Move to Jagran APP

चारधाम यात्रा के पुराने रोमांच से आमजन फिर से हो सकेंगे रूबरू, पर्यटन विभाग ने बनाई एक योजना

चारधाम यात्रा का इतिहास बहुत पुराना है। यात्रा पूरी तरह पैदल हुआ करती थी। इसमें जगह-जगह श्रद्धालुओं के ठहरने के स्थान थे जिन्हें चट्टियां कहा जाता था। इसकी शुरुआत ऋषिकेश के निकट मोहन चट्टी से होती थी। मार्ग मुश्किलों भरा था लिहाजा श्रद्धालु मार्ग में जगह-जगह चट्टियों पर रुकते थे।

By Sunil NegiEdited By: Published: Fri, 09 Oct 2020 09:22 AM (IST)Updated: Fri, 09 Oct 2020 09:22 AM (IST)
चारधाम यात्रा के पुराने रोमांच से आमजन फिर से हो सकेंगे रूबरू, पर्यटन विभाग ने बनाई एक योजना
चार धाम यात्रा के पुराने रोमांच से आमजन को फिर रूबरू कराने के लिए पर्यटन विभाग ने एक योजना बनाई।

देहरादून, विकास गुसाईं। उत्तराखंड की चारधाम यात्रा का इतिहास बहुत पुराना है। इसे पहले छोटी चारधाम या हिमालयी चारधाम यात्रा कहा जाता था। यात्रा पूरी तरह पैदल हुआ करती थी। इसमें जगह-जगह श्रद्धालुओं के ठहरने के स्थान थे, जिन्हें चट्टियां कहा जाता था। इसकी शुरुआत ऋषिकेश के निकट मोहन चट्टी से होती थी। मार्ग काफी मुश्किलों भरा था, लिहाजा श्रद्धालु मार्ग में जगह-जगह चट्टियों पर रुकते थे। हर धाम तक पहुंचने के लिए कई चट्टियां हुआ करती थीं। अब चारधाम यात्रा सुगम हो चुकी है। यात्रा के पुराने रोमांच से आमजन को फिर रूबरू कराने के लिए पर्यटन विभाग ने एक योजना बनाई। उद्देश्य यह भी था कि श्रद्धालु चट्टियों के इतिहास के बारे में जानें। इसके लिए फाइलों में काम शुरू हुआ, लेकिन योजना धरातल पर नहीं उतर पाई है। इस बार इस दिशा में कार्य होने की उम्मीद थी, लेकिन कोरोना के कारण एक कदम भी आगे नहीं बढ़ा जा सका।

loksabha election banner

आइस रिंक या सफेद हाथी 

देहरादून में दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों का एकमात्र आइस स्केटिंग रिंक, निर्माण में लगभग 80 करोड़ रुपये खर्च हुए। उम्मीद थी कि इससे न केवल उत्तराखंड, बल्कि देश-विदेश की खेल प्रतिभाओं को मंच मिलेगा। महत्वपूर्ण यह कि इसकी शुरुआत ही अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिता से हुई। अब इसे विडंबना ही कहेंगे कि इसके बाद सरकारी मशीनरी की लचर कार्यशैली के कारण इसका संचालन आज तक नहीं हो पाया। दो वर्ष पूर्व एक निजी कंपनी को इसका जिम्मा दिया गया था, लेकिन वह भी अब हाथ खड़े कर गई है। दरअसल, वर्ष 2011 में सैफ विंटर गेम्स के लिए देहरादून में इस आइस स्केटिंग रिंक का निर्माण किया गया था। प्रतियोगिता के बाद इसके संचालन का जिम्मा पर्यटन विभाग को सौंपा गया। 2011-12 में नाम के लिए प्रतियोगिताएं हुईं। फिर जिम्मा खेल विभाग को दिया गया, जो इसे आज तक संचालित ही नहीं कर पाया है। महज सफेद हाथी बनकर रह गया यह रिंक।

पर्वतीय जोतों की चकबंदी कब

प्रदेश में लगातार हो रहे पलायन का एक कारण बिखरी जोत होने से खेती न हो पाना भी है। इसे देखते हुए सरकार ने पर्वतीय क्षेत्रों की बिखरी जोतों को एक करने का निर्णय लिया, ताकि किसानों को एक ही जगह खेती योग्य बड़ी जोत मिल सके। इसके लिए विधानसभा में विधेयक तक पारित किया गया। अफसोस चार साल बाद आज भी पर्वतीय क्षेत्रों में केवल छह गांवों में ही चकबंदी शुरू हो पाई है। नतीजा, जिस पलायन को रोकने के लिए यह योजना बनाई गई, वह अब भी बदस्तूर जारी है। दरअसल, प्रदेश सरकार ने वर्ष 2016 में विधानसभा में भूमि चकबंदी एवं भूमि व्यवस्था विधेयक पारित किया। इसमें देहरादून, हरिद्वार, नैनीताल व ऊधमसिंह नगर को छोड़ शेष नौ जिलों को शामिल किया गया। इससे पर्वतीय क्षेत्रों के लोगों की उम्मीदें परवान चढ़ी कि अब वे एक बड़ी जोत में खेती कर सकेंगे। अफसोस अब तक ऐसा हुआ नहीं।

यह भी पढ़ें: Chardham Yatra 2020: चारधाम यात्रा को लेकर श्रद्धालुओं में उत्साह, अब तक 57 हजार से ज्‍यादा श्रद्धालु कर चुके हैं दर्शन

विदेशी पूंजी निवेश की उम्मीद

प्रदेश में उद्योगों को आकॢषत करने के लिए सरकार तमाम प्रयास कर रही है। इस कड़ी में विदेशी उद्योगपतियों को लगातार आमंत्रित किया गया। यूरोप, अमेरिका, इंग्लैंड, जार्जिया आदि देशों में रोड शो और अंतरराष्ट्रीय मेलों में शिरकत कर उद्यमियों को आकर्षित करने का प्रयास भी किया गया। प्रदेश में आने वाले विदेशी उद्योगपतियों को मुख्यमंत्री और मंत्रियों से मिलाया गया। तमाम सिडकुल क्षेत्रों का भ्रमण कराया गया। मनपसंद उद्योग लगाने के लिए नियमों में ढील देने तक की बात हुई। नीति में इसका प्रविधान किया गया। उम्मीद जताई गई कि इन देशों के उद्योगपति वेलनेस, फूड इंडस्ट्री, ऑर्गेनिक फार्मिंग समेत तमाम क्षेत्रों में निवेश करेंगे। उद्योगपतियों के साथ सहमति पत्रों पर हस्ताक्षर भी किए गए। बावजूद इसके इनमें से अधिकांश ने वापस पलट कर भी नहीं देखा। कोरोना भी इसका एक कारण माना जा रहा है। हालांकि अभी सरकार ने विदेशी निवेशकों के आने की आस नहीं छोड़ी है।

यह भी पढ़ें: जानें- कब और किसने की थी प्रसिद्ध हेमकुंड साहिब की खोज, इस किताब में है जिक्र


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.