उत्तराखंड: मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के लिए अग्नि परीक्षा बना कर्मचारियों का गुस्सा
नौकरशाही और फिर सचिवालय की कार्यप्रणाली पर बरसों से जमी धूल झाड़ने को उठे सरकार के हाथों को थामने के लिए कार्मिक संगठन खड़े हो रहे हैं।
देहरादून, राज्य ब्यूरो। पहले नौकरशाही और फिर सचिवालय की कार्यप्रणाली पर बरसों से जमी धूल झाड़ने को उठे सरकार के हाथों को थामने के लिए कार्मिक संगठन खड़े हो रहे हैं। सचिवालय में एक ही झटके में बदले गए 77 कार्मिकों के विरोध में सचिवालय संघ आगे आ गया है। कार्मिकों के तबादलों की जांच और इसमें संशोधन की मांग को लेकर दोनों ही पक्षों के बीच टकराव तेज होने के संकेत हैं। ऐसे में सचिवालय कार्मिकों के रोष को कम करने और अपने सख्त रुख को बरकरार रखने की चुनौती सरकार के सामने है। ऐसे में मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के लिए आने वाला समय अग्नि परीक्षा साबित होने जा रहा है।
वर्ष 2017 में प्रचंड बहुमत के साथ सत्ता में आई भाजपा की त्रिवेंद्र सिंह रावत सरकार सुशासन को अपनी सर्वोच्च प्राथमिकता में शुमार किए हुए है। भ्रष्टाचार पर जीरो टॉलरेंस के साथ ही प्रशासनिक कामकाज को बेहतर बनाने के लिए सरकार नित नए कदम उठा रही है। इसके बावजूद नौकरशाही के साथ ही शासन-शासन के कामकाज पर गाहे-बगाहे सवाल उठ रहे हैं। विपक्ष ही नहीं, सरकार के अपने विधायक भी इस पर सवाल उठा चुके हैं। इसे गंभीरता से लेते हुए मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने बीते दिनों नौकरशाही की हनक को आइना दिखाया था। मुख्यमंत्री के निर्देश पर राज्य गठन के बाद पहली दफा सामान्य प्रशासन विभाग ने सभी अपर मुख्य सचिवों, प्रमुख सचिवों, सचिवों, मंडलायुक्तों, पुलिस महानिदेशक, जिलाधिकारियों और सभी विभागाध्यक्षों को विस्तृत दिशा-निर्देश जारी किए।
विधायकों-सांसदों का सम्मान अनिवार्य
आदेश के मुताबिक सभी सरकारी सेवकों को संसद और विधानसभा सदस्यों के प्रति शिष्टाचार निभाना अनिवार्य कर दिया गया है। सांसद और विधायक से मिलने पर खड़ा होकर उनका स्वागत करने, चलते समय उन्हें खड़े होकर विदा करने, सार्वजनिक समारोहों के प्रत्येक अवसर पर उनके बैठने की व्यवस्था पर विशेष रूप से ध्यान देने, फोन को तत्परता से उठाने को कहा गया है।
मुख्यमंत्री कार्मिकों की सर्वोच्च संस्था सचिवालय प्रशासन के कामकाज से नाखुश रहे हैं। मुख्यमंत्री के लोक निर्माण विभाग के दो अभियंताओं को प्रतिकूल प्रविष्टि देने के निर्देशों को सचिवालय के संबंधित अनुभाग ने 14 माह तक दबाए रखा। मुख्यमंत्री के निर्देश पर सचिवालय में राज्य बनने के बाद पहली बार सख्त एक्शन हुआ। पांच संयुक्त सचिव, छह अनुभाग अधिकारियों समेत 22 अधिकारियों की जिम्मेदारी बदल दी गई। 24 समीक्षा अधिकारियों, 23 सहायक समीक्षा अधिकारियों, 16 होमगार्ड, पीआरडी और सचिवालय परिचारक के अनुभाग बदल डाले गए। वजनदार अनुभागों और अहम पदों पर वर्षों से जमे अधिकारियों और कर्मचारियों को सरकार ने हिला दिया।
वजनदार अनुभागों के कार्मिक बदले
लोक निर्माण, आबकारी, लघु सिंचाई, औद्योगिक विकास, आवास, शहरी विकास, गृह, सिंचाई, चिकित्सा स्वास्थ्य, तकनीकी शिक्षा समेत अनुभागों में तीन वर्ष से ज्यादा समय से जमे कार्मिकों को हटाकर नई जगह तैनाती दी गई है। लोक निर्माण विभाग में ऊपर से नीचे तक सबसे बड़ा फेरबदल देखने को मिला है। सरकार के यह चाबुक चलाकर प्रदेशभर में कर्मचारी संगठनों को साफ संदेश दे दिया। इससे संगठनों में बेचैनी साफ देखी जा रही है। सचिवालय संघ ने करीब हफ्तेभर तक चुप्पी साधने के बाद अब इसे मुद्दा बनाने की ठान ली है। मुख्य सचिव को ज्ञापन सौंपकर संघ ने अपने रुख के संकेत दे दिए हैं। दरअसल, प्रदेश के भीतर कर्मचारियों की सियासत में बीते वर्षों में सचिवालय संघ काफी मजबूत हुआ है। संघ के पदाधिकारी प्रदेशस्तरीय कर्मचारियों के संयुक्त मोर्चे का नेतृत्व कर रहे हैं।
अन्य संगठनों ने बढ़ाईं गतिविधियां
सचिवालय में हुए फेरबदल को चुनौती देते हुए संघ ने नाक का सवाल बना लिया है। इस मामले में संघ प्रदेश के कर्मचारियों को भी संदेश देना चाह रहा है। ऐसे में कर्मचारियों के तबादलों की जांच और इसमें संशोधन के लिए सरकार पर दबाव बढ़ाया जा रहा है। इससे आने वाले दिनों में कर्मचारियों की सियासत और गर्म होने के आसार हैं। संघ की सक्रियता देखकर कर्मचारियों के अन्य प्रदेशस्तरीय संगठनों ने भी अपनी गतिविधियां बढ़ा दी हैं। कोरोना काल में बढ़ती हुई ये गतिविधियां सरकार के लिए नई मुसीबत का सबब बन सकती हैं।
कर्मचारियों की समस्याओं के तलाश किए जा रहे समाधान
हालांकि सरकार ने कर्मचारियों की समस्याओं के निराकरण में तेजी लाने के निर्देश संबंधित अधिकारियों को दिए हैं। कार्मिक और वित्त के आला अधिकारी समस्याओं के निराकरण के फार्मूले तलाश कर रहे हैं। मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने विभागों को लंबित पदोन्नति प्रकरण के निपटारे में तेजी लाने की हिदायत दी है। बीती 18 मार्च को मुख्यमंत्री के निर्देश पर ही कार्मिक ने पदोन्नति के लंबित प्रकरण हफ्तेभर में निस्तारित करने के आदेश जारी किए थे। इसके बाद लंबे अरसे से बंद पड़ी पदोन्नति शुरू हो चुकी है, लेकिन कई महकमे अभी भी सुस्ती छोड़ नहीं पा रहे हैं। ऐसे महकमों को फिर हिदायत दी गई है। इसके बावजूद मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के सामने कर्मचारियों को साधे रखने की चुनौती है।
नौकरशाही को अनुशासित रखने की चुनौती बरकरार
प्रदेश सरकार को नौकरशाही साधने और अनुशासित बनाने के लिए अभी मीलों चलना पड़ेगा। शासन स्तर पर आठ आइएएस और 14 पीसीएस के खिलाफ शिकायतें लंबित हैं। उत्तराखंड में कार्यरत आठ आइएएस और 14 पीसीएस अधिकारियों के खिलाफ वर्ष 2018 और 2019 में सरकार को 28 शिकायतें मिली हैं। आरटीआइ कार्यकर्ता नदीमउद्दीन की ओर से सूचना के अधिकार में मांगी गई जानकारी में यह बात सामने आई है।
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