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टिहरी बांध निर्माण में वहां के निवासियों का रहा अमूल्य योगदान, बांध की बिजली पर हक को इंतजार

टिहरी बांध निर्माण में टिहरी के निवासियों का अमूल्य योगदान रहा। टिहरीवासियों को खेत अपने गांव और अपनी जड़ों तक को छोडऩा पड़ा। उम्मीद केवल यह कि जब भी यह बांध बनेगा तो इससे मिलने वाली बिजली से पूरा प्रदेश रोशन होगा। राज्य गठन के बाद उम्मीदें और परवान चढ़ी।

By Sumit KumarEdited By: Published: Fri, 26 Nov 2021 06:18 PM (IST)Updated: Fri, 26 Nov 2021 06:18 PM (IST)
टिहरी बांध निर्माण में वहां के निवासियों का रहा अमूल्य योगदान, बांध की बिजली पर हक को इंतजार
टिहरी बांध निर्माण में टिहरी के निवासियों का अमूल्य योगदान रहा।

विकास गुसाईं, देहरादून: टिहरी बांध निर्माण में टिहरी के निवासियों का अमूल्य योगदान रहा। टिहरीवासियों को अपने खेत, अपने गांव और अपनी जड़ों तक को छोडऩा पड़ा। उम्मीद केवल यह कि जब भी यह बांध बनेगा तो इससे मिलने वाली बिजली से पूरा प्रदेश रोशन होगा। राज्य गठन के बाद उम्मीदें और परवान चढ़ी। परिसंपत्तियों का बटवारा हुआ तो बांध परियोजना की शर्तों के मुताबिक उत्तराखंड को 25 प्रतिशत बिजली मिलनी थी, मगर उत्तर प्रदेश ने 25 प्रतिशत बिजली देने के मामले में कन्नी काट ली। उत्तराखंड को परियोजना क्षेत्र का राज्य होने के नाते केवल 12.5 प्रतिशत बिजली रायल्टी के रूप में मिल रही है। उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में एक ही पार्टी की सरकार आने से मामले के हल होने की उम्मीद जगी। हाल ही में परिसंपत्तियों को लेकर दोनों राज्यों के मुख्यमंत्रियों की बैठक तो हुई लेकिन टिहरी बांध से बिजली का मसला एक बार फिर अछूता ही रह गया।

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जेलों की सुरक्षा पर बजट का लगा अड़ंगा

प्रदेश में जेलों की सुरक्षा और कैदियों को सुविधाएं देने के मामले बजट के अभाव में लंबित चल रहे हैं। जेलों में सुरक्षा लगातार तार-तार हो रही है। अपराधी बेखौफ जेलों से गैंग संचालित कर रहे हैं। इन पर नजर रखने को जेलों में पूरी तरह सीसी टीवी कैमरे नहीं लग पाए हैं। नई तकनीक के जैमर न होने के कारण मोबाइल फोन का प्रयोग जेलों के भीतर लगातार हो रहा है। जेलों में कैदियों की स्थिति भी बहुत बेहतर नहीं है। प्रदेश में इस समय 11 जेल अस्तित्व में हैं। इन जेलों की क्षमता तकरीबन 3500 कैदियों को रखने की है। इसके सापेक्ष इन जेलों में पांच हजार से अधिक कैदी बंद है। समय-समय पर जेलों की सुरक्षा को मजबूत करने और कैदियों की संख्या को देखते हुए नई जेल बनाने की बात भी हुई है। बावजूद इसके सरकार इनके लिए समुचित बजट की व्यवस्था नहीं कर पाई है।

चार साल गुजरे, नहीं हुआ विभागों का एकीकरण

प्रदेश सरकार ने चार साल पहले केंद्र की तर्ज पर खेल और युवा कल्याण विभाग को एकीकृत करने का निर्णय लिया। इसके लिए सुझाव व आपत्तियां आमंत्रित की गईं। एकीकरण के पीछे कारण बताया गया कि इससे युवाओं और खिलाडिय़ों को केंद्र द्वारा चलाई जा रही योजनाओं का लाभ सही तरीके से मिलेगा। इसके लिए उन्हें दोनों विभागों के चक्कर नहीं काटने पड़ेंगे। अभी तक खिलाडिय़ों को जरूरी अनुमति के लिए दोनों विभागों के चक्कर काटने पड़ रहे हैं। एकीकरण का निर्णय होते ही शासन ने दोनों विभागों के अधिकारियों के बीच कार्य बटवारा कर दिया। इस पर सवाल खड़े होने लगे। कहा गया कि खेल की जानकारी न रखने वाले अधिकारी इसमें कैसे अपना योगदान देंगे। इससे समस्याएं भी आनी शुरू हुईं। कर्मचारियों ने इस पर आपत्तियां लगाईं और तब से इन आपत्तियों का आज तक निस्तारण नहीं हो पाया। नतीजतन दोनों विभाग अलग-अलग ही कार्य कर रहे हैं।

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कागजों में खो गई मुफ्त प्रशिक्षण की योजना

प्रदेश में युवाओं को रोजगार देने के लिए योजना बनाई गई, ताकि युवा पलायन न करें। वर्ष 2015 में एक ऐसी ही योजना शुरू की गई। इसे नाम दिया गया मेरे युवा, मेरा उत्तराखंड। इस योजना में 15 से 45 वर्ष की उम्र तक के व्यक्तियों को राफ्टिंग, स्कीईंग, ट्रेकिंग व पैराग्लाइडिंग जैसी साहसिक गतिविधियों का मुफ्त प्रशिक्षण देने का निर्णय लिया गया। कहा गया कि प्रदेश में बढ़ते पर्यटन के मद्देनजर इन गतिविधियों की ओर पर्यटक आकर्षित होंगे। स्थानीय युवाओं को इसकी जानकारी होने से न केवल उन्हें रोजगार मिलेगा, बल्कि पलायन पर भी रोक लग सकेगी। योजना को पर्यटन विभाग के जरिये चलाने का निर्णय लिया गया। इसके लिए विभाग को प्रतिवर्ष पांच करोड़ रुपये देने का भी फैसला लिया गया। अफसोस यह कि यह योजना आज तक कागजों से बाहर नहीं निकल पाई है। यहां युवा अब अपने ही बूते इस क्षेत्र में आगे बढ़ रहे हैं।

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