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गंगा की निर्मलता में जहर घोल रहा है प्लास्टिक, जिम्मेदार नहीं दे रहे ध्‍यान

तीर्थनगरी में धड़ल्ले से प्लास्टिक का इस्तेमाल हो रहा है। मगर, जिम्मेदार नगर निगम व स्थानीय प्रशासन इस ओर कोई ध्यान ही नहीं दे रहा है।

By Sunil NegiEdited By: Published: Fri, 11 Jan 2019 04:48 PM (IST)Updated: Fri, 11 Jan 2019 04:48 PM (IST)
गंगा की निर्मलता में जहर घोल रहा है प्लास्टिक, जिम्मेदार नहीं दे रहे ध्‍यान
गंगा की निर्मलता में जहर घोल रहा है प्लास्टिक, जिम्मेदार नहीं दे रहे ध्‍यान

ऋषिकेश, जेएनएन। प्रदेश में उच्चतम न्यायालय और नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) के सख्त आदेशों के बावजूद भी प्लास्टिक और पॉलीथिन के उपयोग में रोक लगती नजर नहीं आ रही है। तीर्थनगरी में धड़ल्ले से प्लास्टिक का इस्तेमाल हो रहा है। मगर, जिम्मेदार नगर निगम व स्थानीय प्रशासन इस ओर कोई ध्यान ही नहीं दे रहा है। 

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गोमुख से गंगा सागर तक गंगा की अविरल धारा बहती रहे, इसके लिए उच्चतम न्यायालय ने सख्त रुख अख्तियार करते हुए गंगा के आसपास प्लास्टिक व पॉलीथिन के उपयोग पर पूर्ण रूप से पाबंदी लगाई हुई है। बावजूद इसके आज भी गंगा के घाटों पर बड़ी संख्या में प्लास्टिक की बोतलें व पॉलीथिन का इस्तेमाल किया जा रहा है। आलम यह है कि तीर्थनगरी का प्रसिद्ध त्रिवेणी घाट पूरी तरह से प्लास्टिक और पॉलीथिन की गिरफ्त में है। उच्चतम न्यायालय ने उत्तराखंड को पॉलीथिन फ्री बनाने के लिए राज्य में प्लास्टिक व पॉलीथिन उत्पादन इकाइयों को बंद करने के आदेश भी पारित कर रखें है। साथ ही राज्य में कैरी बैग व थर्माकॉल आदि की आमद न हो सके इसके लिए एंट्री प्वाइंट पर चेकिंग करने के निर्देश दिए हैं। मगर तीर्थनगरी में किसी भी तरह के नियमों का पालन होता नहीं दिख रहा है। 

यहां प्लास्टिक और पॉलीथिन का प्रयोग आम बात हो चुकी है। शासन-प्रशासन की ओर से गंगा घाटों पर प्लास्टिक व पॉलीथिन बैन के नोटिस तो लगा दिए गए हैं। लेकिन इनका कोई फायदा होता नहीं दिख रहा है। गंगा की पूजा करने वाले श्रद्धालु ही गंगा में प्लास्टिक व पॉलीथिन डालकर इसे दूषित कर रहे है। यही कारण है कि आज गंगा अपने ही घर में मैली होती जा रही है।

गंगा की स्वच्छता के लिए बने हैं नियम :

एनजीटी की फटकार के बाद राज्य सरकार ने एक अगस्त 2018 से पॉलीथिन के प्रयोग पर सख्ती से प्रतिबंध लगाने का निर्णय लिया था। ताकि प्रदेश को स्वच्छ एवं निर्मल बनाया जा सके। लेकिन यह प्रतिबंध तीर्थनगरी में सिर्फ हवा-हवाई ही साबित हुआ है। सरकार की ओर से पॉलीथिन और प्लास्टिक के प्रयोग करने पर दुकानदारों पर 5000 रुपये, ठेली वालों पर 2000 रुपये व ग्राहकों पर 500 रुपये तक का जुर्माना लगाए जाने की बात भी कही थी। बावजूद इसके यहां खुलेआम शासन के आदेशों की धज्जियां उड़ती दिख रही हैं।

क्या है नुकसान 

पॉलीथिन और प्लास्टिक का बढ़ता हुआ उपयोग न केवल वर्तमान के लिए बल्कि भविष्य के लिए भी खतरनाक होता जा रहा है। इनके उपयोग के चलते नाले, नालियां जाम हो जाते हैं जिससे गंदगी बढ़ती है। गंगा में जाने के बाद यह गंगा के जीवों के लिए भी खतरा पैदा करता है। इनके कारण जमीन की जल सोखने की क्षमता पर असर पड़ता है। साथ ही इससे भूजल स्तर भी गिर रहा है। प्राकृतिक तरीके से नष्ट न होने के कारण यह धरती की खाद बनाने की क्षमता को धीरे-धीरे समाप्त कर रही है।

करोड़ों खर्च फिर भी नहीं मिला परिणाम 

गंगा को निर्मल बनाने के लिए केंद्र सरकार द्वारा अब तक 270 परियोजनाओं में लगभग 20 हजार करोड़ रुपये खर्च किए जा चुके हैं। लेकिन हालात अभी भी वही है, जो परियोजनाओं के पूर्व थी। गंगा प्रेमियों की माने तो सरकार गंगा के नाम पर करोड़ों रुपये खर्च तो कर चुकी है, लेकिन अभी लोग गंगा संरक्षण के प्रति जागरूक नहीं हुए है। यही कारण है कि लोग गंगा पर लगातार कचरा फेंक रहे है।

क्या कहते हैं अधिकारी 

प्रेमलाल (उप जिलाधिकारी व आयुक्त नगर निगम ऋषिकेश) का कहना है कि उच्चतम न्यायालय के आदेशों का सख्ती से पालन किया जा रहा है। समय-समय पर पुलिस-प्रशासन की ओर से पॉलीथिन और प्लास्टिक के विरूद्ध में कार्रवाई भी की जाती है। अगर कोई उच्चतम न्यायालय के आदेशों का उल्लंघन करता हुआ पाया गया तो उसके विरूद्ध सख्त कार्रवाई की जाएगी।

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