भूकंप की दृष्टि से सुरक्षित भवन बनाने पर दिया गया जोर Dehradun News
राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण की ओर से आयोजित एक दिवसीय कार्यशाला में विशेषज्ञों ने प्रदेश में भूकंप की दृष्टि से सुरक्षित भवन के निर्माण में जोर दिया।
देहरादून, जेएनएन। राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण की ओर से आयोजित एक दिवसीय कार्यशाला में विशेषज्ञों ने प्रदेश में भूकंप की दृष्टि से सुरक्षित भवन के निर्माण में जोर दिया। विभाग के सचिव और आइआइटी रुड़की के विशेषज्ञ प्रोफेसरों ने आधुनिक भवन तकनीकी की विस्तृत जानकारी दी।
सुभाष रोड स्थित होटल परिसर में सोमवार को आयोजित कार्यशाला का उद्घाटन महापौर सुनील उनियाल गामा ने किया। कार्यशाला में आइआइटी रुड़की के प्रोफेसर योगेंद्र सिंह ने कहा कि हिमालय पर्वत श्रृंखला की उत्पत्ति भारतीय भूखंड के यूरेशियाई भूखंड से टकराने के परिणाम स्वरूप हुई। भूखंडों की इस टक्कर के बाद भारतीय भूखंड आज भी उत्तर-उत्तर पूर्व की दिशा में खिसक रहा है। जिसके कारण इस भूखंड की उत्तरी सीमा पर हिमालयी क्षेत्र में स्थित चट्टानें काफी दबाव की स्थिति में बनी रहती हैं। चट्टानों में संचयित यह ऊर्जा अक्सर भूकंप के रूप में अवमुक्त होती है। इसलिए हिमालयी क्षेत्र भूकंप के प्रति अत्यंत संवेदनशील है।
राज्य के चार जिले पिथौरागढ़, बागेश्वर, चमोली और रुद्रप्रयाग सर्वाधिक भूकंप जोखिम क्षेत्र हैं। पौड़ी, उत्तरकाशी, टिहरी, चंपावत व अल्मोड़ा जिले आंशिक रूप से जोखिम भरे हैं। यह सभी जिले जोन पांच के अंतर्गत आते हैं, जबकि प्रदेश का अन्य क्षेत्र जोन चार में पड़ता है। आइआइटी रुड़की के प्रोफेसर अरिंदम विश्वास ने भी भूकंप की दृष्टि से संवेदनशील क्षेत्र में बनाए जाने वाले भवनों के डिजाइन के बारे में जानकारी दी। आपदा प्रबंधन विभाग के सचिव अमित सिंह नेगी ने राज्य सरकार की ओर से आपदा प्रबंधन को लेकर किए जा रहे प्रबंध की जानकारी दी।
रिस्पना और बिंदाल का लौटाएंगे गौरव
कार्यशाला में महापौर सुनील उनियाल गामा ने कहा कि प्राकृतिक आपदा की दृष्टि से समूचा उत्तराखंड संवेदनशील है। इसलिए भू-वैज्ञानिक और प्रदेश आपदा प्रबंधन विभाग मैदान से लेकर पहाड़ तक लोगों को ऐसे भवन बनने के लिए प्रेरित करें जो भूकंप की दृष्टि से सुरक्षित हों। उन्होंने दून के बीचोंबीच बहने वाली रिस्पना और बिंदल नदियों का जिक्र करते हुए कहा कि उन्होंने दोनों नदियों में सालभर स्वच्छ जलधारा बहते हुए देखी है।
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इन दोनों नदियों का तट 20 से 25 मीटर तक चौड़े हुआ करते थे, लेकिन बढ़ते औद्योगिकीकरण के कारण इन नदियों को लोगों ने गंदा नाला समझ लिया और घर का पूरे कूड़े कचरे से लेकर सीवरेज और यहां तक कि उद्योगों से निकलने वाले खतरनाक रासायनिक तरल पदार्थ को इनमें प्रवाहित किया गया। लेकिन जब से प्रदेश सरकार की ओर से रिस्पना व बिंदाल नदियों को पुनर्जीवित करने का अभियान शुरू किया, तब से नदियों में फैली गंदगी भी बहुत कम हो गई है और इन नदियों के स्त्रोतों से जलधारा का स्तर भी बढ़ा है। उन्होंने आह्वान किया कि दून के सभी लोगों मिलकर रिस्पना और बिंदाल के गौरव को लौटाने में सरकार का सहयोग करें।
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