प्रदूषण थामने की दिशा में अभी सचेत नहीं हुए, तो बढ़ सकती हैं दिक्कतें
उत्तराखंड के शहरों कस्बों व गांवों के साथ ही जंगलों और नदियों की सेहत फिर से बिगड़ने लगी है। जैसी परिस्थितियां हैं वह इशारा कर रही हैं कि यदि प्रदूषण थामने की दिशा में अभी भी सचेत नहीं हुए तो आने वाले दिनों में दिक्कतें बढ़ सकती हैं।
देहरादून, राज्य ब्यूरो। देश के अन्य हिस्सों की तरह लॉकडाउन के दौरान सुधरी रही उत्तराखंड के शहरों, कस्बों व गांवों के साथ ही जंगलों और नदियों की सेहत फिर से बिगड़ने लगी है। अनलॉक की प्रक्रिया शुरू होने के बाद जैसी परिस्थितियां हैं, वह इशारा कर रही हैं कि यदि प्रदूषण थामने की दिशा में अभी भी सचेत नहीं हुए, तो आने वाले दिनों में दिक्कतें बढ़ सकती हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि अच्छी सेहत के लिए बेहतर परिवेश आवश्यक है। ऐसे में प्रत्येक व्यक्ति को पर्यावरण संरक्षण के प्रति अपनी जिम्मेदारी को समझना होगा।
उत्तराखंड पर्यावरण संरक्षण एवं प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के आंकड़ों पर नजर दौड़ाएं तो लॉकडाउन के दौरान गंगा समेत अन्य नदियों की सेहत में खासा सुधार देखा गया। इस वर्ष अप्रैल में पहली बार हरिद्वार में हरकी पैड़ी में गंगा जल की गुणवत्ता ए श्रेणी की आई, जो पहले यह बी श्रेणी की थी। इसी तरह ऋषिकेश में पशुलोक में गंगा जल की गुणवत्ता ए श्रेणी में रही। यही नहीं, हरिद्वार में बिंदुघाट और जगजीतपुर में गुणवत्ता बी श्रेणी की रही, मगर वहां फीकल कॉलीफार्म (मल-मूत्र) की मात्रा में क्रमश: 25 और 27 प्रतिशत तक कम आंकी गई। अन्य नदियों की स्थिति भी कमोबेश यही रही।
इसके अलावा शहरों, कस्बों व गांवों में भी प्रदूषण का स्तर निचले स्तर तक आ गया था। वजह ये कि लॉकडाउन के दौरान सभी तरह की गतिविधियां पूरी तरह बंद थीं। अब जबकि, अनलॉक के तहत सभी गतिविधियां प्रारंभ होने लगी हैं तो वायु, जल व ध्वनि प्रदूषण के स्तर में भी धीरे-धीरे इजाफा होने लगा है। प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड से मिली जानकारी के अनुसार अगस्त में तीनों तरह के प्रदूषण में थोड़ा इजाफा हुआ। सितंबर के आंकड़ों का विश्लेषण होने पर सही तस्वीर सामने आएगी।
पर्यावरणविद सच्चिदानंद भारती कहते हैं कि प्रदूषण नियंत्रण के लिए लॉकडाउन कोई विकल्प नहीं है। अलबत्ता, हमें ही सजग होना होगा। यदि हम परिवेश की स्वच्छता पर थोड़ा ठीक से ध्यान दे दें तो कई दिक्कतें खुद-ब-खुद हल हो जाएंगी। मसलन, अपने आसपास कूड़ा-कचरा एकत्रित न होने दें। नदियों में गंदगी न जाने दें। सप्ताह में कम से कम दो दिन निजी वाहनों का प्रयोग न करें तो प्रदूषण को मात देने में ये कारगर कदम साबित होंगे।
प्रमुख सचिव वन आनंद वर्धन भी मानते हैं कि पर्यावरण को साफ-सुथरा बनाए रखने के लिए सोच में बदलाव की जरूरत है। यदि हम लोग मानसिकता नहीं बदलेंगे, जरूरतों को कम नहीं करेंगे तो दिक्कतें बढ़ेंगी ही। अलबत्ता, प्रदूषण से निजात पाने के लिए सभी व्यक्ति थोड़ा-थोड़ा योगदान दें तो समस्या काफी हद तक हल हो जाएगी।
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