पर्यावरण का दुश्मन पिरुल अब बन गया दोस्त, पढ़िए पूरी खबर
पिरुल अब रोजगार और आजीविका के साधनों को तरस रहे उत्तराखंड के हिमालयी क्षेत्र के लिए नई उम्मीद बनने जा रहा है।
देहरादून, [रविंद्र बड़थ्वाल]: वनों के रूप में राज्य के पास मौजूद हरियाली के अनूठे आवरण को हर साल नुकसान पहुंचा रहा पिरुल (चीड़ की पत्तियां) अब रोजगार और आजीविका के साधनों को तरस रहे उत्तराखंड के हिमालयी क्षेत्र के लिए नई उम्मीद बनने जा रहा है। 11 पर्वतीय जिलों में हजारों हाथों को पिरुल के जरिये काम मिलेगा, बल्कि दूरदराज में ग्रिड की बिजली से महरूम घरों का अंधेरा भी मिट सकेगा। इससे हर साल 150 मेगावाट से ज्यादा बिजली उत्पादन की संभावना है।
71 फीसद वन भूभाग वाले उत्तराखंड के जंगलों में हर साल आग के फैलाव की बड़ी वजह बनने वाले पिरुल से सरकार ने बिजली उत्पादन के साथ ही कोयला, जैविक खाद निर्माण को बढ़ावा देने की ठानी है। इसके लिए कसरत भी शुरू कर दी गई है। बिजली उत्पादन के लिए पिरुल की कमी न होने पाए, इस पर खास फोकस किया गया है। पिरुल एकत्रित करने वाले ग्रामीणों को प्रोजेक्ट लगाने वाली कंपनी के साथ ही सरकार की ओर से भी प्रोत्साहन दिया जाएगा।
राज्य के जंगलों में करीब 16 फीसद हिस्से में चीड़ का कब्जा है। चीड़ के जंगलों से हर साल 23.66 लाख मीट्रिक टन पिरुल गिरता है। अम्लीय गुण के कारण पिरुल अपने इर्द-गिर्द दूसरी वनस्पतियों को नहीं पनपने देता। हर साल लगने वाली ये आग सिर्फ वनों को ही नुकसान नहीं पहुंचा रही, बल्कि पर्यावरण, जीव-जंतुओं, पेड़-पौधों यानी जैव विविधता के लिए गंभीर खतरा बनी हुई है। ऐसे में पिरुल ने सरकार से लेकर आमजन तक की पेशानी पर बल डाले हैं और इस कड़ी में पिरुल को एक संसाधन के रूप में लेते हुए इसे आजीविका से जोडऩे की पहल की गई है।
पिरुल के बहुपयोग नीति पर जोर
राज्य सरकार ने पिरुल और अन्य प्रकार के बायोमास से विद्युत उत्पादन नीति-2008 जारी की है। इस नीति को शुरुआत से ही कामयाबी मिलने लगी है। इस संबंध में 50 प्रस्ताव सरकार को प्राप्त हो चुके हैं। इसे देखते हुए पिरुल उत्पादों के अध्ययन को अधिकारियों का एक दल इंडोनेशिया जाएगा। इंडोनेशिया में पिरुल से 143 प्रकार के उत्पाद बनाए जाते हैं। उत्तराखंड भी पिरुल के बहुपयोग की नीति अमल में लाएगा। पर्यावरण का दुश्मन यही पिरुल अब बिजली उत्पादन का जरिया बन रहा है। यह उत्तराखंड के ऊर्जा संकट को तो दूर करेगा ही, साथ में जंगल-जंगल, गांव-गांव पिरुल इकट्ठा करने और फिर उसे बायोमास बिजली संयंत्रों को मुहैया कराने के लिए हजारों हाथों के सहयोग की दरकार है। विद्युत उत्पादन में निजी क्षेत्र व सामुदायिक सहभागिता के लिए माहौल बनेगा। कृषि, लघु उद्योग, वाणिज्यिक और आवासीय वर्ग को विकेंद्रित रूप से बिजली उपलब्ध कराई जा सकेगी। उम्मीद जताई जा रही है कि ये रोजगार के नए अवसरों के रूप में पलायन की समस्या का समाधान बनेगा।
2030 तक 100 मेगावाट के प्रोजेक्ट
पिरुल से वर्ष 2030 तक 100 मेगावाट बिजली उत्पादन का लक्ष्य सरकार ने रखा है। वर्ष 2019 तक एक मेगावाट, वर्ष 2021 तक पांच मेगावाट विद्युत परियोजनाएं, 2030 तक 100 मेगावाट की परियोजनाएं स्थापित करने की सरकार की योजना है। साथ में वर्ष 2030 तक प्रति वर्ष अधिकतम 2000 मीट्रिक टन क्षमता के 50 बायोमास आधारित ब्रिकेटिंग संयंत्रों का भी लगाया जाएगा। पिरुल नीति को धरातल पर उतारने के लिए वन विभाग और उरेडा नोडल के रूप में कार्य करेंगे। वन विभाग पिरुल व अन्य बायोमास संग्रहण को क्षेत्रों को चिह्नित करेगा। साथ ही इन क्षेत्रों से पिरुल और अन्य बायोमास को इकट्ठा करने, परियोजना संचालकों को सहमति देने, परियोजना स्थलों के चिह्नीकरण में अहम भूमिका निभाएगा। वहीं उरेडा परियोजना संचालकों का चयन करेगा। केंद्र और राज्य सरकार से इस योजना में मिलने वाली छूट उपलब्ध कराने को उत्तरदायी होगा। राज्य में या राज्य के जिला उद्योग कार्यालयों में पंजीकृत इकाइयों, राज्य की सोसाइटी, उत्तरप्रदेश सहकारी अधिनियम, 1965 के अधीन इकाई को पिरुल व अन्य बायोमास विद्युत उत्पादन परियोजनाएं आवंटित की जाएंगी।
बिजली पैदा करें, एमएसएमई के लाभ लें
इस नीति के अधीन विद्युत उत्पादन इकाई को उद्योग माना जाएगा। उसे राज्य की एमएसएमई नीति के तहत लाभ दिए जाएंगे। पिरुल व बायोमास उत्पादित बिजली की दरें विद्युत नियामक आयोग की ओर से अधिसूचित कीमत से ज्यादा नहीं होंगी। इस बिजली को ऊर्जा निगम खरीदेगा। 100 किलोवॉट तक परियोजना के लिए अधिकतम भूमि करीब एक हजार वर्गमीटर से अधिक नहीं होगी। 250 किलोवाट की परियोजनाओं को अधिकतम भूमि 2000 वर्गमीटर होनी चाहिए।
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