Coronavirus Effect: बच्चों को स्कूल भेजने का जोखिम नहीं उठाना चाहते, जानिए क्या है कहना
बोर्ड कक्षाओं को दो नवंबर से स्कूल बुलाने की तैयारी शुरू हो गई है। एक ओर सरकार यह भी बोल रही है कि अभी केवल ट्रायल बेस पर स्कूल खोले जा रहे हैं लेकिन सरकार और निजी स्कूलों के रवैये से अभिभावक खुश नहीं है।
देहरादून, जेएनएन। प्रदेश में बोर्ड कक्षाओं को दो नवंबर से स्कूल बुलाने की तैयारी शुरू हो गई है। एक ओर सरकार यह भी बोल रही है कि अभी केवल ट्रायल बेस पर स्कूल खोले जा रहे हैं, लेकिन सरकार और निजी स्कूलों के रवैये से अभिभावक खुश नहीं है। ऐसे में अभिभावक अपनी जिम्मेदारी पर जोखिम उठाकर बच्चों को स्कूल नहीं भेजना चाहते हैं।
प्रदेश में स्कूल खोलने की बातें तो चल रही हैं, लेकिन छात्र-छात्रओं की सुरक्षा की जिम्मेदारी कौन लेगा, इस सवाल पर कोई नहीं बोल रहा है। निजी स्कूल पहले ही बच्चों की जिम्मेदारी लेने से हाथ खड़े कर चुके हैं। स्कूलों ने छात्र को कोरोना संक्रमण होने पर सरकार से स्कूल प्रशासन पर किसी भी प्रकार की कार्रवाई न करने की मांग भी की है। दूसरी ओर प्रदेश सरकार ने बकायदा कैबिनेट में प्रस्ताव पारित कर दो नवंबर से स्कूल खोलने का फैसला लिया है, लेकिन छात्र-छात्रओंकी जिम्मेदारी सरकार भी तय नहीं कर सकी है। ऐसे में अभिभावकों का दोनों से ही भरोसा उठ गया है। अभिभावकों का साफ कहना है कि उनके लिए उनके बच्चों का स्वास्थ्य पढ़ाई से ज्यादा जरूरी है।
स्कूल तक के सफर को लेकर चिंता
यूं तो कई निजी स्कूलों द्वारा छात्र-छात्रओं के लिए ट्रांसपोर्ट सुविधा उपलब्ध करवाई जाती है और कई अभिभावक खुद अपने बच्चों को स्कूल छोड़ने और लेने जाते हैं, लेकिन बड़ी संख्या में ऐसे छात्र-छात्रएं भी हैं जो पब्लिक ट्रांसपोर्ट का प्रयोग करते हैं। ऐसे बच्चों के अभिभावक ज्यादा चिंतित हैं। चकराता रोड निवासी पूजा शर्मा ने बताया कि उनकी बेटी दसवीं कक्षा में पढ़ रही है, वह साइकिल से स्कूल जाती है। इतने महीनों से उसे घर से बाहर नहीं निकलने दिया है, लेकिन अब स्कूल खुलने पर वह खुद स्कूल जाने की जिद कर रही है। सबसे बड़ा खतरा यह है कि स्कूल के रास्ते में उसे कहीं संक्रमण ना हो जाए।
ट्रांसपोर्ट को लेकर स्कूलों की तैयारी
निजी स्कूल छात्र छात्रओं के ट्रांसपोर्ट का विशेष ध्यान रखने का दावा कर रहे हैं। द टोंसब्रिज स्कूल की प्रिंसिपल वेला सहगल ने कहा कि उनके स्कूल की अपनी बसें चलती हैं। बताया कि शारीरिक दूरी का पालन करने के लिए स्कूल प्रशासन एक बस में आधी सीट पर ही छात्रों को बैठाएगा। बिना मास्क किसी को एंट्री नहीं दी जाएगी। बस में बैठते हुए बच्चों की थर्मल स्क्रीनिंग की जाएगी। जो छात्र स्कूल की बस में नहीं आएंगे, उनका तापमान स्कूल गेट पर लिया जाएगा। उधर, प्रिंसिपल प्रोग्रेसिव स्कूल्स एसोसिएशन के अध्यक्ष प्रेम कश्यप ने कहा कि बोर्डिंग स्कूलों में तो बस एक दफा छात्र को कोरोना निगेटिव रिपोर्ट के साथ एंट्री दी जानी है। लेकिन दिवसीय स्कूलों में जिनके पास ट्रांसपोर्ट की सुविधा है, उन्हें संक्रमण से बचाव की गाइडलाइंस का पालन करने को कहा गया है।
जानिए क्या कहते हैं अभिभावक
अभिभावक कविता वर्मा का कहना है कि आधा सत्र ऑनलाइन पढ़ाई करते निकल चुका है, तो क्यों ना बाकी के महीनों में भी इसी तरह पढ़ाई हो और बच्चों को केवल बोर्ड परीक्षा के लिए स्कूल बुलाया जाए। मेरी बेटी 12वीं कक्षा में है और खुद साइकिल से स्कूल जाती है। जोखिम उठाने से बेहतर है कि वह घर पर ही पढ़ाई करे।
वहीं, सुरेंद्र पाल कहते हैं मेरे दोनों बच्चे 10 वीं और 12 वीं कक्षा में हैं। नवंबर से दोनों के स्कूल खुलने जा रहे हैं, लेकिन ना तो स्कूल और ना ही सरकार इनकी जिम्मेदारी लेने को तैयार है। फिर कोई क्यों अपने बच्चों को स्कूल भेजेगा। पढ़ाई से ज्यादा बच्चों का स्वास्थ्य और जीवन जरूरी है।
वहीं, सीमा नरूला का कहना है कि शायद सरकार और स्कूलों ने बिना अभिभावकों का मत जाने स्कूल खोलने का फैसला ले लिया है। ज्यादातर अभिभावक अभी स्कूल खोलने के पक्षधर नहीं हैं। अगर बहुत जरूरी है तो बोर्ड कक्षा के छात्र छात्रओं को प्रैक्टिकल और फिर सीधे बोर्ड परीक्षाओं के लिए स्कूल बुलाया जाना चाहिए।
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वहीं, कुछ अभिभावकों का ये भी कहना है कि कोरोना की वैक्सीन आने और हर बच्चे को वैक्सीन लग जाने तक किसी भी कक्षा के छात्र छात्रओं को स्कूल बुलाना नासमझी है। दूसरे राज्यों का उदाहरण भी हमारे सामने है। जहां भी स्कूल खुले वहां छात्र-छात्रओं में संक्रमण तेजी से फैला है।