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प्रवासियों की जड़ें ढूंढने की योजना, पर समय के साथ इसको बिसरा दिया

पर्यटन विभाग ने प्रवासियों की भारत में उनकी जड़ों को ढूंढने की योजना बनाई। कहा गया कि संबंधित दूतावासों के जरिये इच्छुक लोग अपने पूवर्जों के नाम व गांव आदि की जानकारी यहां भेजेंगे। हरिद्वार बदरीनाथ और केदारनाथ में सैकड़ों वर्षों से बन रही बही में इन्हें तलाशा जाएगा।

By Sunil Singh NegiEdited By: Published: Fri, 25 Dec 2020 03:05 PM (IST)Updated: Fri, 25 Dec 2020 03:05 PM (IST)
प्रवासियों की जड़ें ढूंढने की योजना, पर समय के साथ इसको बिसरा दिया
प्रवासियों की भारत में उनकी जडों को ढूंढने की योजना बनाई गई। यह योजना अभी परवान नहीं चढ़ पाई है।

विकास गुसाईं, देहरादून। पर्यटन विभाग ने प्रवासियों की भारत में उनकी जड़ों को ढूंढने की योजना बनाई। कहा गया कि संबंधित दूतावासों के जरिये इच्छुक लोग अपने पूवर्जों के नाम व गांव आदि की जानकारी यहां भेजेंगे। हरिद्वार, बदरीनाथ और केदारनाथ में सैकड़ों वर्षों से बन रही बही में इन्हें तलाशा जाएगा। इससे प्रवासियों को भारत में उनके मूल निवास स्थान के संबंध में जानकारी मिल सकेगी। इसके पीछे तर्क यह दिया गया कि पुरातन काल से लोग हरिद्वार, बदरीनाथ व केदारनाथ आते रहे हैं। यहां पंडों द्वारा बनाई जाने वाली पोथियों में यात्रियों के नाम दर्ज होते हैं। ऐसे में यदि कोई अपने पूर्वजों अथवा गांव के नाम जानते होंगे, तो वे यहां इनके बारे में जानकारी ले सकते हैं। इससे वे अपने बिछड़ों से भी मिल पाएंगे। योजना अच्छी थी। इस पर जोर शोर से काम करने की बात भी हुई, मगर समय के साथ इस योजना को बिसरा दिया गया।

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आखिर कब तक बनेगा गौरीकुंड-केदारनाथ रोपवे 

बाबा केदारनाथ के दर्शन को आने वाले श्रद्धालुओं को गौरीकुंड से केदारनाथ तक हवा में सफर का रोमांच दिलाने के लिए रोपवे बनाने की कवायद। इसका बाकायदा पूरा खाका खींचा गया। कहा गया कि इसके बनने से केदारनाथ और गौरीकुंड की हवाई दूरी नौ किलोमीटर रह जाएगी। पैदल मार्ग की दूरी 16 किलोमीटर है। पैदल यात्रा में आमतौर पर जिस दूरी को तय करने में छह से सात घंटे लगते हैं, रोपवे से वह दूरी मात्र 30 मिनट में ही तय की जा सकेगी। इससे यात्रा न केवल सुगम होगी, बल्कि खर्च में भी कमी आएगी। कारण, हेलीकॉप्टर का किराया पांच से छह हजार रुपये के बीच है, रोपवे में वह काफी कम होगा। साथ ही सफर का रोमांच भी बढ़ जाएगा। इसके लिए सर्वे का काम भी पूरा हो गया। अब इसके आगे की प्रक्रिया पूरी नहीं हो पा रही है। इस कारण यह काम लंबित चल रहा है।

व्यवस्था के तौर पर तैनात प्रधानाचार्य

देश-विदेश में शिक्षा के बड़े केंद्र के रूप में पहचान बना रहे उत्तराखंड में सरकारी विद्यालयों के हाल बहुत अच्छे नहीं हैं। स्थिति यह है कि इंटरमीडिएट कॉलेजों में प्रधानाचार्यों के पद बड़ी संख्या में रिक्त चल रहे हैं। सरकार ने तदर्थ पदोन्नति देकर कमी को पूरा करने का प्रयास किया, लेकिन सफलता नहीं मिल पाई। फिर वर्ष 2018 में सरकार ने प्रधानाचार्यों के आधे पद सीधी भर्ती से भरने का निर्णय लिया। कहा गया कि शेष पद विभागीय पदोन्नति के जरिये भरे जाएंगे। शिक्षकों ने इस निर्णय का जमकर विरोध किया। बावजूद इसके सरकार ने इसका एक प्रस्ताव तैयार कर शासन को भेज दिया। शासन ने निर्णय लिया कि जल्द सबकी सहमति के आधार पर एक उचित प्रस्ताव तैयार किया जाएगा। इस पर अभी तक कोई बहुत ठोस फैसला नहीं हो पाया है। नतीजतन, प्रदेश में आज भी व्यवस्था के तौर पर ही इंटरमीडिएट कॉलेजों में प्रधानाचार्य तैनात हैं।

पहाड़ों पर उद्योग चढ़ाने की कवायद

पर्वतीय क्षेत्र में औद्योगिक विकास की तमाम संभावनाएं मौजूद हैं। बावजूद इसके अभी तक प्रदेश में आई सरकारें इसमें ज्यादा सफल नहीं हो पाईं। देखा जाए तो वर्ष 2008 में तत्कालीन मुख्यमंत्री भुवन चंद्र खंडूड़ी द्वारा लाई गई पर्वतीय औद्योगिक नीति हो या वर्ष 2014 में हरीश रावत के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार की हिमालयी उद्योग नीति, कोई भी कारगर साबित नहीं हो पाई है। मौजूदा सरकार ने भी इस दिशा में कदम उठाने को भारी उद्योग व एमएसएमई नीति तैयार की। पहाड़ों में सिडकुल की तर्ज पर लैंड बैंक बनाने की बात भी हुई, लेकिन अभी तक इस दिशा में बहुत काम नहीं हो पाया है। वर्ष 2008 और वर्ष 2014 में लागू की गई नीति के कारण पर्वतीय क्षेत्रों में उद्योग लगाने के लिए सरकारी रियायत के आधार पर जमीन ली गई हैं, मगर किसी ने यहां उद्योग लगाने की दिशा में अभी तक कदम नहीं बढ़ाए हैं। 

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