व्यवस्था पर भारी पड़ रहा है एक जीएसटी अधिकारी, पढ़िए पूरी खबर
उत्तराखंड में एक जीएसटी अधिकारी ने पूरे विभाग को हिला रखा है। अपने कारनामों से एक दफा सस्पेंड हो चुके हैं और फिर प्रतिकूल प्रविष्टि अपने खाते में दर्ज कर बहाल हुए।
देहरादून, सुमन सेमवाल। जीरो टॉलरेंस उत्तराखंड सरकार का ट्रेड मार्क जैसा बन चुका है। मगर, इसका तेज स्टेट जीएसटी में नजर नहीं आ रहा। एक जीएसटी अधिकारी ने पूरे विभाग को हिला रखा है। अपने कारनामों से एक दफा सस्पेंड हो चुके हैं और फिर प्रतिकूल प्रविष्टि अपने खाते में दर्ज कर बहाल हुए। पर मजाल है कि इनकी 'शान' कुछ कमी हुई हो।
कमिश्नर तक का प्रभाव इन पर नहीं दिखता। हरिद्वार, अल्मोड़ा, रुद्रपुर और काशीपुर में गुल खिलाकर आ चुके ये महाशय अहम मानी जानी वाले चेकपोस्ट की मोबाइल टीम में डटे हैं। एक दफा हरिद्वार में संयुक्त आयुक्त के बंद दफ्तर में उनकी अनुपस्थिति के घुसने की गुस्ताखी भी कर चुके हैं। अब इसे उच्चाधिकारियों का डर कहें या कुछ और, इतना तो जरूर है कि इस अधिकारी का इलाज किसी के पास नहीं है। इतना जरूर है कि बिना आकाओं की शह के ऐसी धींगामुश्ती तो नहीं चल सकती।
65 साल में कैसा एक्सटेंशन
पिछले दिनों से लोनिवि में एक संविदा जेई के इस्तीफे और एक रिटायर्ड चीफ इंजीनियर की 65 साल की उम्र में भी एक्सटेंशन की ख्वाहिश का पत्र खूब वायरल हो रहा है। महज 15 हजार रुपये की पगार लेने वाली जेई की अर्जी को लेकर उच्चाधिकारी न्यूट्रल मोड में हैं, जबकि तकनीकी सलाहकार के रूप में तैनात रिटायर्ड इंजीनियर आरपी भट्ट की अर्जी से अधिकारी टेंशन में आ गए हैं।
जीरो टॉलरेंस के नाम पर अपर सचिव प्रदीप रावत ने उनकी अर्जी खारिज कर दी थी। दो टूक कह दिया कि आरपी भट्ट का कार्यकाल 28 फरवरी तक है और इसके बाद वह स्वत: कार्यमुक्त माने जाएंगे। अब दूसरी तरफ यह बात सामने आ रही है कि दिल्ली दरबार ने उनकी एक्सटेंशन की अर्जी पर गंभीरता से विचार करने के निर्देश दिए हैं। जाहिर है इस विचार के लिए सभी आचार दरकिनार करने पड़ेंगे। फरमान जो हाईकमान से आया है।
खनन पर आंख, कान बंद
नदियों में रात दिन चलने वाली खनन की खन-खन बाहर न जाए, इसके लिए अधिकारियों ने पूरा बंदोबस्त कर रखा है। कागजों में इसे औजारों से किए जाने वाले चुगान का नाम दिया गया है और धरातल पर जेसीबी से ताबड़तोड़ खुदाई चलती है। पर क्या करें, जिम्मेदारों के आंख-कान बंद ही रहते हैं। नियमों के परे यहां के सभी काम टेबल के नीचे से होते हैं और पारदर्शिता नाम की चीज इस विभाग में कम ही देखने को मिलती है। तभी तो इसकी वेबसाइट में ढूंढने पर भी जानकारी नहीं मिलती। वेबसाइट पर जो कार्यालय का नंबर दिया गया है, वह भी गलत है। वैसे भी इस विभाग में खास तरह की खन-खन सुनने के अलावा किसी के पास समय कहां होता है। अब तो नए नियमों ने काम और बढ़ा दिया है। पहले नदियों को डेढ़ मीटर तक खोदते थे, अब तीन मीटर तक खुदाई जो करनी है।
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कुर्सी का कमिटमेंट होगा पूरा
लोनिवि के खंडों की स्थिति आमदनी अठन्नी और खर्चा रुपइया वाली हो रखी है। बजट मिल नहीं रहा और इस्टीमेट धड़ाधड़ मंगाए जा रहे हैं। ऊपर से ठेकेदारों ने अलग अधिशासी अभियंताओं की जान को आफत कर रखी है। ठेकेदारों की फौज लंबी है और सबको काम भी नहीं मिल सकता। फिर दो-तीन साल से जिन्हें आश्वासन दे रखा है, वह अलग नाक में दम किए हैं।
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बेचारे अधिकारी किसी को काम दे रहे हैं तो किसी को पिछला भुगतान थमाकर पिंड छुड़ा रहे हैं। रोज-रोज की किच-किच से बचने को अधिकारियों ने भी बचाव की मुद्रा अपना ली। कहा जा रहा है कि वह सिर्फ अपने कार्यकाल का हिसाब नहीं रख रहे, पिछले अधिकारियों के वादे भी पूरा कर रहे हैं। इस कुर्सी की कमिटमेंट है, तो उसे पूरा करना ही है। भीतर से अधिकारी ही जानते हैं कि तंगी में जुबानी जमाखर्च ही उनकी कजान बचा सकता है।
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