ऑडिट से खुलेगा 254 करोड़ के धान खरीद में घपले का सच
जिलाधिकारी की अध्यक्षता में गठित एसआइटी ने एजेंट के माध्यम से होने वाली धान की खरीद में 254.26 करोड़ की अनियमितता पाई है। वित्त महकमे के विशेष ऑडिट में इसका सच उजागर होगा।
देहरादून, [रविंद्र बड़थ्वाल]: नई धान खरीद नीति में कमीशन एजेंट से कन्नी काटने के बाद फिर इस व्यवस्था को लागू करने जा रही सरकार और खाद्य विभाग की मुश्किलें अभी खत्म नहीं हुई हैं। जिलाधिकारी की अध्यक्षता में गठित एसआइटी ने एजेंट के माध्यम से होने वाली धान की खरीद में 254.26 करोड़ की अनियमितता पाई है। दरअसल, राइस मिलर्स हों या कमीशन एजेंट दोनों ने ही किसान से धान की खरीद कम कीमत पर की, लेकिन सरकार से कीमत न्यूनतम समर्थन मूल्य के आधार पर वसूल किया गया है। अब इस मामले में दूध का दूध और पानी का पानी वित्त महकमे के विशेष ऑडिट में दूर हो पाएगा।
कमीशन एजेंट पर सरकार को अपनी नीति बदलने को मजबूर होना पड़ रहा है। सरकार की ओर से धान खरीद नीति में कमीशन एजेंट से इस वर्ष खरीद नहीं किए जाने का प्रावधान किया गया है। इसकी वजह बिचौलिया प्रथा खत्म कर सीधे किसानों को लाभ देना बताया गया। हालांकि, अब राइस मिलर्स की ओर से इसका विरोध होने के बाद सरकार इस मामले में बैकफुट पर है।
दरअसल, कमीशन एजेंट और राइस मिलर्स की ओर से बतौर कच्चा आढ़ती होने वाली धान की खरीद लंबे अरसे से लागू है। हालांकि, सरकार के निर्देश पर जिलाधिकारी की ओर से गठित एसआइटी की जांच में कमीशन एजेंट व्यवस्था पर गंभीर सवाल खड़े किए गए हैं। इस जांच को सही माना जाए तो सरकार और खाद्य महकमे का तंत्र सवालों के घेरे में आ रहा है।
इस जांच में यह कहा गया है कि एजेंट के माध्यम से धान की नीलामी के बाद काश्तकारों को 1000 रुपये से 1200 रुपये प्रति कुंतल की दर से धनराशि का भुगतान किया गया है, जबकि यही धान न्यूनतम समर्थन मूल्य में 1740 रुपये प्रति कुंतल ग्रेड-ए और 1510 रुपये प्रति कुंतल कॉमन की दर से सरकार की ओर से कच्चा आढ़ती को भुगतान किया गया है।
एसआइटी ने इसमें 254, 26,57, 200 रुपये का घपला होने का अंदेशा जताया है। सवाल ये है कि यदि काश्तकार को कम भुगतान किया गया तो सरकार से बढ़ी दरों से भुगतान क्योंकर हुआ। धान की खरीद में नमी का मुद्दा भी है। 17 फीसद से ज्यादा नमी का धान बताकर यदि किसानों से न्यूनतम समर्थन मूल्य से कम दर पर धान की खरीद की गई तो सरकार से अधिक भुगतान लेने का औचित्य क्या है और इस गोरखधंधे से किसान के बजाए लाभ कमीशन एजेंट की जेब में जाता दिख रहा है।
अब वित्त विभाग की ओर से किए जाने वाले विशेष ऑडिट में सच सामने आने की संभावना जताई जा रही है। जाहिर है कि विशेष ऑडिट में भी उक्त अनियमितता की पुष्टि होती है तो कमीशन एजेंट के मामले में खाद्य महकमे की मुश्किलें बढ़नी तय है।
खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति प्रमुख सचिव आनंद बर्द्धन का कहना है कि कमीशन एजेंट की व्यवस्था खत्म होने से परेशानी का मुद्दा राइस मिलर्स रख चुके हैं। धान खरीद में व्यवधान न हो और तेजी आए, इसके चलते सरकार इस मामले में पुनर्विचार कर रही है।
स्पेशल ऑडिट में इस सच की भी होनी है पुष्टि
-बाजपुर, काशीपुर, रुद्रपुर, जसपुर, सितारगंज व नानकमत्ता में वरिष्ठ विपणन अधिकारी की भूमिका।
-रुद्रपुर, बाजपुर व किच्छा मंडी समितियों और रुद्रपुर, काशीपुर व किच्छा राज्य भंडारण निगम गोदामों की भूमिका
-राइस मिलर्स व विभिन्न सहकारी समितियां
-राज्य पोषित योजना के चावल में 40 से 50 फीसद चावल सीएमआर योजना में खपाया
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