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पुलिस ने न डंडा बजाया और न ही डांट फटकार लगाई, बस हाथ में थमा दिया एक पोस्टर

सरकार ने देश में लॉकडाउन कर दिया है। फिर भी तमाम ऐसे लोग हैं जिनके पैर घरों में नहीं टिकते। पुलिस ने न डंडा बजाया और न ही डांट लगाई। बस एक पोस्टर हाथ मे थमा दिया।

By Sunil NegiEdited By: Published: Thu, 26 Mar 2020 02:17 PM (IST)Updated: Thu, 26 Mar 2020 02:17 PM (IST)
पुलिस ने न डंडा बजाया और न ही डांट फटकार लगाई, बस हाथ में थमा दिया एक पोस्टर
पुलिस ने न डंडा बजाया और न ही डांट फटकार लगाई, बस हाथ में थमा दिया एक पोस्टर

देहरादून, संतोष तिवारी। कुछ लोगों का तो शौक होता है नियम तोड़ना। ऐसे लोगों को न तो अपनी परवाह होती है और न ही परिवार की। ऐसे लोगों से कैसे निपटना है, पुलिस मौका पड़ते ही तरीका ढूंढ लेती है। अब कोरोना का खतरा हर तरफ बढ़ रहा है। सरकार ने देश में लॉकडाउन कर दिया है। फिर भी देहरादून में तमाम ऐसे लोग हैं, जिनके पैर घरों में नहीं टिकते। शेखी बघारने को सड़क पर निकल पड़ते हैं। यह दिखाने की कोशिश करते हैं कि कोरोना उनका कुछ नहीं बिगाड़ पाएगा। लेकिन उनकी इस अज्ञानता को चौराहों पर खड़ी पुलिस ने चंद मिनट में ही दूर कर दिया। न डंडा बजाया और न ही डांट फटकार लगाई। बस एक पोस्टर हाथ मे थमा फोटो खिंचवाया। चेतावनी दी कि दोबारा बाहर दिखे तो पोस्टर उनके मोहल्ले में चिपका देंगे। पोस्टर पर लिखा था मैं समाज का दुश्मन, मुझे बीवी बच्चों से प्यार नहीं।

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जीने के लिए खाना

21 दिन के लॉकडाउन की घोषणा के बाद बाजारों में भीड़ उमड़ पड़ी। झोले भर-भरकर सामान खरीदने की होड़ लग गई, जबकि शासन ने कह रहा है कि किसी तरह से पैनिक की जरूरत नहीं। लेकिन खरीदारों की भीड़ से लग गया कि इसका उनपर कोई असर नही हुआ है। पुलिस भी परेशान हो उठी कि सोशल डिस्टेंस को कैसे फॉलो कराए। हालांकि, पुलिस उन्हें समझाती रही कि बाजार रोज तीन घंटे खुलेंगे। मगर तीन घंटे तक बाजारों में खरीदारी का सिलसिला जारी रहा। ऐसे समय में पुलिस ने सख्त कदम उठाने से परहेज किया, लेकिन यह जरूर कहा कि भाई इन दिनों कोरोना के खतरे के बीच बाहर का सामान जितना कम घर में जाए उतना ही बेहतर है। साथ ही यह भी कहा कि इन दिनों सिर्फ जीने के लिए खाना है, न कि खाने के लिए जीना है। कोरोना से सुरक्षित रहे तो ही सबकुछ बेहतर होगा।

डंडे भी सेनिटाइज

लॉकडाउन का पालन कराने का जिम्मा अब पुलिस पर आ गया है। हो भी क्यों न, प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री की अपील के बाद भी कुछ लोग मखौल जो उड़ाते रहे। लिहाजा पुलिस ने ठान लिया कि कुछ भी हो, अब जो बाहर दिखा उसपर लठ बजाना जरूरी है। लिहाजा पुलिस ने थानों के मालखानो में रखी लाठियों को निकाल कर पहले उनका सेनिटाइजेशन कराया। फिर उन्हें पुलिस कर्मियों को वितरित कर दिया। दरअसल, पुलिस किसी तरह का खतरा मोल नहीं लेना चाहती, वह इसलिए कि उसे अभी कई दिनों तक मोर्चा संभालना है। गश्त के दौरान पता नहीं किसे संक्रमण हो और उससे वायरस पुलिसकर्मी तक पहुंच जाए। इतना ही नहीं ड्यूटी से लौट रहे पुलिस कर्मियों को भी थाने में दाखिल होने से पहले सेनिटाइज किया जा रहा है, पुलिस नहीं चाहती कि समाज में दहशत का माहौल पैदा करने वाला वायरस उनके थाने की चहारदीवारी को लांघ पाए।

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अब पुलिस ही बनी सहारा

पुलिस की आलोचना खूब होती है। पुलिस ने नियम का पालन करने को कहा तो वह हिटलर नजर आती है, लेकिन कोरोना के बढ़ते खतरे ने जो माहौल बनाया है, उसमे अब पुलिस ही सहारा नजर आ रही है, जो मुसीबत का समाधान निकाल सकती है। दो दिन पहले लॉकडाउन हुआ तो नेहरू कालोनी क्षेत्र की एक बुजुर्ग महिला के सामने मुसीबत आन पड़ी। दरअसल वह जिन दवाओं का प्रयोग कर रही थी, वह खत्म हो गईं। दुकानें बंद थीं। जब उन्होंने पड़ोसियों से संपर्क किया वह भी विवश नजर आए। तब बुजुर्ग महिला को लगा कि अब पुलिस ही सहारा है। उन्होंने नेहरू कालोनी थाने फोन घुमाया। थोड़ी ही देर में पुलिस उनके दरवाजे पर थी। पुलिस कर्मी ने न सिर्फ उन्हें दवाएं लाकर दीं, बल्कि आगे भी जरूरत पड़ने पर फोन करने को कहा। जब लोगों को इसका पता चला तो पुलिस के इस कार्य को जमकर सराहा।

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