आमजन पर भारी पड़ रही पुलिस की बाजीगरी, लोगों को पैदल नापनी पड़ रही लंबी दूरी
नए ट्रैफिक प्लान में सभी रूटों के विक्रम घंटाघर लैंसडौन एस्लेहॉल और सर्वे चौक से आधा-पौन किलोमीटर पहले ही रोक दिए जा रहे हैं। जिससे जनता की परेशानी दोगुनी हो गई।
देहरादून, जेएनएन। पुलिस के नए ट्रैफिक प्लान से जो क्षेत्र थोड़ा-बहुत सुकून में है, वो है घंटाघर। बस, इसी को नजीर मानकर पुलिस अपनी पीठ थपथपाने में जुटी है। जबकि, हकीकत में इसकी वजह ट्रैफिक प्लान का असर नहीं बल्कि पुलिस की वो बाजीगरी है, जिसके तहत किसी भी विक्रम व ई-रिक्शा को प्लान क्षेत्र में प्रवेश नहीं करने दिया जा रहा। इससे राजपुर रोड पर घंटाघर से एस्लेहॉल के बीच तो जाम नहीं दिख रहा। लेकिन, अन्य सड़कों पर यह दबाव भारी पड़ रहा है।
नए ट्रैफिक प्लान में सभी रूटों के विक्रम घंटाघर, लैंसडौन, एस्लेहॉल और सर्वे चौक से आधा-पौन किलोमीटर पहले ही रोक दिए जा रहे हैं। पुलिस की इस बाजीगरी से ट्रैफिक प्लान के ट्रायल क्षेत्र में वाहनों का कुछ दबाव तो कम हो गया, मगर जनता की परेशानी दोगुनी हो गई। निर्धारित स्टॉपेज से पहले ही उतारे जाने के कारण लोगों को गंतव्य तक पहुंचने के लिए काफी पैदल चलना पड़ रहा है। ऐसे में अगर किसी को दूसरे रूट का विक्रम पकडऩा है तो यह दूरी और बढ़ जा रही है। विक्रम चालकों से कहासुनी हो रही है, सो अलग।
विक्रम चालक भी पुलिस के इस रवैये से परेशान हैं। इसको लेकर सोमवार को राजपुर-एस्लेहॉल रूट के विक्रम चालकों ने डीएम कैंप कार्यालय के पास विरोध भी जताया। उनका कहना था कि स्टॉपेज तक न जाने दिए जाने के कारण उन्हें सवारियां नहीं मिल रहीं। राजपुर से आने वाले विक्रमों को डीएम कैंप कार्यालय तक ही जाने की अनुमति है। इससे आगे न ले जाने पर सवारियां नाराज होती हैं। कई बार विवाद भी हो जाता है। चालकों ने मसूरी विधायक गणेश जोशी को ज्ञापन सौंपकर अटपटे ट्रैफिक प्लान पर हस्तक्षेप करने की भी मांग की।
इन रूटों की विक्रम सेवा प्रभावित
- रूट, विक्रम
- सुभाष नगर-सर्वे चौक, 309
- प्रेमनगर-घंटाघर, 132
- रिस्पना पुल सर्वे चौक, 110
- राजपुर-एस्लेहॉल चौक, 80
- रायपुर-लैंसडौन चौक, 80
- सीमाद्वार-सर्वे चौक, 55 विक्रम
- कौलागढ़-घंटाघर, 25 विक्रम
जेब पर बोझ भी बढ़ा
विभिन्न मार्गों का फेरा लंबा होने के चलते ऑटो व ई-रिक्शा चालक लोगों से सामान्य से अधिक पैसे वसूल रहे हैं। जाम में फंसने की भरपाई भी जनता से की जा रही है। इससे लोगों की जेब पर बोझ बढ़ गया है।
तो ट्रैफिक प्लान को लगानी पड़ेगी सेना
देहरादून शहर में पुलिस ने ट्रैफिक को ऐसा मुद्दा बना दिया कि चौतरफा सिर्फ इसी की चर्चा है। एक बात गौर करना और भी जरूरी है कि अभी तो ट्रायल में ही शहर की पूरी फोर्स को लगना पड़ा। जब यह प्लान प्रभावी होगा, तब अधिकारी कहां से फोर्स लाएंगे। क्योंकि सामान्य दिनों में भी ट्रैफिक चलाने में पीएसी और होमगार्ड के जवानों की मदद लेनी पड़ती है, तो फिर अब बचा कौन। क्या अधिकारी सेना बुलाएंगे।
देहरादून यातायात पुलिस में संसाधनों की कमी किसी से छिपी नहीं है। इसे इसी बात से समझा जा सकता है कि शहर के चौक-चौराहों पर सफेद वर्दी वाले ट्रैफिक के कांस्टेबिल कम खाकी वर्दी वाले पुलिस वाले अधिक दिखते हैं।
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ऐसे हालात में नए ट्रैफिक प्लान से खुद पुलिस के लिए भी मुसीबत बढ़ जाएगी। वजह साफ है कि थानों की पुलिस के पास के ट्रैफिक के अलावा शांति और कानून व्यवस्था, जांच, विवेचना, रात्रि गश्त और पिकेट ड्यूटी से लेकर अन्य तमाम तरह की ड्यूटियां भी तो होती हैं। ऐसे में उन्हें हर दिन बारह घंटे के लिए तो सड़क पर उतारा नहीं जा सकता। पीएसी और होमगार्ड के जवानों की संख्या भी सीमित है। लिहाजा देखने वाली बात होगी कि आने वाले समय में जब यह प्लान पूरी तरह से लागू होता है तो पुलिस अधिकारी संसाधन कहां से जुटाएंगे।
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