खाकी में इंसान की झलक, अब पुलिस को देख खुश हो जाते हैं लोग
उत्तराखंड के पुलिस महानिदेशक अपराध एवं कानून व्यवस्था अशोक कुमार की किताब खाकी में इंसान के इस अंश को लॉकडाउन की वजह से बने हालात ने प्रासंगिक बना दिया है।
देहरादून, संतोष तिवारी। 'पुलिस की वर्दी में होते हुए भी इंसान बने रहना इतना मुश्किल तो नहीं है।' उत्तराखंड के पुलिस महानिदेशक अपराध एवं कानून व्यवस्था अशोक कुमार की किताब 'खाकी में इंसान' के इस अंश को कोरोना और लॉकडाउन की वजह से बने हालात ने प्रासंगिक बना दिया है। दरअसल, इन दिनों पुलिस के कामकाज के तरीके से लेकर बातचीत और व्यवहार तक में परिवर्तन में आ गया है। इसने समाज में पुलिस की छवि को बदलकर रख दिया है। लोगों तक खाना पहुंचाने से लेकर दवाएं लाकर देना और न जाने कितने ऐसे काम पुलिस ने किए, जिनसे पुलिस का कभी कोई सरोकार ही नहीं रहा। सच कहें तो कुछ महीने पहले तक जिस पुलिस को देखकर लोग सहम जाते थे, अब उसी पुलिस को देख खुश हो जाते हैं। यह अच्छे संकेत हैं। जिससे पुलिस को भी लगने लगा है कि सम्मान के लिए डर नहीं इंसानियत दिखाना जरूरी है।
बचा सकते थे तीन करोड़
लॉकडाउन का उल्लंघन करने और बेवजह घरों से बाहर निकलने की जिद न होती तो राज्य के हजारों लोगों को अपनी जेब ढीली न करनी पड़ती। हम बात कर रहे हैं, लॉकडाउनकाल में किए गए 54 हजार से अधिक चालान और वसूले गए तीन करोड़ रुपये से अधिक के जुर्माने की। पुलिस ने डंडा बजाने से लेकर मुर्गा बनाने और हाथ जोडऩे से लेकर मैं समाज का दुश्मन कहलवाने तक का हथकंडा अपनाया। बावजूद इसके पुलिस कुछ लोगों को इस बात का अहसास नहीं करा पाई कि यह सब उनकी और उनके परिवार की जान जोखिम में पड़ने से बचाने के लिए है। इसके पीछे वजह यह है कि नियम तोड़ना एक मानसिक विकृति है। जो लोगों की आदत में शुमार हो गया है। कोरोना संक्रमण, जिससे देश ही नहीं पूरी दुनिया डरी हुई है, उसके साथ आंख-मिचौली उत्तराखंड के कई शहरों में जारी है। जो खतरे का संकेत है।
कोरोना काल में नाराजगी लॉकडाउन
कोरोना न सिर्फ लोगों की दिनचर्या और जीवनशैली बदल रहा है, बल्कि इस महामारी ने लोगों की सरकार और व्यवस्था से नाराजगी को भी लॉकडाउन कर दिया है। जरा कुछ महीने पहले की बातें याद कीजिए। उस वक्त शायद ही कोई दिन गुजरता था, जब शहर में धरना-प्रदर्शन न हुआ हो या फिर जुलूस-रैली में सरकार के विरोध में स्वर न गूंजते रहे हों। मगर अब यह सब भी बंद हो गया है। ऐसा नहीं है कि लोगों की सरकार से नाराजगी दूर हो गई। दरअसल, अब उन्हें भी यह बात समझ में आ गई है कि जीवन रहा तो विरोध करने के बहुत से मौके मिलेंगे। हालांकि, कुछ लोगों ने इसका भी दूसरा तरीका ढूंढ निकाला है। ऐसे लोग अब दफ्तरों में पत्र के जरिये असंतोष व्यक्त कर रहे हैं या फिर रजिस्टर्ड डाक के माध्यम से अधिकारियों और सरकार तक अपनी बात पहुंचाने की कोशिश कर रहे हैं।
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अनलॉक में भी लॉकडाउन
करीब दो महीने चले लॉकडाउन के बाद अब अनलॉक का दौर शुरू हो गया है। जो लोग लंबे समय तक कोरोना के खौफ से घरों में कैद थे, उनमें अब खुली हवा में सांस लेने की बेताबी साफ दिख रही है। मगर सवाल यह है कि क्या खतरा टलने लगा है। जवाब अभी भी न में ही है, यकीन न हो तो दो दिन पहले पुलिस महानिदेशक की ओर से जारी वीडियो संदेश को एक बार फिर से सुन लीजिए। लॉकडाउन की बंदिशों का पालन अभी करना ही है। ऐसा न हो कि बाहर निकलने की धुन में अपनी और अपनों की सुरक्षा के लिए खतरा बन जाए। क्योंकि ऐसा हुआ तो पुलिस एक बार फिर सख्ती के मूड में है। शारीरिक दूरी का पालन न करने और मास्क न लगाने की स्थिति में भी पुलिस मुकदमा दर्ज कर जेल भेज सकती है। ऐसे में अभी सतर्क रहें और सावधान भी।
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