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Hesco के संस्थापक अनिल जोशी बोले, आत्मनिर्भरता के लिए होना होगा ग्रामोन्मुखी

हेस्को प्रमुख अनिल जोशी ने कहा कि आत्मनिर्भरता के लिए हमें ग्रामोन्मुखी होना होगा। साथ ही सांसदों से आग्रह किया कि यदि वे पारिस्थितिकी से समन्वय स्थापित कर विकास योजनाओं की पहल करेंगे तो इससे आर्थिकी व पारिस्थितिकी दोनों का हम बड़ा लाभ उठा सकेंगे।

By Raksha PanthriEdited By: Published: Fri, 22 Jan 2021 01:20 PM (IST)Updated: Fri, 22 Jan 2021 01:20 PM (IST)
Hesco के संस्थापक अनिल जोशी बोले, आत्मनिर्भरता के लिए होना होगा ग्रामोन्मुखी
Hesco के संस्थापक अनिल जोशी बोले, आत्मनिर्भरता के लिए होना होगा ग्रामोन्मुखी। फाइल फोटो

राज्य ब्यूरो, देहरादून। हिमालयी पर्यावरण अध्ययन एवं संरक्षण संगठन (हेस्को) के संस्थापक पद्मभूषण डा. अनिल प्रकाश जोशी ने कहा कि तेजी से बढ़ती आर्थिकी के साथ गिरते पारिस्थितिक और प्राकृतिक मूल्यों के प्रति भी हमें गंभीर होना होगा। डा. जोशी ने गुरुवार को संसदीय सचिवालय और पार्लियामेंट्री रिसर्च एंड ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट फॉर डेमोक्रेसीज (प्राइड) की ओर से सांसदों का पद्म पुरस्कारों से सम्मानित जनों के साथ आयोजित विमर्श में वर्चुअली भाग लेते हुए यह बात कही। उन्होंने यह भी कहा कि आत्मनिर्भरता के लिए हमें ग्रामोन्मुखी होना होगा। साथ ही सांसदों से आग्रह किया कि यदि वे पारिस्थितिकी से समन्वय स्थापित कर विकास योजनाओं की पहल करेंगे तो इससे आर्थिकी और पारिस्थितिकी दोनों का हम बड़ा लाभ उठा सकेंगे।

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सांसदों को संबोधित करते हुए डा. जोशी ने उन सभी पहलुओं को छुआ जो कहीं न कहीं विकास, समृद्धि, विज्ञान, तकनीकी व पर्यावरण से जुड़े हैं। उन्होंने विश्वभर में हवा, जंगल, मिट्टी व पानी के खराब होते हालात पर चिंता जताई और कहा कि ये भी विडंबना ही है कि करीब 50 फीसद से ऊपर जीडीपी प्राकृतिक संसाधनों के आधार पर ही है। उन्होंने यह इंगित करने का प्रयास भी किया कि उत्पादक को उतना लाभ नहीं मिल पाता, जितना कि प्रबंधन के जरिये लाभ उठाए जाते हैं। इसका बड़ा कारण ये है कि विज्ञान और तकनीकी कहीं एकतरफा ही हैं। गांवों के लिए तकनीकी व विज्ञान पर बहुत ज्यादा काम न होने से गांव इसके लाभ से अछूते हैं। 

विज्ञान का उपयोग सिर्फ सुविधाओं व विलासिता के लिए नहीं, बल्कि संरक्षण के लिए भी होना चाहिए। उन्होंने प्राकृतिक संसाधनों की महत्ता पर जोर देते हुए कहा कि विज्ञान ने इन्हें बेहतर करने को गंभीरता से कार्य नहीं किया, बल्कि इनके विकल्पों पर कार्य किया। मिट्टी के लिए रासायनिक उर्वरक, बिगड़ती वायु के लिए एयर प्यूरीफायर और पानी की कमी को पूरा करने को बोतल बंद पानी का बिजनेस शुरू हो गया। वनों की प्रजातियों का सही विश्लेषण नहीं हुआ। लिहाजा अब समय आ गया है कि जितने हम जीडीपी की ओर गंभीर हैं, उतना ही हमें पर्यावरण सूचक जीईपी (ग्रास एनवायरनमेट प्रोडक्ट) की तरफ भी हों।

डा.जोशी ने प्रधानमंत्री के आत्मनिर्भर भारत के नारे की तरफ भी ध्यान आकर्षित किया। उन्होंने कहा कि भारत हमेशा से आत्मनिर्भरता के मूलमंत्रों पर चलता आया है। आज अगर इसे आत्मसात करना है तो हमें ग्रामोन्मुखी होना होगा। गांव हमारे मुख्य उत्पादक हैं। साथ ही हवा, मिट्टी, पानी, जंगल भी गांवों की ही देन हैं। गांवों की समृद्धि से ही देश समृद्ध होगा।

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