अब दून मेडिकल कॉलेज का रिकॉर्ड होगा डिजिटाइज, एक क्लिक पर मिलेगी पूरी जानकारी
अब एक क्लिक पर दून मेडिकल कॉलेज की पूरी जानकारी मिल जाएगी। दरअसल मेडिकल कॉलेज अब जल्द ही डिजिटाइज होगा।
देहरादून, जेएनएन। दून मेडिकल कॉलेज का रिकॉर्ड अब डिजिटाइज होगा। कॉलेज प्रशासन ने इसे लेकर तैयारियां शुरू कर दी हैं। मेडिकल रिकॉर्ड डिपार्टमेंट के लिए जगह चिह्नित करने के साथ ही अन्य संसाधन भी जुटाए जा रहे हैं। रिकॉर्ड डिजिटाइज मोड पर आने जाने से यह न केवल अधिक व्यवस्थित होगा, बल्कि एक क्लिक पर सारी जानकारी उपलब्ध होगी।
करीब चार साल पहले दून अस्पताल व दून महिला अस्पताल को एकीकृत कर मेडिकल कॉलेज में तब्दील किया गया था। दून अस्पताल में पहले जिला अस्पताल के मुताबिक व्यवस्थाएं थी, पर अब मेडिकल कॉलेज के अनुरूप सुविधा-संसाधन जुटाए जा रहे हैं। एमसीआइ के मानकों के अनुसार कई स्तर पर काम चल रहा है। मंगलवार को प्राचार्य डॉ. आशुतोष सयाना ने अस्पताल में मेडिकल रिकॉर्ड डिपार्टमेंट को लेकर बैठक की, जिसमें हल्द्वानी मेडिकल कॉलेज के मेडिकल रिकॉर्ड अफसर प्रकाश पंत ने मेडिकल रिकॉर्ड डिपार्टमेंट के लिए आवश्यक मानव संसाधन और अन्य कई अहम जानकारियां दीं।
उन्होंने इसके निर्माण के लिए प्राचार्य के साथ अस्पताल परिसर का दौरा भी किया। प्राचार्य ने बताया कि प्रथम चरण में तमाम रिकॉर्ड व्यवस्थित किए जा रहे हैं। कर्मचारियों से इन्हें वर्षवार सेट करने को कहा गया है। इसके अलावा कम्प्यूटर व अन्य उपकरण भी उपलब्ध कराए जा रहे हैं। इंटरनेशल कोडिंग ऑफ डिजीज (आइसीडी) की प्रक्रिया भी शुरू की गई है। इससे बीमारियों का डाटा तैयार हो सकेगा। जिसके मार्फत नीतिगत मोर्चे पर भी मदद मिलेगी।
अड़चन भी कई
मेडिकल रिकॉर्ड डिपार्टमेंट की स्थापना की राह में रोड़े भी कम नहीं हैं। जिस तरह के मानक निर्धारित हैं, उन्हें पूरा कर पाना अस्पताल प्रशासन के लिए आसान नहीं होगा। एक अड़चन जगह को लेकर भी है। इसके लिए ओपीडी व आइपीडी के बीच करीब 600 स्क्वायर यार्ड जगह चाहिए। पर अस्पताल में इतनी जगह का इंतजाम कर पाना मुश्किल है। एक दिक्कत स्टाफ को लेकर है। मेडिकल रिकॉर्ड डिपार्टमेंट में सांख्यिकी अधिकारी, डाटा ऑपरेटर सहित 17 लोगों का स्टाफ चाहिए। पर अभी तीन लोग ही तैनात हैं। एक स्टाफ नर्स, एक फार्मसिस्ट और एक वार्ड ब्वाय को रखा गया है।
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डाटा के लिए नियम तय
मेडिकल कॉलेज में रिकॉर्ड रखने के भी नियम निर्धारित हैं। फाइनेंस संबंधी डाटा 35 साल तक सुरक्षित रखा जाता है। दुर्घटना का डाटा 15 और मेडिकोलीगल केस में डाटा 20 साल सुरक्षित रहता है। बाकि डाटा भी सात से बारह साल की अवधि तक रखा जाता है। इसके बाद डाटा नष्ट करने के भी नियम हैं।
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