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उत्तराखंड में डेढ़ सौ वर्षों से चली आ रही राजस्व पुलिस पर अब उठने लगे सवाल

असल में राज्य के 7500 गांव राजस्व पुलिस के अंतर्गत हैं। इनमें प्रथम चरण में 1500 से अधिक गांवों को सिविल पुलिस के दायरे में लेने की कसरत चल रही है। इसके बाद धीरे-धीरे अगले चरण में अन्य गांवों में भी सिविल पुलिस की तैनाती की जाएगी।

By Jagran NewsEdited By: Sanjay PokhriyalPublished: Wed, 05 Oct 2022 01:22 PM (IST)Updated: Wed, 05 Oct 2022 01:22 PM (IST)
उत्तराखंड में डेढ़ सौ वर्षों से चली आ रही राजस्व पुलिस पर अब उठने लगे सवाल
अपराध पर नियंत्रण में असहाय साबित होती संसाधन विहीन राजस्व पुलिस। फाइल

देहरादून, विकास धूलिया। उत्तराखंड में लगभग डेढ़ सौ वर्षों से चली आ रही राजस्व पुलिस, यानी पटवारी व्यवस्था की प्रासंगिकता पर अब सवाल उठने लगे हैं। पटवारियों के पास उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्र के 60 प्रतिशत से अधिक हिस्से में कानून-व्यवस्था की जिम्मेदारी है, लेकिन वर्तमान समय में राजस्व क्षेत्रों में बढ़ती आपराधिक घटनाओं और इन्हें सुलझाने में पटवारियों की असफलता ने नई बहस को जन्म दे दिया है कि क्यों न अब यहां के राजस्व क्षेत्रों को भी सिविल पुलिस को सौंप दिया जाए। विशेषकर देशभर में चर्चित हुए अंकिता भंडारी हत्याकांड में राजस्व पुलिस की भूमिका के बाद इस मांग ने जोर पकड़ लिया है।

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अब प्रदेश सरकार भी इस विषय पर गंभीरता से मंथन में जुट गई है। उत्तराखंड अलग राज्य के रूप में नौ नवंबर, 2000 को अस्तित्व में आया, पर इस क्षेत्र में राजस्व पुलिस व्यवस्था वर्ष 1861 से चली आ रही है। इस अनूठी व्यवस्था के अंतर्गत पटवारी, कानूनगो, तहसीलदार से लेकर जिलाधिकारी एवं मंडलायुक्त तक को राजस्व कार्यों के साथ ही पुलिस के कार्यों का दायित्व भी निभाना होता है। अपराधों की जांच करना, मुकदमा दर्ज करना और अपराधियों को पकड़ना राजस्व पुलिस की ही जिम्मेदारी है। राजस्व पुलिस व्यवस्था के अंतर्गत पटवारी के पास अपराधियों से मुकाबले के लिए अस्त्र-शस्त्र के नाम पर महज एक लाठी ही होती है और पुलिस बल के नाम पर एक चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी। इसीलिए यहां राजस्व पुलिस को गांधी पुलिस भी कहा जाता है।

साल 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के बाद अंग्रेजों ने देशभर में पुलिस थाने और चौकियां स्थापित की थीं। अंग्रेजों ने इसके लिए वर्ष 1861 में पुलिस एक्ट के माध्यम से पुलिस व्यवस्था का ढांचा तैयार किया। वर्तमान उत्तराखंड का अधिकांश क्षेत्र पर्वतीय और विषम भूगोल वाला है। इसलिए इस पर्वतीय क्षेत्र में पुलिस थाने या चौकी के स्थान पर अंग्रेजों ने राजस्व विभाग के अधिकारियों को ही पुलिस कार्यों का भी दायित्व दे दिया। कालांतर में देशभर में पुलिस व्यवस्था को मजबूत किया गया, लेकिन उत्तराखंड के पर्वतीय जिलों में चली आ रही राजस्व पुलिस व्यवस्था में कोई बदलाव नहीं हुआ। वर्तमान समय में भी पर्वतीय जिलों का अधिकांश हिस्सा राजस्व पुलिस के अधिकार क्षेत्र में ही है।

उत्तराखंड में वर्तमान परिस्थितियां पहले जितनी आसान और सरल नहीं रही हैं। पर्वतीय क्षेत्रों में अपराधों में न केवल बढ़ोतरी हुई है, बल्कि अपराधी आधुनिक हथियारों से लैस भी हुए हैं। उस पर पटवारी आज के दौर में भी शस्त्र के नाम पर केवल लाठी ही लिए हुए हैं। उत्तराखंड के अलग राज्य बनने के बाद यहां पर्यटन आर्थिकी के एक मजबूत स्तंभ के रूप में उभरा। देश-विदेश के पर्यटकों ने बड़ी संख्या में उत्तराखंड का रुख करना शुरू किया।

विश्व प्रसिद्ध पर्यटन स्थलों में भीड़ बढ़ने के बाद शहरों के निकट के ग्रामीण क्षेत्रों में होटल, रिसार्ट, एडवेंचर स्पोर्ट सेंटर बनने लगे। महानगरों की भीड़भाड़ से दूर प्रकृति की गोद में सुरम्य वातावरण वाले ऐसे स्थलों में पर्यटकों की रुचि बढ़ने लगी। इससे आर्थिकी को फायदा तो हुआ, लेकिन सिविल पुलिस की अनुपस्थिति में कानून व्यवस्था की स्थिति को खतरा भी पैदा होने लगा। अपराध बढ़ने लगे, लेकिन इन पर नियंत्रण के लिए उत्तरदायी संसाधनविहीन राजस्व पुलिस असहाय साबित हुई। इसीलिए पिछले कुछ वर्षों में उत्तराखंड में राजस्व पुलिस व्यवस्था को समाप्त कर संपूर्ण राजस्व क्षेत्र को सिविल पुलिस को सौंपने की आवाज उठने लगी।

वर्ष 2018 में नैनीताल हाई कोर्ट ने एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए राजस्व पुलिस व्यवस्था को समाप्त कर संपूर्ण राज्य को सिविल पुलिस को सौंपने के आदेश दिए। इस निर्णय के विरुद्ध तत्कालीन राज्य सरकार सुप्रीम कोर्ट में गई। यद्यपि सुप्रीम कोर्ट ने न तो अभी हाई कोर्ट के फैसले पर रोक लगाई है और न कोई नया निर्णय ही पारित किया है। इस परिस्थिति में हाई कोर्ट का निर्णय अभी भी वैध है। इस बीच पौड़ी जिले के राजस्व पुलिस के अंतर्गत हुए अंकिता हत्याकांड के बाद से राजस्व पुलिस व्यवस्था को समाप्त करने की मांग ने जोर पकड़ा है। इसे लेकर मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की सरकार भी अब सतर्क हुई है।

असल में राज्य के 7,500 गांव राजस्व पुलिस के अंतर्गत हैं। इनमें प्रथम चरण में 1,500 से अधिक गांवों को सिविल पुलिस के दायरे में लेने की कसरत चल रही है। इसके बाद धीरे-धीरे अगले चरण में अन्य गांवों में भी सिविल पुलिस की तैनाती की जाएगी। जिस तरह से कदम उठाए जा रहे हैं, उससे यही लगता है कि अगले दो-तीन वर्षों के भीतर प्रदेश से राजस्व पुलिस व्यवस्था की पूरी तरह से विदाई हो जाएगी।

[स्टेट ब्यूरो चीफ, उत्तराखंड]


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