ इसलिए कि साहब को दिखा सकें कि उनका बनाया वन-वे प्लान 'ऐतिहासिक' है। लेकिन, पुलिस के प्रयोग की ऐसी विफलता शायद ही कभी दिखी हो। जाहिर है कि प्लान तैयार करने में इससे प्रभावित होने वालों के बारे में एकबारगी भी नहीं सोचा गया। प्लान ऐसे बनाया जैसे भेड़-बकरी हांकना हो।
कब तक होगा प्रयोग
देहरादून को अफसरों ने प्रयोगशाला बना दिया है, खासकर यातायात व्यवस्था के मामले में। अब एक बार फिर शहर में टै्रफिक पर प्रयोगों का सिलसिला चल निकला है। अगस्त में देहरादून की कमान संभालते के तुरंत बाद ही कप्तान साहब ने टै्रैफिक को 'दुरुस्त' करने का प्लान बनाया था, लेकिन वह औंधे मुंह गिरा। उसे वापस लेना पड़ा। अब, वह ठहरे साहब। नाकामी बर्दाश्त कैसे हो। लिहाजा एक बार फिर प्रयोग का खाका खींच दिया और उसे बतौर ट्रायल लागू भी कर दिया। यह अलग बात है कि शुक्रवार से सोमवार तक चले ट्रायल में ऐसी कोई बात निकल कर सामने नहीं आई, जिसे लोगों ने सराहा हो। हां, कुछ लोगों ने इसे जरूर अच्छा बताया, लेकिन ये वो लोग थे जिनका सामना घंटाघर क्षेत्र में लगने वाले जाम से यदा-कदा ही पाला पड़ता है। असल दर्द तो उन्होंने झेला, जिनका इस प्लान की वजह से कारोबार चौपट हो गया।
नागरिक हित सोचना ड्यूटी
पुलिस में इन दिनों सेना जैसा जज्बा दिख रहा है। सेना तो सीमा पर देश की रक्षा करती है। अब देश की रक्षा के कर्तव्य के आगे तो हर बात की अनदेखी जायज हो सकती है। लेकिन, पुलिस तो नागरिकों के हितों को सुरक्षित करने के लिए है। उसका दायित्व है कि सड़क पर लोग सुरक्षित चलें और अपराधी थर-थर कांपे। लेकिन, बीते दिनों किया गया वन-वे ट्रैफिक का ट्रायल यह बताने के लिए काफी है कि पुलिस नागरिक हितों की अनदेखी कर जैसे-तैसे अव्यवहारिक नियमों को भी लागू करने की सोच रखती है। फिर चाहे आम लोगों का 'तेल' ही क्यों न निकल जाए। ट्रायल के दौरान एक ऑटो चालक ने साहब को आईना दिखाने की कोशिश भी की थी, लेकिन पुलिस ने उसकी बात सुनने के बजाय उसे हांक दिया। पुलिस को समझना होगा कि बगैर आम सहमति के लिए कोई भी प्लान सफल नहीं हो सकता है।
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अब क्या प्लान होगा
ट्रायल में नाकामी के बाद भी दून पुलिस को लगता है कि वन-वे ट्रैफिक प्लान ही वह कुंजी है, जिससे शहर की यातायात व्यवस्था दुरुस्त की जा सकती है। सो, इस दिशा में फिर मंथन शुरू कर दिया गया है। अब पुलिस तो पुलिस ठहरी, जो ठान लिया सो ठान लिया। उसे समझाने की हिमाकत करना भी हर किसी के बस की बात तो है नहीं। सो, पुलिस को कौन समझाए कि इस तरह के प्लान चंद दिनों की राहत तो दे सकते हैं, लेकिन दूरगामी नतीजों के लिए इससे आगे बढ़कर सोचना होगा। नजीर बनने के लिए 'प्रयोग' की बजाय साहसिक फैसले लेने होंगे। जिससे सड़क पर चलने वालों से लेकर विक्रम और सिटी बस के चालक और व्यापारियों के हित सुरक्षित रहें। खैर, इस बार तो वन-वे से जैसे-तैसे मुक्ति मिल गई। अब लोग यह सोच-सोचकर परेशान हैं कि पुलिस के नए ट्रैफिक प्लान में कहां-कहां वन-वे होगा।
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