यहां लोगों ने सदियों पुरानी कुरीतियों का किया अंत, महिलाएं भी कर सकती मंदिर में प्रवेश
देहरादून जिले के चिल्हाड़ गांव में लोगों ने सदियों पुरानी कुरीतियों का अंत कर नए युग की शुरुआत की। मंदिर में महिलाओं व अनुसूचित जाति के प्रवेश पर लगी पाबंदी हटाई।
त्यूणी, देहरादून [चंदराम राजगुरु]: ढाई दशक से ज्यादा समय तक देहरादून जिले के जनजातीय क्षेत्र जौनसार-बावर की सुदूरवर्ती चिल्हाड़ ग्राम पंचायत में प्रधान व जिला पंचायत सदस्य रहे गांव के स्याणा बिजल्वाण परिवार ने नई सोच एवं उमंग के साथ सामाजिक सद्भाव की मिसाल कायम की है। स्याणा (मुखिया) परिवार की पहल से गांव-समाज के लोगों ने चिल्हाड़ के बलाणी देवी माता मंदिर में सदियों पुरानी कुरीतियों का अंत कर नए युग की शुरुआत की। मंदिर में महिलाओं व अनुसूचित जाति के प्रवेश पर लगी पाबंदी हटने के साथ यहां पशुबलि जैसी कुप्रथा भी हमेशा के लिए बंद हो गई। लोग अब पशुबलि के विकल्प रूप में जटा-नारियल चढ़ा रहे हैं।
समाज में छुआछूत व भेदभाव की जंजीरों में जकड़े लोग सामाजिक जागृति से रुढ़िवाद की बेड़ियों को तोड़ खुली आबोहवा में सांस ले रहे हैं। जौनसार-बावर में जाति-बंधन के पोषक माने जाने वाले ऊंची जाति के लोग सदियों पुरानी परपंरा से हटकर जमाने के साथ कदमताल कर रहे हैं। ऐसा संभव हो पाया सामाजिक चेतना की अलख जगाने वाले चकराता ब्लॉक की सुदूरवर्ती चिल्हाड़ पंचायत के गांव स्याणा परिवार के पंडित जयदत्त बिजल्वाण के प्रयासों से।
करीब दो लाख की आबादी वाले जनजाति बहुल जौनसार-बावर के लोग हनोल महासू देवता को कुल आराध्य देव के रूप में पूजते हैं। क्षेत्र में महासू देवता के कई मंदिर हैं, लेकिन पांडवकालीन हनोल मंदिर की मान्यता सबसे ज्यादा है। चिल्हाड़ गांव में महासू देवता की बहन माता बलाणी देवी का प्राचीन मंदिर है, जिसके पुजारी ब्राह्मण समाज के लोग हैं। पहले बलाणी माता मंदिर में महिलाओं व अनुसूचित जाति के लोगों का प्रवेश वर्जित था। साथ ही यहां पशुबलि भी होती थी। लेकिन, बिजल्वाण परिवार के प्रयासों से धीरे-धीरे लोगों की सोच बदली और आज मंदिर में हर जाति-वर्ग के लोग प्रवेश कर सकते हैं।
वर्ष 2017 में ऐसे हुआ इस कुप्रथा का अंत
चिल्हाड़ के स्याणा बिजल्वाण परिवार की पहचान समूचे इलाके में है। करीब सौ सदस्यों वाले इस संयुक्त परिवार ने देवमाली, पुजारी व गांव-समाज के लोगों की पंचायत बुलाकर सैकड़ों साल से चली आ रही कुरीतियों को खत्म करने का निर्णय लिया। देवमाली रोशनलाल बिजल्वाण भी इसमें सहभागी बने। नतीजा, गांव-समाज के लोगों ने बलाणी माता मंदिर में बीते वर्ष 28 मई से दो जून तक चले धार्मिक अनुष्ठान के साथ इस कुप्रथा का अंत कर नए युग का सूत्रपात किया। इसके साथ ही मंदिर में पशुबलि जैसी कुप्रथा भी हमेशा के लिए बंद कर दी गई।
बढ़ेगा सामूहिकता का भाव, मिलेगा पर्यटन को बढ़ावा
स्थानीय निवासी पीतांबर दत्त बिजल्वाण बताते हैं कि समूचे क्षेत्र में बलाणी देवी का सिर्फ एक मंदिर चिल्हाड़ गांव में ही है। लोग पीढ़ियों से बलाणी माता को कुल देवी के रूप में पूजते आ रहे हैं। मंदिर में सभी के लिए प्रवेश खुला करने और पशुबलि जैसी कुप्रथा का अंत होने से क्षेत्र में सामूहिकता का भाव तो बढ़ेगा ही, पर्यटन गतिविधियों को भी गति मिलेगी।
ढाई दशक तक रहे ग्राम प्रधान
चिल्हाड़ पंचायत के गांव स्याणा जयदत्त बिजल्वाण के परिवार में करीब सौ सदस्यों का सबसे बड़ा कुनबा है। सभी लोग हंसी-खुशी एक ही छत के नीचे रहते हैं। क्षेत्र के संपन्न परिवारों में एक बिजल्वाण परिवार के सदस्य जिला जज से लेकर कई अन्य पदों पर देश के विकास में योगदान कर रहे हैं। कृषि, बागवानी, होटल व्यवसाय व सरकारी सेवाओं में कार्यरत होने के बावजूद परिवार का मुखिया सिर्फ एक है।
गांव-समाज में इनकी मजबूत पकड़ का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि वर्ष 1952 से 1962 तक गांव स्याणा जयदत्त बिजल्वाण के दादा स्व. शिवराम बिजल्वाण चिल्हाड़ के पहले प्रधान रहे। इसके बाद वर्ष 1962 से 1972 तक उनके पिता पंडित स्व. माधोराम बिजल्वाण ने यह पद संभाला।
वर्ष 1996 से 2002 तक स्वयं जयदत्त बिजल्वाण जिला पंचायत सदस्य रहे। जबकि, वर्ष 2002 से 2007 तक उनकी पत्नी कमला बिजल्वाण पंचायत की प्रधान रही। बेहद शांत एवं सौम्य स्वभाव वाले बिजल्वाण परिवार ने हमेशा लीक से हटकर समाज हित के बारे में सोचा। जिसकी हर-कोई सराहना करता है।
यह भी पढ़ें: स्वतंत्रता के संघर्ष की गवाह है सौ साल पुरानी पानी की टंकी
यह भी पढ़ें: ये शिक्षक हर स्वतंत्रता दिवस पर लेते हैं बेटियों को गोद, उठाते हैं शिक्षा का खर्च